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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ५८५ नाश कर मोक्ष को जा सकता है। ज.ध. पु. ६ पृ. ११, ८२, ११६, १९२ पु. ७ पृ. ७७, ८४, १७४, २७६, ४०६ पु.९ पृ. १७७ पर भी इस प्रकार कथन है। -. ग. 21-3-63/IX/ब. प्र. स., पटना तीसरी पृथ्वी से निकले हुए जीव के प्राप्य/अप्राप्य पद शंका-तीसरे नरक तक का जीव निकलकर तीर्थकर तो हो सकता है, किंतु बलदेव, चक्रवर्ती आदि नहीं हो सकता । क्या तीर्थकर पद बलदेव, चक्रवर्ती आदि पद से हीन है ? समाधान-किसी भी नरक से निकलकर कोई भी जीव बलदेव, वासुदेव व चक्रवर्ती नहीं हो सकता किंतु प्रथम, दूसरे और तीसरे नरक से निकलकर जीव तीर्थकर हो सकता है। __ मोक्षमार्ग की अपेक्षा तीर्थकर पद सर्वोत्कृष्ट है, क्योंकि इससे तीर्थ की प्रवृत्ति होती है, किंतु सांसारिक वैभव की अपेक्षा बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती के अधिक वैभव होता है। -जें.ग. 2-5-63/IX/मगनमाला प्लॅन नारकी अन्तर्मुहूर्त बाद पुनः नारको शंका-अन्तरानुगम अधिकार में नरकगति के 'जघन्य अन्तर' के विषय में यह प्रश्न है कि "इतने थोड़े समय का अन्तर लेकर तुरन्त फिर नरक जाने की योग्यता" यह कैसे ? समाधान-एक जीव की अपेक्षा नरक गति में नारकी जीव का अन्तर कम से कम अन्तर्मुहूर्त काल है (ध. पु. ७ पृ. १८७ सूत्र १-२) नरक से निकलकर गर्भोपक्रान्तिक तिथंच जीवों में अथवा मनुष्यों में उत्पन्न हो सब से कम आयु के भीतर नरकायु को बाँध मरण कर पुनः नरकों में उत्पन्न हुए नारकी जीव के नरकगति से अन्तमुहूर्त मात्र अन्तर पाया जाता है (धवल टीका) सातों ही पृथिवियों में नारकी जीवों के गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त तियंचों व मनुष्यों में उत्पन्न होकर सबसे कम अन्तमहत काल रहकर विवक्षित नरक में उत्पन्न हए जीव का अंतरकाल होता है ( पृ० १८८ सूत्र ४ पर टीका ) पर्याप्ति पूर्ण होने के पश्चात् गर्भोपक्रान्तिक (गर्भज) तिर्यंच में नरक, स्वर्ग आदि आयु बाँधने की योग्यता हो जाती है; किन्तु इस तिथंच की मायु अन्तर्मुहूर्त होनी चाहिए। नारकी जीव तिथंच या मनुष्य की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त बांध सकता है, क्योंकि संक्लेश परिणामों से तियंचायु व मनुष्यायु का जघन्य स्थितिबन्ध होता है। नरक में संक्लेश परिणामों की बहुलता है। -जै.ग.29-3-62/VII/ जयकुमार चतुर्थ पृथिवी से निष्कान्त जीव के मोक्ष शंका-चौथे नरक से निकलकर जीव मनुष्य होकर क्या उसो भव से मोक्ष जा सकता है या वह दो तीन भव के पश्चात् मोक्ष जायगा? __समाधान-चौथी पृथ्वी से निकलने वाले नारकी जीव दो गतियों में उत्पन्न होते हैं–तियंचगति और मनुष्यगति । मनुष्यगति में उत्पन्न होने वाले नारकियों में से कोई उसी भव से मुक्त होते हैं (प. पु. ६ पृ. ४८८. ४८९)। उसी भव से मोक्ष जाने में कोई बाधा नहीं, किन्तु चौथे नरक से निकले हए सभी जीव उस भव से मोक्ष नहीं जाते । बहुत से अनन्तकाल तक संसार में भ्रमण करते हैं। -जं. ग. 12-5-63/lX/ म. मा. जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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