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________________ लेश्या : एक विश्लेषण ४६७ . mmmmmmunmarrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrummmmm...... आदि कषाय नष्ट होते हैं और साधक के मन में इन्द्रिय विजय के भाव तरंगित होते हैं। सफेद रंग से मन में अपूर्व शान्ति तथा जितेन्द्रियता के निर्मल भावों का संचार होता है। अन्य दृष्टि से भी रंगों का मानसिक विचारों पर जो प्रभाव होता है उसका वर्गीकरण चिन्तकों ने अन्य रूप से प्रस्तुत किया है, यद्यपि द्वितीय वर्गीकरण प्रथम वर्गीकरण से कुछ पृथक्ता लिए हुए है । जैसे, आसमानी रंग से भक्ति सम्बन्धी भावनाएँ जाग्रत होती हैं । लाल रंग से काम वासनाएँ उद्बुद्ध होती हैं। पीले रंग से ताकिक शक्ति की अभिवृद्धि होती है। गुलाबी रंग से प्रेम विषयक भावनाएँ जाग्रत होती हैं। हरे रंग से मन में स्वार्थ की भावनाएं पनपती हैं । लाल व काले रंग का मिश्रण होने पर मन में क्रोध भड़कता है। जब हम इन दोनों प्रकार के रंगों के वर्गीकरण पर तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन करते हैं तो ऐसा ज्ञात होता है कि प्रत्येक रंग प्रशस्त और अप्रशस्त दो प्रकार का है। कहीं पर लाल, पीले और सफेद रंग अच्छे विचारों को उत्पन्न नहीं करते इसलिए वे अप्रशस्त व अशुभ हैं, और कहीं पर वे अच्छे विचारों को उत्पन्न करते हैं, अतः वे प्रशस्त व शुभ हैं । क्रोध से अग्नि तत्त्व प्रदीप्त हो जाता है, उसका वर्ण लाल माना गया है। मोह से जलतत्त्व की अभिवृद्धि हो जाती है, उसका वर्ण सफेद या बैंगनी माना गया है। भय से पृथ्वी-तत्त्व प्रधान हो जाता है, इसका वर्ण पीला है। लेश्याओं के वर्णन में भी क्रोध, मोह और भय आदि अन्तर् में रहे हुए हैं और उनका मानस पर असर होता है । कहीं पर श्याम रंग को भी प्रशस्त माना है, जैसे-नमस्कार महामन्त्र के पदों के साथ जो रंगों की कल्पना की गयी है उसमें 'नमो लोए सब्वसाहूणं' का वर्ण कृष्ण बताया है। साधु के साथ जो कृष्ण वर्ण की योजना की गयी है वह कृष्णलेश्या जो निकृष्टतम चित्तवृत्ति को समुत्पन्न करने का हेतु अप्रशस्त कृष्ण वर्ण है उससे पृथक् है, कृष्णलेश्या का जो कृष्णवर्ण है उससे साधु का जो कृष्ण वर्ण है वह भिन्न है और प्रशस्त है । पाश्चात्य देशों में वैज्ञानिक रंग के सम्बन्ध में गम्भीर अध्ययन कर रहे हैं । कलर थिरेपी रंग के आधार पर समुत्पन्न हुई है । रंग से मानव के चित्त व शरीर की भी चिकित्सा प्रारंभ हुई है जिसके परिणाम भी बहुत ही श्रेष्ठ आये हैं।" आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से विद्युत् चुम्बकीय तरंगें बहुत ही सूक्ष्म हैं । वे विराट् विश्व में गति कर रही हैं । वैज्ञानिकों ने विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का सामान्य रूप से विभाजन इस प्रकार से किया है: रेडियो | सूक्ष्म तरंगें अवरक्त दृश्यमान परा बैगनी तरंगें एक्स-रे गामा किरणें १०-१० तरंग दैर्ध्य प्रस्तुत चार्ट से यह स्पष्ट होता है कि विश्व में जितनी भी विकिरणें हैं उन विकिरणों की तुलना में जो दिखाई देती हैं उन विकिरणों का स्थान नहीं-जैसा है । पर उन विकिरणों का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है जो विकिरणे दृष्टिगोचर होती हैं । त्रिपाल के माध्यम से उनके सात वर्ण देख सकते हैं। जैसे बैंगनी, नील, आकाश-सदृश नील, हरा, पीला, नारंगी और लाल । इन विकिरणों में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि क्रमश: इन रंगों में आवृत्ति (Frequency) कम होती है, और तरंग-दर्य (wave length) में अभिवृद्धि होती है । बैंगनी रंग के पीछे की विकिरणों को अपरा बैंगनी (ultra-violet) और लाल रंग के आगे की विकिरणें अवरक्त कही जाती हैं। प्रस्तुत वर्गीकरण में वर्ण की मुख्यता है । किन्तु जितनी भी विकिरणें हैं उनका लक्षण, आवृत्ति और तरंगदैर्घ्य है । विज्ञान के आलोक में जब हम लेश्या पर चिन्तन करते हैं तो सूर्य के प्रकाश की भाँति यह स्पष्ट होता है कि छह लेश्याओं के वर्ण और दृष्टिगोचर होने वाले स्पेक्ट्रम (वर्ण-पट) के रंगों की तुलना इस प्रकार की जा सकती हैदिखायी दिया जाने वाला स्पेक्ट्रम लेश्या १ अपरा बैगनी से बैंगनी तक २ नील कृष्णलेश्या नीललेश्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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