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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] स रागद्वेषाभ्याञ्च निरतोऽभूज् जिनेशागमाध्ययने 1 कर्म क्षपणकारणे सार भूते च सुखदर्शके ॥ ४ ॥ जिनाग माध्ययनरतः सततं ज्ञानोपयोगे निरतश्च 1 यतः सर्व शास्त्राणां पारगोऽभूत् स पद्यदेव सः ।। ५ ।। अचिन्त्य महिमा प्राज्ञोऽनुभूतात्म वैभवो वर्णी गुणी । भारतदेशभूषणः करणाद्यनुयोग विज्ञोऽणुव्रत ।। ६ ॥ श्रावक गुणोपेतः स उररीकृतैककाल संभोजनः । रत्नाकरो गुणज्ञो भूयात्सुखी स रतनचन्द्रः ।। ७ ।। प्रवक्ता श्लाघनीयश्च सर्वेषां हितचिन्तक: लोकप्रियो विरक्ताश: भूयात्सुखी गुणाकरः ॥ ८ ॥ भव्यानांतु बोधकः प्रापको मोक्ष वर्तमनो हापकः 1 1 कुज्ञानान्धकारस्य भूयात्सुखी स रत्नचन्द्र : 11 2 11 दि०२-६-७५ ई० तत्त्वज्ञानी पण्डितजी * पण्डित सुमतिबेन शहा, न्यायतीर्थ, सोलापुर स्वर्गीय पण्डित रतनचन्दजी मुख्तार जैन समाज के एक महान्, प्रकाण्ड पण्डित थे । उन्होंने श्री धवल, जयधवल, महावल आदि महाग्रन्थों का सखोज अभ्यास किया था। मैं जब-जब परम पूज्य १०८ शिवसागरजी महाराज और श्रुतसागरजी महाराज के संघ में दर्शनार्थ जाती थी, उस वक्त पण्डितजी हमें वहाँ मिलते थे । उस वक्त बहुत सखोज चर्चा रहती थी। मुझे उनसे बहुत लाभ हुआ । महाराज के दर्शन का लाभ और पण्डितजी के ज्ञान का विशेष लाभ मिलता था। हम सहारनपुर में पंडितजी के घर भी गये थे, वहाँ भी उनके अद्भुत ज्ञान का लाभ मिला। मुख्तार सा० जैनसमाज के तत्त्वज्ञानी पण्डित थे । ज्ञान के साथ वे चारित्र का भी पालन करते थे, द्वितीय प्रतिमाधारी थे । मैं दिवङ्गत पण्डितजी को हार्दिक भावना से श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ । Jain Education International [ ५३ निरभिमान व्यक्तित्व * श्री रतनलाल जैन (पंकज टेक्सटाइल्स) मेरठ शहर पूज्य, श्रद्धेय अध्यात्म व आगम के विशिष्ट अभ्यासी, सिद्धान्ताचार्य स्व० रतनचन्द मुख्तार सा० के प्रति मेरे जो कुछ भाव हैं, उन्हें शब्दों में उतार पाना मेरे लिए दुःसम्भवसा है। आपके ज्ञान-ध्यान को विद्वद्वर्ग या मुझ जैसे तुच्छ, पर निकटस्थ व्यक्ति ही समझ सकते हैं । व्रतों के सम्यक् अंगीकरण के साथ-साथ समता व निरभिमानता को लिए बुद्धि की सर्वमान्य पराकाष्ठा भी आप में बसी हुई थी; यह अनन्यप्राप्यमाण अवस्थान आश्चर्यप्रद था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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