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________________ १३५२ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : समाधान - सुवर्ण और सुवर्णपाषाण में जिसप्रकार साध्य - साधनभाव है, उसीप्रकार निश्चयरत्नत्रय और व्यवहाररत्नत्रय में साध्य साधनपना है । श्री अमृतचन्द्राचार्य ने पंचास्तिकाय में कहा भी है 'न चैतद्विप्रतिषिद्ध' निश्चयव्यवहारयोः साध्यसाधनभावत्वात् सुवर्ण-सुवर्णपाषाणवत् । अतएवोभयनयायत्ता पारमेश्वरी तीर्थप्रवर्तनेति ।। (गा. १५९ टीका ) निश्चयमोक्षमार्ग साधनभावेन पूर्वोद्दिष्टव्यवहारमार्ग निर्देशोऽयम् ॥ ( गाथा १६० की उत्थानिका) अतो निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गयोः साध्यसाधनभावो नितरामुपपन्न इति । ( गा. १६१ टीका ) । अर्थ--- निश्चयरत्नत्रय और व्यवहाररत्नत्रय में परस्पर विरोध आता है, ऐसा भी नहीं है, क्योंकि सुवर्ण और सुवर्णपाषाण की भांति निश्चय और व्यवहार का साध्य-साधनपना है, इसीलिये पारमेश्वरी अर्थात् जिनभगवान की तीर्थप्रवर्तना दोनों नयों के प्राधीन है । ( गा. १५९ टीका ) निश्चयमोक्षमार्ग के साधनरूप से पूर्वोद्दिष्ट व्यवहारमोक्षमार्ग अर्थात् व्यवहाररत्नत्रय का यह निर्देश है । ( गा. १६० की उत्थानिका ) निश्चयमोक्षमार्ग अर्थात् निश्चयसम्यग्दर्शन- ज्ञान - चारित्र और व्यवहारमोक्षमार्ग अर्थात् व्यवहार सम्यम्दर्शन - ज्ञान - चारित्र का साध्य - साधनपना अत्यन्त घटित होता है । जिसप्रकार सुवर्णपाषाण साधन है और सुवर्ण साध्य है उसीप्रकार व्यवहारसम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र अर्थात् व्यवहाररत्नत्रय साधन है और निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र अर्थात् निश्चयरत्नत्रय साध्य है। जिसप्रकार सुवर्णपाषाण पहले होता है, पश्चात् उसके द्वारा सुवर्ण प्राप्त किया जाता है, इसीप्रकार व्यवहार पहले होता है, पश्चात् उसके द्वारा निश्चय प्राप्त किया जाता है । - छ. ग. 4-3-71 / V / सुलतानसिंह निश्चय व व्यवहार में साध्यसाधक माव मानने से ही मुक्ति की सिद्धि होती है शंका- 'व्यवहाररत्नत्रय करते-करते निश्चयरत्नत्रय हो जायेगा' ऐसा जो मानता है क्या वह मिथ्यादृष्टि है ? समाधान —-व्यवहाररत्नत्रय पूर्वक ही निश्चयरत्नत्रय की प्राप्ति होती है । व्यवहाररत्नत्रय के बिना निश्चयरत्नत्रय की प्राप्ति नहीं हो सकती अतः व्यवहाररत्नत्रय निश्चयरत्नत्रय का कारण है । 'व्यवहाररत्नत्रय का प्रभाव होने पर निश्चयरत्नत्रय की उत्पत्ति होती है अतः व्यवहाररत्नत्रय निश्चयरत्नत्रय का कारण नहीं है किन्तु व्यवहाररत्नत्रय का अभाव निश्चय रत्नत्रय के लिये कारण है ।' ऐसी मान्यता भी ठीक नहीं है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि के व्यवहाररत्नत्रय का अभाव होने पर निश्चयरत्नत्रय का प्रसंग या जावेगा, किन्तु मिथ्यादृष्टि के निश्चयरत्नत्रय होता ही नहीं । यथार्थश्रद्धान, ज्ञान व चारित्ररूप सामान्यरत्नत्रय उभय ( व्यवहार व निश्चय ) रत्नत्रय में समानरूप से पाया जाता है अतः 'व्यवहाररत्नत्रय का सर्वथा अभाव निश्चय का कारण है' ऐसा कहना उचित नहीं है । यद्यपि कारणसमयसार के विनाश होने पर कार्यसमयसार का उत्पाद होता है, किन्तु उन दोनों का आधारभूत परमात्मद्रव्य ध्रौव्यरूप से रहता है । ( वृ० द्रव्यसंग्रह गाथा २२ टीका ) 'व्यवहाररत्नत्रय कारण है और निश्चयरत्नत्रय उस ( व्यवहाररत्नत्रय ) का कार्य श्रागम प्रमारण इसप्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only ।' इस विषय में www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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