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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १५१ समाधान-जिस प्रकार वेद कषाय का नवम गुणस्थान के सवेद भाग तक निरंतर उदय रहता है किंतु बालक अवस्था में तथा ब्रह्मचारीगणों को और मुनियों को वेद के उदय का कभी अनुभव नहीं होता और अन्य जीबों को भी निरंतर अनुभव नहीं होता, इसका कारण वेदकषाय का मंदउदय है। इसी प्रकार निद्रा या प्रचला आदि पाँच निद्रामों में से किसी एक का उदय प्रत्येक जीव के हर एक अन्तर्मुहूर्त पश्चात् होता रहता है, क्योंकि इनकी उदीरणा का उत्कृष्ट अन्तर भी अन्तर्मुहूर्त है धवल पु० १५ पृ० ६८ किन्तु प्रत्येक अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् हर एक जीव अवश्य सोता हो या निद्रा के उदय का अनुभव हो, ऐसा देखा नहीं जाता। इसमें भी कारण निद्रा या चला प्रकृति का मंदउदय है । निद्रा व प्रचला के उदय का जघन्य काल एक समय है धवल पु० १५ पृ०६१-६२। बारहवें गुणस्थान में निद्रा या प्रचला का उदय इतना मंद व इतने कम काल के लिये होता है कि उसका बुद्धिपूर्वक अनुभव नहीं होता। इस कथन का यह अभिप्राय नहीं समझना चाहिये कि कर्म बिना फल दिये निर्जीर्ण हो जाता है, क्योंकि कोई भी कर्म बिना फल दिये निर्जीर्ण नहीं होता, ऐसा जैनधर्म का मूलसिद्धान्त है जयधवल पुस्तक ३ पृष्ठ २४५। -जं. सं. 11-12-58/V/अ. रा. म. क्षीण कषाय के निद्रा का उदय सर्वाचार्य सम्मत शंका-निद्रा का उदय १२ में गुणस्थान तक आचार्यों ने माना है। श्वेताम्बर ग्रन्थों में ऐसा नहीं माना है। बे किस आधार पर कहते हैं ? समाधान दिगम्बर ग्रन्थों में क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थान में निद्रा का उदय विकल्प से माना है। कषायपाहडकी चणि में १०८ यतिवृषभाचार्य ने लिखा है, 'क्षपक-श्रेणी पर चढ़ने वाला जीब आय और वेदनीय कर्म को छोडकर उदय प्राप्त शेष सब कर्मों की उदीरणा करता है। इस पर टीका करते हए श्री १०८ वीरसेन स्वामी ने लिखा है कि 'क्षपक श्रेणी वाला जीव पाँच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण का नियम से वेदक है किन्त निद्रा या प्रचला का कदाचित् बेदक है, क्योंकि इनका कदाचित् अव्यक्त उदय होने में कोई विरोध नहीं है।' श्वेताम्बर कर्म ग्रंथ, कर्म प्रकृति ग्रंथ में क्षपक श्रेणी में निद्रा या प्रचला का उदय नहीं माना है, किन्त पंचसंग्रह सप्तति गाथा १४ में लिखा है कि 'क्षपक श्रेणी में और क्षीणमोह गुणस्थान में पाँच प्रकृति (निद्रा या प्रचला सहित चार दर्शनाबरण) का भी उदय होता है। श्री मलयगिरि श्वेताम्बर आचार्य ने इस गाथा १४ की दीका में इसे कर्मस्तवकार का मत बतलाया है । इस प्रकार श्वेताम्बर ग्रन्थों में बारहवें गुणस्थान में निद्रा के उदय के विषय में दो मत पाये जाते हैं किन्तु दिगम्बर ग्रन्थों में एक ही मत है। -जे, ग.3-10-63/IX/म. ला. फ.च. १. 'खवगे सुहमम्मि घउबंधम्मि अबंधगम्मि श्रीणम्मि। ___ छस्संतं पउरुदओ पंचण्हं वि केड इच्छंति ॥ २. 'कर्मस्तवकारमतेन पञ्चानामप्युदयो भवति ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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