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________________ १२०४ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार । क्रियावती शक्ति परमाणु में है, पर सिद्धों में नहीं शंका-क्या पुदगल परमाणु और सिद्धों में भी क्रियावतीशक्ति होती है ? समाधान-क्रिया का लक्षण परिस्पंदन है अथवा परिस्पंदनरूप पर्याय को क्रिया कहते हैं। श्री अमृत. चन्द्राचार्य ने कहा है "परिस्पन्दनलक्षणा क्रिया।" प्र. सा. गा. १२६ टीका "परिस्पन्दनरूपपर्यायः क्रिया।" पं. का. गाथा ९८ टीका प्रदेश–परिस्पन्दनरूप पर्याय अशुद्धजीवों और पुद्गलों में ही होती है अतः क्रियावतीशक्ति अशुद्धजीवों और पुद्गलों में होने से यह पर्यायशक्ति है, द्रव्यशक्ति नहीं है । शुद्धजीव में निष्क्रियत्वशक्ति है। श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा भी है "सकलकर्मोपरमप्रवृत्तात्मप्रदेशनष्पंद्यरूपा निष्क्रियत्वशक्तिः।" ( स. सा. आत्मख्याति ) अर्थ-समस्त कर्मों के उपरम से प्रवृत्त आत्मप्रदेशों की निस्पन्दतास्वरूप निष्क्रियत्वशक्ति है । "जीवानां सक्रियत्वस्य बहिरंगसाधनं कर्मनोकर्मोपचयरूपाः पुदगला इति ते पुदगलकरणाः। तदमावान्नि:क्रियत्वं सिद्धानाम् । पुद्गलानां सक्रियत्वस्य बहिरंगसाधनं परिणामनिवर्तकः काल इति ते कालकरणाः । न च कौवीनामिव कालस्याभावः । ततो न सिद्धानामिव निष्क्रियत्वं पुद्गलानामिति ।" ( पं. का. गाथा ९८ टीका) अर्थ-जीवों के सक्रियपने का बहिरंग साधन कर्म-नोकर्म का संचयरूप पुद्गल है, इसलिये जीव पुद्गल करणवाले हैं। उसके प्रभाव के कारण सिद्धों के निष्क्रियपना है। पुदगलोंको सक्रियपने का बहिरंग साधन परि. णाम निष्पादक काल है, इसलिये पुद्गल काल करण वाले हैं ! कर्मादि की भांति काल का अभाव नहीं होता, इसलिये सिद्धों की भांति पुद्गलों को निष्क्रियपना नहीं होता। पुद्गल परमाणु यद्यपि एकप्रदेशी है तथापि वह बन्ध को प्राप्त हो सकता है, इसलिये उसको अस्तिकाय कहा है। इसी अपेक्षा से वह सक्रिय भी है। अभव्यजीव की अशुद्धपरिणति को अशुद्धशक्तिकारणक कहना हो तो उसे जीव के विभाव परिणाम की या अशुद्धजीव की शक्ति कहना होगा, क्योंकि उसके विभावभावों का अभाव होते ही उसकी अशुद्धि का भी अभाव हो जाता है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि अशुद्ध बने हुए भव्यजीव के अशुद्धशक्ति अनादि-सांत है। वह अशुद्धभव्यजीव के विभावपरिणाम की शक्ति है, शुद्धजीव की नहीं है। ( पं० मोतीलाल जैन द्वारा सम्पादित समयसार) इससे स्पष्ट हो जाता है कि क्रियावतीशक्ति अर्थात् योगशक्ति शुद्धजीवों में नहीं है, क्योंकि योग विभावपर्यायरूप शक्ति है। -पो. ग. 6-5-71/VII/ सुल्तानसिंह प्रज्ञान पर्याय किस द्रव्य तथा गुण को है ? जीव को विभिन्न अवस्थानों में उसका अस्तित्व शंका-मज्ञान क्या है ? कौन से द्रव्य तथा गुण को पर्याय है ? उसको गुणस्थानों पर घटाकर बतलाइये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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