SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : जो कुछ आपसे मुझे मिला है, वह वचनातीत है, उसी के सहारे जीवन को आत्महितपरक मोड़ देने में सजगता बनी रहती है। कामना है कि आप यथासम्भव अतिशीघ्र मुक्तिरमा का वरण करें। अापको वन्दन ! वन्दन !! वन्दन !!! ज्ञान और चारित्र का मणिकाञ्चन योग * स्व० सरसेठ भागचन्द सोनी, अजमेर मुझे यह ज्ञात कर प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि दि० जैन समाज सम्माननीय विद्वान् सिद्धान्ताचार्य स्व० ० रतनचन्द्रजी सा० मुख्तार की स्मृति में ग्रन्थ का प्रकाशन कर रहा है। श्री मुख्तार सा० मेरे भली प्रकार परिचित पुरुष थे। आप सिद्धान्तशास्त्रों के गहन वेत्ता थे। मुझे अनेक बार आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कई अवसरों पर आपका निकट सान्निध्य भी मिला। मुझे एक बार सहारनपुर जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था तब आपने मुझे अपने दुष्प्राप्य शास्त्रों के दर्शन कराये थे । मैं आपकी इस शास्त्र भक्ति से सदा ही प्रभावित रहा हैं। आपका तत्त्वचिन्तन गहन और अन्तस्तलस्पर्शी था। कुछ वर्षों पूर्व धवला आदि महान् सिद्धान्तग्रन्थ केवल दर्शन-पूजन ही के लिये प्रयुक्त होते रहे, परन्तु आपने आचार्य संघों में जाकर साधु वर्ग के सम्पर्क में उक्त ग्रन्थों का वाचन, मनन और मन्थन किया; वह विद्वद्वर्ग के लिये प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय है । मैंने अजमेर में संघों के बिराजने पर आपको स्वाध्यायतत्पर संयमियों के मध्य तत्त्वचिन्तन करते हुए गम्भीर मुद्रा में शान्तचित्त देखा था और कभी-कभी थोड़ी देर के लिये उस चर्चा का रसास्वादन मैंने भी किया था। साधु वर्ग ने आपका सामीप्य पाकर जिनवाणी के मनन व मन्थन में प्रवृत्ति की है और सिद्धान्तग्रन्थों के पठन-पाठन का प्रचार-प्रसार हआ है। आपकी तत्त्वचर्चा और विषय विवेचन प्रणाली गंभीर होते हुए भी रोचक होती थी। चारित्रिक उज्ज्वलता से आपका सम्यग्ज्ञान और भी निखार को प्राप्त हो गया था। आपकी विद्वत्ता आदरणीय एवं अनुकरणीय है। आप चिरकाल तक स्वस्थ रहकर संयमीजनों को स्वाध्याय, मनन, चिन्तन, ध्यान, अध्ययन में अपना योग देते रहें तथा चारित्र पर अग्रसर होते रहें; मेरी सदा यही अभिलाषा रहती थी; परन्तु कर्मों का विधान कौन बदल सकता है ? २८ नवम्बर, १९८० के दिन आपका निधन हो गया। आपके देहावसान से सकल जैनसमाज को महान् शोक हुआ। मैं श्री शान्ति प्रभु से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि स्वर्गीय मुख्तार सा० यथा काल परम शान्ति को प्राप्त हों। जीवनदानी श्रुतसेवी * श्री कन्हैयालाल लोढ़ा, जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जयपुर स्वर्गीय श्री रतनचन्दजी 'मुख्तार' के नाम तथा विद्वत्ता से तो मैं बहुत पहले से ही परिचित था परन्तु मापसे मेरा प्रथम साक्षात्कार आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी महाराज के निवाई चातुर्मास में सवाईमाधोपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy