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________________ ध्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ११६५ शंका-क्या ये कथन ठीक हैं ? (१) अपना ज्ञान स्वयं खुद ज्ञान को नहीं जानता (२) अपना ज्ञान स्वयं खुद अपनी आत्मा के सिवाय अन्य आत्माओं को जान सकता है समाधान-धवलमतानुसार आपका कथन ठीक है। -पत्र 22-6-80/ज. ला. जैन, भीण्डर अनुजीवी व प्रतिजीवी, ऐसे गुणों के भेद पार्ष नहीं हैं शंका-अनुजीवी गुण तथा प्रतिजीवी गुण; ऐसे गणों के दो भेद पंचाध्यायी उत्तरार्ध ७४१३७९ में देखने में आते हैं। जैनसिद्धान्तप्रवेशिका में इसी का अनुसरण विदित होता है। श्लोकवातिक के हिन्दी अनुवाद में भी प्रतिजीवीगण व अनुजीवीगुण; ये शब्द देखने में आते हैं [ श्लो० ११४१५३।१५८ ] परन्तु वह भी स्पष्ट है कि पञ्चाध्यायी का अथवा तदनुसर्ता का अनुसरण है। परन्तु किसी आर्षग्रन्य में ये नाम देखने को नहीं मिलते हैं। तब क्या आचार्यों के ग्रन्थों से अप्रमाणित ये भेद ग्राह्य हैं अथवा नहीं; स्पष्ट करें ? समाधान - अनुजीवी व प्रतिजीवी; ये आर्षशब्द नहीं हैं, किसी के मनधड़न्त हैं । हमें सदा आर्षवाक्यों को प्रमाण करना चाहिये। -पत्राचार 22-10-79/ I. ला. गेन भीण्डर (१) नास्तित्वगुण का सद्भाव सिद्धों में कैसे ? (२) नास्तित्वस्वभाव अनन्तविध होता है। (३) नास्तित्व; यह स्वभाव भी है तथा कथंचित् गुण भी। (४) किसी भी पार्ष ग्रन्थ में प्रतिजीवो-अनुजीवी; ऐसे गुणों के भेद नहीं मिलते शंका-सिद्धों के प्रतिजीवी गुण में नास्तित्वगुण कहा । संसार का नाश कर दिया इस अभिप्राय से नास्तित्वगुण कहा या किसी अन्य अभिप्राय से? समाधान-आर्षग्रन्थों में किसी भी गुण की 'प्रतिजीवी' ऐसी संज्ञा नहीं है और न गुणों के भेदों में से कोई 'प्रतिजीवी' ऐसा भेद है । अत: 'प्रतिजीवीगुण' यह संज्ञा आर्षग्रन्थानुकूल नहीं है। मार्षग्रन्थों में सामान्य-गुण व विशेष-गुण इसप्रकार गुण के दो भेद हैं । अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व ये द्रव्यों के सामान्य गुण हैं। ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व अवगाहनहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व ये द्रव्यों के विशेष गुण हैं । कहा भी है 'अस्तित्वं वस्तुत्वं ब्रव्यत्वं प्रमेयत्वं अगुरुलघुत्वं प्रवेशत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं मूतत्वममूर्तत्वं ब्रव्याणां दश सामान्य गुणाः । ज्ञानदर्शनसुखवीर्याणि स्पर्शरसगन्धवर्णाः गतिहेतुत्वं स्थिति हेतुत्वमवगाहनहेतुत्वं वर्तनाहेतुत्वं चेतन. स्वमचेतनत्वं मूर्तत्वममूर्तस्वं द्रव्याणां षोडश विशेषगुणाः ।' आलापपद्धति इन गुणों में नास्तित्व का उल्लेख नहीं है, किन्तु सामान्य स्वभावों में नास्तित्व का उल्लेख है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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