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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १२९७ (१) उभयविध कारण बिना कार्य नहीं होता (२) स्वभाव निष्कारण होता है शंका-जीव और कर्म का संबंध सादि मानने से पहले तो शुद्धात्मा में बंध हो नहीं सकता, क्योंकि बिना कारण के कार्य होता ही नहीं। थोड़ी देर के लिये यह भी मान लिया जाय कि बिना रागद्वेषरूप कारण के शुद्धात्मा भी बंध करता है तो फिर बिना कारण से होनेवाला वह बंध किसतरह छूट सकता है ? यदि रागद्वेषरूप कारणों से बंध माना जाय तब तो उन कारणों के हटाने पर बंधरूप कार्य भी हट जाता है, परन्तु बिना कारण से होनेवाला बंध दूर हो सकता है या नहीं ऐसी अवस्था में इसका कोई नियम नहीं है। इसलिए मोक्ष होने का भी कोई निश्चय नहीं है । इसतरह यदि बिना कारण के कार्य होता ही नहीं तो सुप्रभातस्तोत्र के अन्तिम श्लोक के अन्तिम चरण में "निष्कारणं च करुणाकरतां दधानः । स श्रीजिनो जनयतान्मम सुप्रभातम् ।" ऐसा क्यों कहा है ? इसीतरह तीर्थकरभगवान के समवसरण का विहार होना और एक जगह ठहरना आदि भी निष्कारण होता रहता है, ऐसा बतलाते हैं। यह कैसे संभव है ? क्योंकि कारणसामग्री के अभाव में कार्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती है, यह आपका सिद्धान्त है। ___समाधान-कोई भी कार्य अन्तरंग और बहिरंग इन दोनों कारणों के बिना उत्पन्न नहीं होता है। सर्वार्थसिद्धि में उत्पाद का लक्षण निम्नप्रकार कहा है "उभय-निमित्तवशाद् भावान्तरावाप्तिरुत्पादनमुत्पादः ॥ ५-३० ॥" अर्थ-उभय ( अंतरंग और बहिरंग ) निमित्त के वश से जो नवीनअवस्था की प्राप्ति होती है वह उत्पाद है। 'करुणा' जीव का स्वभाव है । स्वभाव कारण के बिना होता है । कहा भी है "करुणाए कारणं कम्मं करणे ति कि ण वृत्तं ? ण करणाए जीवसहावस्स कम्मणिदत्तविरोहादो। अकरणाए कारणं कम्मं वत्तव्वं ? ण एस दोसो, संजमघादिकम्माणं फलभावेण तिस्से अब्भुवगमादो।" [ध. पु. १३ पृ. ३६१-३६२ ] अर्थ-करुणा का कारणभूत कर्म करुणाकर्म है, ऐसा क्यों नहीं कहा ? ऐसा नहीं कहा, क्योंकि करुणा जीव का स्वभाव है, अतएव उसे कर्मजनित मानने में विरोध पाता है। इसपर प्रश्न होता है कि अकरुणा का कारण कहना चाहिए? यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अकरुणा को संयमघाती कर्मों के फलरूप से स्वीकार किया गया है। अर्थात् अकरुणा का कारण चारित्रमोहनीयकर्मोदय है। -जें. ग. 22-3-73/V/ मुनि श्री आदिसागरजी महाराज, शेडवाल (१) अनेक कार्य कारित्व (२) रत्नत्रय से बन्ध व मोक्ष दोनों सम्भव शंका-'अनेककार्यकारित्व' को स्पष्ट कीजिये । समाधान-एक पदार्थ सहकारीकारणों के वैविध्य से अनेककार्यों का सम्पादन करता है, अतः वह अनेक कार्य-कारित्व कहा जाता है। जैसे एक ही दीपक एक ही समय में अन्धकार का नाश करता है, प्रकाश फैलाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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