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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व । [ ११३५ नव केवल लब्धि शंका-श्री. दौलतरामजी कृत भाषा स्तुति में 'नव केवल लब्धि रमा घरंत।' लिखा है। ये नौ केवल लब्धियां कौन-कौन सी हैं ? समाधान-१. केवलज्ञान, २. केवलदर्शन, ३. क्षायिकसम्यक्त्त ४. क्षायिकचारित्र, ५. अनन्तदान, ६. अनन्तलाभ, ७. अनन्तभोग, ८. अनन्त उपभोग, ९. अनन्तवीर्य: ये नौ केवल लब्धियाँ हैं। कहा भी है "ज्ञानदर्शनदानलाभमोगोपभोगवीर्याणि च ॥ २४ ॥" मोक्षशास्त्र । अर्थ-क्षायिक भाव के नौ भेद हैं-क्षायिकज्ञान, क्षायिकदर्शन, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग, क्षायिकउपभोग, क्षायिकवीर्य, क्षायिकसम्यक्त्व और क्षायिकचारित्र । धी सर्वार्थसिद्धि टीका में श्रीपूज्यपादस्वामी ने भी कहा है "सत्र में च' शब्द सम्यक्त्व और चारित्र के ग्रहण करने के लिये प्राया है। ज्ञानावरणकर्म के अत्यन्तक्षय से क्षायिककेवलज्ञान होता है । इसीप्रकार दर्शनावरणकर्म के अत्यन्तक्षय से क्षायिककेवलदर्शन होता है। दानान्तरायकर्म के अत्यन्तक्षय से अनन्त प्राणियों के समुदाय का उपकार करनेवाला क्षायिकअभयदान होता है। समस्त लाभान्तरायकर्म के क्षय से कवलाहार क्रिया से रहित केवलियों के क्षायिकलाभ होता है जिससे उनके शरीर को बलप्रदान करने में कारणभूत, दूसरे मनुष्यों को असाधारण परम शुभ और सूक्ष्म ऐसे अनन्त परमाणु प्रतिसमय सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं। समस्त भोगान्तरायकर्म के क्षय से अतिशय वाले क्षायिकमनन्तभोग का प्रादुर्भाव होता है, जिससे कुसुमदृष्टि आदि आश्चर्य विशेष होते हैं । समस्त उपभोगान्त राय के नष्ट हो जाने से अनन्त क्षायिक उपभोग होता है, जिससे सिंहासन, चमर और तीनछत्र आदि विभूतियाँ होती हैं। वीर्यान्तरायकर्म के प्रत्यन्तक्षय से क्षायिकानन्तवीर्य प्रगट होता है। पूर्वोक्त सात प्रकृतियों ( मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व अनन्तानुबन्धीको-मान-माया-लोभ ) के अत्यन्त विनाश से क्षायिकसम्यक्त्व होता है। इसीप्रकार चारित्रमोहनीयकर्म के प्रत्यन्त विनाश से क्षायिकचारित्र होता है।' सिद्धों के भी क्षायक लब्धियाँ शंका-ये नव केवल लब्धि अरहंत भगवान की हैं, किन्तु सिद्ध भगवान में ये नव केवल लन्धि नहीं पाई जाती हैं। "औपशमिकाविभध्यत्वानां च ।३। अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानवर्शनसिद्धस्वेभ्यः ॥४॥" मो० शा० अ० १० अर्थात औपशमिकआदि भावों से भव्यत्व तक भावों का अभाव होने से मोक्ष होता है, पर केवल सम्यक्त्व केवलज्ञान केवलदर्शन और सिद्धत्वभाव का अभाव नहीं होता। इन सूत्रों से भी स्पष्ट है नौ केवललब्धि में से सिद्धों में मात्र तीनलब्धि रहती हैं। केवलज्ञान के साथ अनन्तवीर्य भी लिया जा सकता है क्योंकि ज्ञान और वीर्य का अविनाभावी सम्बन्ध है, किन्तु क्षायिक चारित्र दान लाम भोग-उपभोग तो किसी भी अपेक्षा नहीं ग्रहण हो सकते । सिखों में मात्र चार केवललब्धि होती हैं, इससे अधिक किसी भी आचार्य ने नहीं कही हैं, सिद्धों के गुण निम्न प्रकार सम्यवर्शन ज्ञान, अगुरुलघु अवगाहना । सूक्ष्म वीरजवान, निराबाध गुण सिद्धके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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