SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ११७७ कर्तृत्वशक्ति, भोक्तृत्वशक्ति, निष्क्रियत्वशक्ति ये स्वाभाविकशक्ति हैं, इनके विपरीत क्रियावती आदि विशक्ति का कथन आर्ष ग्रन्थों में नहीं पाया जाता है । कर्मोदय के कारण इन शक्तियों का विपरीत परिणमन सम्भव है । जैसा कि श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है "यतः परिणामस्वभावत्वेनात्मनः सप्ताचिः संगतं तोयमिवावश्यं माविविकारत्वल्लौकिकसंगात्संयतोऽप्यसंयत एव स्यात् ,"1 क्योंकि आत्मा परिणामस्वभाववाला है इसलिये लौकिकसंग से विकार अवश्यम्भावी है अतः संयत भी असंयत हो जाता है । जैसे अग्नि के संयोग से जल उष्ण हो जाता है । इसप्रकार आत्मा में स्वाभाविकशक्ति तो है, किन्तु वैभाविकशक्ति या क्रियावतीशक्ति नहीं है । - ग. 1-1-76 / VIII/........ शुद्ध जीव में पर्यायरूप वैभाविक शक्ति होती है; द्रव्यरूप नहीं शंका- समयसार के अन्त में ४७ शक्तियों का कथन है। वे शुद्धजीव की ही शक्तियाँ हैं या संसारी की भी ? विभावरूप परिणमन करने की शक्ति भी कोई विशेष होती है क्या ? समाधान - ४७ शक्तियाँ प्रत्येक जीव में हैं । उनमें से कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जो संसारीजीव के प्रगट नहीं हुईं। श्री अरहंत भगवान व सिद्धभगवान के प्रगट हो गई हैं जैसे सर्वदशस्व शक्ति, सर्वज्ञत्वशक्ति | कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जो मात्र श्री सिद्धभगवान के व्यक्त हैं जैसे अमूर्तस्वशक्ति | विभावरूप परिणमन करने की शक्ति अर्थात् वैभाविकशक्ति पर्यायशक्ति है । जो प्रशुद्ध जीव के होती है । जीव की अशुद्ध अवस्था का अभाव होने पर वैभाविकशक्ति का भी प्रभाव हो जाता है । कहा भी है - " भव्यजीव की अशुद्धपरिणति को प्रशुद्धशक्ति कारण कहना हो तो उसे जीव के विभावपरिणाम की या शुद्धजीव की शक्ति कहना होगा, क्योंकि उसके विभावों का अभाव होते ही उसकी प्रशुद्धि का भी प्रभाव हो जाता है । दूसरी बात यह है कि जिसप्रकार शुद्धशक्ति की अभिव्यक्ति हो जाने पर वह पारिणामिक नित्य होने से कालद्रव्य के निमित्त से उसका शुद्ध परिणमन होता रहता है, उसीप्रकार अशुद्धि का अभाव होने पर भी अशुद्धशक्ति जीव के साथ तादात्म्यसम्बन्ध को प्राप्त हुई होने से जीव की शुद्धावस्था में भी जीवाश्रित रहती है। ऐसा माना तो जीव की शुद्ध अवस्था में भी उस शक्ति का कालद्रव्य के निमित्त से अशुद्धपरिणमन होता ही रहेगा, किन्तु शुद्धजीव के अशुद्धपरिणमन का सद्भाव न शास्त्र सम्मत है और न युक्ति सिद्ध है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि अशुद्ध ब 'हुए भव्यजीव की अशुद्धशक्ति श्रनादिसांत है, वह अशुद्धजीव के विभावपरिणाम की शक्ति है, शुद्धजीव की नहीं है ।" ( फलटन नगरस्थ श्री वृषभनाथ दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित समयसार पृ० १२५ ) - जै. ग. 4-2-71 / VII / कस्तूरचन्द वैभाविकशक्ति तथा वैभाविक गुण शंका- भाविकशक्ति तथा वैभाविकगुण में क्या अन्तर है ? क्या ये दोनों पदार्थ में नित्यरूप से रहते हैं ? क्या वैभाविकगुण निश्वरूप से द्रव्य में रहता है और वैभाविकशक्ति अनित्यरूप से रहती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy