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________________ व्यक्तित्व पौर कृतित्व ] [ १२३७ ___ यदि अन्यगुणों में प्रमेयत्व ( शेयत्व ) गुण माना जावे तो गुण के उपर्युक्त लक्षण में बाधा आती है, क्योंकि गुण का आश्रय द्रव्य है, एकगुण दूसरेगुण का आश्रय नहीं है। दूसरे गुण में अन्यगुण रहने से मिर्गुणा गुणाः' व्यर्थ होता है। प्रतः प्रमेयत्व ( ज्ञेयत्व ) गुण के अतिरिक्त अन्य गुणों में प्रमेयत्व ( ज्ञेयत्व ) गुण नहीं रहता है। यदि पर्याय के प्राथय ज्ञेयत्व ( प्रमेयत्व ) गुण को माना जायगा तो पर्याय प्रतिसमय उत्पन्न होती है और विनशती है (पर्येति समये समये उत्पादं विनाशं च गच्छतीति पर्यायः ) अतः गुण के भी प्रतिसमय उत्पन्न होने और विनष्ट होने का प्रसंग आ जायगा, किन्तु 'सहमुवो गुणाः' गुण तो सदा द्रव्य के साथ रहते हैं अर्थात गुण अन्वयी हैं। "अन्धयिनो गुणा व्यतिरेकिणः पर्यायाः ।" ( सर्वार्थसिद्धि ५।३८ ) प्रदेशत्व की अपेक्षा गुण और पर्याय द्रव्य से भिन्न है अतः द्रव्य के ज्ञेय होनेपर उससे अभिन्न गुण और पर्याय भी ज्ञान का विषय बन जाती हैं। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने भी पंचास्तिकाय में कहा है पज्जयविजुदं दव्वं दम्वविजुत्ता य पज्जया पत्थि । दोन्हं अणण्णभूदं भावं समणा पविति ।। १२ ॥ वन्वेण विणा गुणा गुणेहिं, दव्वं विणा ण संभवदि । अव्वदिरित्तो भावो, दव्यगुणाणं हववि तम्हा ॥ १३ ॥ पर्याय से रहित द्रव्य पौर द्रश्य से रहित पर्यायें नहीं होती। द्रव्य और पर्याय का अनन्यभाव है अर्थात् दोनों में भिन्नता नहीं है। द्रव्य बिना गुण नहीं होते और गुणों के बिना द्रव्य नहीं होता। इसलिये द्रव्य और गुणों का अव्यतिरिक्त (अभिन्न ) भाव है। पं० दरबारीलाल कोठियाजी ने भी लिखा है-"यथार्थ में गुण-कर्मादि द्रव्य के विभिन्न धर्म अथवा परिणमन मात्र हैं, वे स्वतन्त्र पदार्थ नहीं हैं । वे द्रव्य के साथ ही उपलब्ध होते हैं, द्रव्य को छोड़कर नहीं पौर इसलिये वे द्रव्य के आश्रित हैं और द्रव्य के परतन्त्र हैं। पदार्थ तो ठोस और अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखनेवाला होता है। यदि गुणकर्मादि (पर्यायादि ) द्रव्य से भिन्न पदार्थ हों तो 'प्रस्य द्रव्यस्य अयं गुणः' इस द्रव्य का यह गुण है, इत्यादि व्यपदेश नहीं हो सकता, क्योंकि उनका कोई नियामक नहीं है ।" शंका-क्या कालिकपर्यायों से द्रव्य की अभिन्नता है या मात्र एक पर्याय से ? समाधान-द्रव्य का स्वभाव परिणमनशील है । कालिकपर्यायों में परिणमन करने के कारण कालिकपर्यायों से प्रभिन्नता को प्राप्त होता है। क्योंकि द्रव्य से रहित पर्याय और पर्याय से रहित द्रव्य नहीं होता। शंका-द्रव्य क्या एक समय में तीन काल को समस्त पर्यायों से अभिन्नता को प्राप्त होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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