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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ६६३ खेती द्वारा अन्न प्राप्त करना चाहता है फिर भी उस अन्न के साथ भूसा उत्पन्न हो ही जाता है। उसी प्रकार पूजा के द्वारा पूजक का लक्ष्य अक्षयपद की प्राप्ति है फिर भी पुण्यबंध हो जाता है जो भूसे के समान अक्षयपद रूपी अन्न को उत्पन्न करने में सहकारी कारण है । अक्षयपद को प्राप्त कर लेने पर जीव पुनः संसाररूपी पौधे को उत्पन्न नहीं कर सकता और न कर्मरूपी तुष से लिप्त होता है। चावलरूपी अक्षत भी धान्यरूपी पौधे को उत्पन्न नहीं कर सकता और न तुप से लिप्त होता है । अतः पूजक, अक्षयपद की समानता रखने वाले चावलों का पूजा के समय उपयोग करता है अर्थात् उन्हें काम में लाता है । निर्माल्य द्रव्य शंका -जो द्रव्य पूजा में चढ़ाया जाता है उसका सदुपयोग क्या होना चाहिए ? -- जै. ग. 21-1-63 / 1X / मोहनलाल समाधान- जिनेन्द्र भगवान की पूजा करने में जो द्रव्य चढ़ा दिया गया है, उस द्रव्य में किसी प्रकार से भी अपना स्वामित्व रखना या मानना उचित नहीं है। जब उस द्रम्य में स्वामित्व ही नहीं रहा तब उसके उपयोग का प्रश्न ही नहीं रहता। यदि स्वामित्व रहे तो सदुपयोग या असदुपयोग का प्रश्न हो सकता है। -जै. सं. 25-9-58 / कॅ. प. जैन, मुजफ्फरनगर देवगति के मिध्यादृष्टि देव कुदेव हैं शंका- मिथ्यादृष्टि कुदेव होते हैं अथवा सुदेव होते हैं ? यदि कहा जाय कि मिध्यादृष्टि कुदेव ही होते हैं, तो फिर आगम में इनकी पूजा का विधान मिलता है, वह क्यों मिलता है ? । समाधान - मिध्यादृष्टि सुदेव तो हो नहीं सकते, क्योंकि सुदेव तो सम्यग्दृष्टि ही होते हैं। आगम में कहीं पर भी मिथ्यारष्टिदेव की पूजा का विधान नहीं है। श्री अरहंत व श्री सिद्धदेव के अतिरिक्त अन्य किसी देव की पूजा का विधान आगम में नहीं है। पंचकल्याणक आदि विधान के समय जो दिक्पाल श्रादि का आह्वानन किया जाता है वे सब सम्यग्दृष्टि हैं, जिनेन्द्रभक्त हैं। पंचकल्याणक आदि महायज्ञ में किसी प्रकार का विघ्न या CTET न आजाय इसलिये सहयोग के लिये उन सम्यग्दृष्टि दिक्पाल आदि का आह्वानन किया जाता है। श्री अरहंत देव के समान उनको भी देव मानकर उनकी पूजा नहीं की जाती है । Jain Education International -f.. 8-6-72/VI/ at. a. of पद्मावती आदि देवियों का स्वरूप व महत्व शंका- पद्मावती आदि देवियां पूजनीय है या नहीं ? समाधान - पद्मावती आदि देवियां पांच परमेष्ठियों में गर्भित नहीं होतीं । इसलिए अरहन्त आदि पर - मेष्ठी की तरह वे पूजनीय नहीं है किन्तु वे जंनधर्म की अनुयायी है, साधर्मी हैं इसलिये वे आदरणीय हैं। प्रतिष्ठा पाठ आदि में इनका ब्राह्वान रक्षा हेतु किया जाता है। - जे. ग. 5-1-78 / VIII / शान्तिलाल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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