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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १३०५ इसप्रकार अशुद्ध निश्चयनय से सम्यक्त्वादि रत्नत्रय से बंध सिद्ध हो जाने पर और शुद्ध निश्चयनय से बंध नहीं होने से किसी का एकांतपक्ष नहीं ग्रहण करना चाहिये । गोपी की मथानी का दृष्टान्त देते हुए श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है कि यदि एकांतपक्ष ग्रहण किया जायगा तो मोक्ष प्राप्त नहीं होगा । इसप्रकार रत्नत्रय से बंध व मोक्ष दोनों कार्य होते हैं । -.. 15 a 29-4-71/ 5-6/7-5/...... नय, निक्षेप व्यवहारनय का अर्थ शंका - व्यवहारनय का क्या अर्थ है ? समाधान- व्यवहार का अर्थ है विकल्प, भेद तथा पर्याय । कहा भी है"ववहारो य वियप्पो भेदो तह पज्जओ त्ति एयट्ठो ।" गो. जी. ५७२ "व्यवहारेण विकल्पेन भेदेन पर्यायेण देशितः कथित इति व्यवहारदेशितो व्यवहारनयः ।" व्यवहार, विकल्प, भेद, पर्याय ये एक अर्थ के वाचक शब्द हैं । व्यवहारनय का विषय विकल्प, भेद तथा पर्याय है । जो भेद से, विकल्प से या पर्याय से कथन करे वह व्यवहारनय है । छौ. ग. 4-3-71 / V / सुलतानसिंह समयसार पृ. १४ अजमेर से प्रकाशित । निश्चय और व्यवहारनय का स्वरूप शंका - निश्चयनय और व्यवहारनय का वास्तविक स्वरूप क्या है ? क्या दोनों नयों का ग्रहण करना उपादेय है ? यदि है तो क्यों और नहीं है तो क्यों ? समाधान-नय के द्वारा पदार्थ का ज्ञान होता है। जैसे कहा भी है - " प्रमाणनयैरधिगमः " ।। १६ ।। त. सू. 1 अर्थ - प्रमाण और नयों से पदार्थों का ज्ञान होता है । "प्रमाणादिव नयवाक्याद्वस्त्ववगममवलोक्य 'प्रमाणनये रधिगमः ।' इति प्रतिपादितत्वात् ।" Jain Education International अर्थ — जिसप्रकार प्रमाण से वस्तु का बोध होता है उसीप्रकार नय वाक्य से भी वस्तु का ज्ञान होता है, यह देखकर तत्त्वार्थसूत्र में प्रमाणनयैरधिगमः, इसप्रकार प्रतिपादन किया है । " किमर्थं नय उच्यते ? स एव यथात्म्योपलब्धिनिमित्तत्वाद्भावानां श्रेयोऽपदेशः ।" For Private & Personal Use Only ज. ध. पु. १ पृ. २०९ । www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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