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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १३६९ स्थापना निक्षेप शंका -चेतन की चेतन में स्थापना होती है या नहीं ? नाटक में जो पार्ट करते हैं वह कौनसा निक्षेप है? समाधान-चेतन तो गुण है । चेतनगुण की चेतनगुण में स्थापना से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? अर्थात् कुछ भी नहीं। नाटक में जो राजा का भेष धारण किया जाता है वह एक अवस्था की स्थापना है। इसका स्थापना निक्षेप में ही अन्तर्भाव होता है। -जं. ग. 16-5-63/IX/ प्रो. मनोहरलाल जैन अन्य प्रतिमा के सामने अन्य भगवान की स्थापना किस निक्षेप से? शंका-साक्षात् प्रतिमा को भगवान माना जाता है सो स्थापना निक्षेपसे और पार्श्वनाथ की प्रतिमा के सामने शांतिनाथ की स्थापना, आह्वानन किया जाता है सो कौन से निक्षेप से, आज ये भगवान मोक्ष गये या जन्मे सो कौन से निक्षेप से ? समाधान-पार्श्वनाथ की प्रतिमा के सामने शांतिनाथभगवान का आह्वानन आदि किया जाता है सो भी स्थापनानिक्षेप है। पंडितवर सदासुखदासजी ने श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका में लिखा है 'एक तीर्थंकर में एक का भी संकल्प और चौबीस का भी संकल्प संभव है। अर प्रतिमा के चिह्न हैं सो प्रतिमा के चरणचौकी में नामादिक व्यवहार के अथि हैं पर एक अरहन्त परमात्मा स्वरूपकरि एक रूप है पर नामादिक करि अनेक स्वरूप है। सत्यार्थ ज्ञानस्वभाव तथा रत्नत्रयरूपकरि वीतरागभावकरि पंचपरमेष्ठीरूप एक ही प्रतिमा जाननी। विशेष के लिये पं० सदासुखदासजी की टीका सहित रत्नकरण्ड श्रावकाचार पृष्ठ ३१६-३२१ 'सस्ती ग्रन्थमाला' देखना चाहिए। 'प्राज ये भगवान मोक्ष गये या जन्मे' ऐसा कथन नंगमनय की अपेक्षा से है अथवा स्थापनानिक्षेप की अपेक्षा से है, क्योंकि भूतकाल की स्थापना वर्तमानकाल में की जाती है। -जै. सं. 15-8-57/..../श्रीमती कपूरीदेवी भावी नो भागमद्रव्य निक्षेप विषयक स्वरूप-स्पष्टीकरण शंका-धवल पु० ९ पृ०७पर भावी नोआगमद्रष्यनिक्षेप का लक्षण इसप्रकार किया गया है-'भविष्यकाल में जिनपर्याय से परिणमन करनेवाला भावीद्रव्यजिन है।' इसके साथ-साथ भविष्यकाल में जिनप्राभत को जाननेवाले जीव के नोआगमभावीजिनत्व का निषेध इसलिये किया है कि आगम संस्कार पर्याय का आधार होने से अतीत-अनागत व वर्तमान आगमद्रव्य के नो आगमद्रव्यत्व का विरोध है, किन्तु ध. पु. ३ पृ. १५ पर लिखा है'जो जीव भविष्यकाल में अनन्तविषयक शास्त्र को जानेगा उसे भावी नोआगमद्रव्यानन्त कहते हैं।' एक ही आचार्य के वचनों में भावी नोआगम-द्रव्य-निक्षेप के लक्षण में परस्पर विरोध क्यों है ? समाधान-परस्पर विरोध नहीं है, विवक्षा भेद से दोनों लक्षणों में भेद हो गया है । धवल पु० ९ पृ०७ पर 'जिन' की अपेक्षा से भावी नो आगमद्रव्य निक्षेप का लक्षण किया गया है। 'जिन' जीव द्रव्य की पर्याय विशेष है। अतः जीव जिनपर्याय से परिणमन कर सकता है, किन्तु संख्या न द्रव्य है, न गुण है, न पर्याय है। जिनों की संख्या हीनअधिक हो सकती है, इसीलिए जघन्य, उत्कृष्ट व मध्यम तीनप्रकार की संख्या का कथन किया गया है। संख्या परसापेक्ष धर्म है। अनन्त भी संख्या है। अतः अनन्तसंख्या जीवद्रव्य नहीं है, न जीवद्रव्य की पर्याय है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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