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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १४११ एक कुत्ते के शरीर में दो कुत्तों के जीव नहीं रह सकते __शंका-एक कुत्ते की गरदन काटकर दूसरे कुत्ते की गरदम पर जोड़ दी गई। वह कुत्ता दोनों मुह से खाता पीता भोंकता है, ऐसा रूसी समाचार है। एक वृक्ष की डाली काटकर दूसरे वृक्ष पर लगा दी जाती है फल भी आते हैं। गर्दन कटे कुत्ते की आत्मा क्या दूसरे कुत्ते में प्रवेश कर गई। या दोनों कुत्तों की आत्मायें एक शरीर में जुड़ गई ? यदि सम्पूर्ण कुत्ते की आत्मा गर्दन में ही रह गई तो किस कर्म के उदय से क्या हुआ ? ___समाधान-जिस कुत्ते की गर्दन काटी गई, उस कुत्ते की आत्मा तो मृत्यु को प्राप्त हो गई और कर्मोदय अनुसार अन्य पर्याय में उत्पन्न हो गई। जिस कूत्त के यह गर्दन जोड़ी गई उस कुत्ते के प्रात्मप्रदेश इस गर्दन में प्रवेश कर गए। दोनों मुह में एक ही कुत्ते की आत्मा है। संसारी जीव के प्रदेशों में संकोच-विस्तार करने की शक्ति है अतः उस कुत्ते की आत्मा के प्रदेशो का दूसरी गर्दन में प्रवेश करने में कोई बाधा नहीं है । जिस वृक्ष की डाली काटी गई है उस वृक्षके प्रात्मप्रदेश उस डाली में से निकलकर और संकुचित होकर उस वृक्ष में ही समा गये। जिस वृक्ष पर वह डाली लगाई गई है उस वृक्ष के प्रात्मप्रदेश विस्तार करके उस डाली में प्रवेश कर गए अथवा एक वृक्ष में नाना एकेन्द्रिय जीव भी रह सकते हैं, किन्तु एक कुत्ते के शरीर में दो कुत्तों के जीव नहीं रह सकते । -जै. स. 1-1-59/V/ सिरेमल जैन, सिरोज १. कानजी स्वामी के जन्म के समय इन्द्र का प्रासन कम्पायमान नहीं हुअा, न ही जन्मोत्सव हुना २. पंचमकाल में सम्यग्दृष्टि जन्म नहीं लेता शंका-गुजराती आत्मधर्म ज्येष्ठ । वी. नि. सं. २४७४ में यह लिखा है कि जिससमय गुरुदेव श्री कानजीस्वामी का जन्म हुआ उससमय स्वर्गलोक में इन्द्र का आसन कम्मायमान हुआ और देवों ने जन्मोत्सव मनाया। इसप्रकार का डामा भी सोनगढ़ में खेला गया। क्या वर्तमान में जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, आर्यखंड में ऐसा कोई विशिष्टपुरुष जन्म ले सकता है कि जिसका जन्मोत्सव देव स्वर्गलोक में मनायें ? क्या पंचमकाल में सम्यग्दृष्टि जीव जन्म ले सकता है ? समाधान वर्तमानकाल हुँडा अवसर्पणी का पंचम दुःखमाकाल है । भरतक्षेत्र में इसकाल में सम्यग्दृष्टि या विशेष पूण्यशालीजीवों का जन्म नहीं होय है। मिथ्याष्टिजीवों का ही जन्म होय । अतः ऐसे जीवों के जन्म के समय स्वर्ग में देवों ने जन्मोत्सव मनाया हो या इंद्र का आसन कम्पायमान हुआ हो असम्भव व प्रागमविरुद्ध है। श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका में पंडितवर सदासुखदासजी ने लिखा भी है-'इस दुःखमकाल में जे मनुष्य उपजे हैं' ते पूर्वजन्म में मिथ्यादृष्टि, व्रत-संयमरहित होय ते भरत क्षेत्र में पंचमकाल के मनुष्य होय हैं पर कोऊ मिथ्याधर्मी कुतप, कुदान, मन्दकषाय प्रभाव सूावें सो राज्य ऐश्वर्य धनभोग सम्पदा नीरोगता पाय अल्पाय इत्यादिक भोग पाप-उपार्जन करनेवाले अन्याय-अभक्ष्य मिथ्यामार्ग में प्रवर्तनकरि संसारपरिभ्रमण करें हैं।' सम्यरदर्शन के विषय में श्री समन्तभद्रस्वामि ने इसप्रकार कहा है-'जो व्रती नहीं है और सम्यक्दर्शन करके शुद्ध हैं वे नरकगति को, तिर्यंचगति को, नपुंसकपने को, स्त्रीपने को, दुष्कुल को, रोग को, अल्पायु को और दरिद्रता को नहीं प्राप्त होते हैं। सम्यग्दर्शन से सहित प्राणी मरकर मनुष्यों में तिलक के समान श्रेष्ठ ( राजा ) होते हैं।' अतः श्री कानजीस्वामी का जन्म मिथ्यात्वसहित मिथ्यात्वकुल में हुआ, अतः उनके जन्म के समय इन्द्र का आसन कम्पायमान होना या स्वर्ग में जन्मोत्सव होना असम्भव है। -जै. सं. 6-11-58/V] सरदारमल जैन, सिरोंज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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