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________________ ६६८ और भक्ति की वैसी सेवा, भक्ति और सुश्रुषा हर व्यक्ति नहीं कर सकता। उन्होंने एक सच्चे शिष्य का आदर्श उपस्थित किया और उस गुरु की मंगल आशिष उन्हें प्राप्त हुई और उस आशिष का सुपरिणाम रहा। उन्होंने जिस कार्य को अपने हाथ में लिया उसमें उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। एक सच्चे संत के हृदय से निकले आशीर्वाद में कितनी अपूर्व शक्ति होती है इस सत्य तथ्य का संदर्शन यदि कोई करना चाहें तो जे. डी. जैन के जीवन से कर सकता है। जीवन के प्रारम्भ में हृदय में केवल भक्ति का अनंत सागर लहलहा रहा था और उस भक्ति-भावना से विभोर होकर दिन-रात सेवा करते रहे जिसके फलस्वरूप आज हर क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है, आज भी उनके अंतर्मानस में धर्म के प्रति अनन्त आस्था है। प्रतिदिन सामायिक साधना किये बिना वे मुँह में पानी भी नहीं डालते। संत-सतियों की भक्ति करना, सेवा करना यही उनका उद्देश्य रहा है और भाग्य योग से उनकी धर्मपत्नी डॉ. विद्युत् जैन भी इसी प्रकार धर्म-परायणा महिला हैं, जो अ. भा. स्था. महिला जैन संघ की अध्यक्षा हैं। उस पद पर रहकर उन्होंने महिला समाज में जागृति का शंखनाद फेंकने का प्रयास किया है। परम श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के प्रति एवं आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के प्रति आपकी अनन्त आस्था रही है। प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन में आपका हार्दिक अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद। श्री शोरीलाल जी जैन : दिल्ली आप एक धर्मानुरागी सुश्रावक थे। आप पाकिस्तान बनने के पूर्व सियालकोट में रहते थे। जब पाकिस्तान बना उस समय आप यहाँ से दिल्ली आ गए। आपके पूज्य पिताश्री का नाम हजूरीलाल जी जैन था जो जैन समाज के जाने-माने कर्मठ कार्यकर्ता थे। सियालकोट में ही उनका व्यवसाय था । आपके एक भ्राता थे जिनका नाम श्रीचंद जी था और दो बहिने सी. कान्तारानी और सी. आशारानी थी आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पुष्पावन्ती जैन, जो बहुत ही धर्म-परायणा महिला हैं। आपके दो सुपुत्र हैंअशोककुमार जी और शुक्लचन्द जी । अशोककुमार जी की धर्मपत्नी का नाम सौ. रत्नमाला और उनके दो पुत्रों का नाम सुधीर और राकेश है। आपके लघु-पुत्र का नाम शुक्लचन्द है। उनकी धर्मपत्नी का नाम सौ. सुदेशदेवी और पुत्रों का नाम मुकेश व विजय है तथा पुत्री का नाम दीपिका है। आपके दो पुत्रियाँ हैं- सौ. प्रेमलता और सौ. वीणा। आपका व्यवसाय दिल्ली में प्रोपर्टी डीलर का है। बाबू अशोक जी और शुक्लचंद जी दोनों ही युवा होने पर भी उनमें धर्म की भावना अपूर्व है श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के बहुत ही श्रद्धालु भक्त रहे हैं और उनकी पावन प्रेरणा को पाकर डेरावाल नगर, दिल्ली में आपने "गुरु पुष्कर भवन" नामक धर्म स्थानक का निर्माण किया है। इस स्थानक के निर्माण में GOOD. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ तन, मन, धन से आपका सहयोग प्राप्त हुआ। प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन में भी आपने अर्थ सहयोग देकर अपनी हार्दिक भक्ति की अभिव्यक्ति की है। लाला आनन्दस्वरूप जी जैन गुड़गाँव : कुछ व्यक्ति बाह्य दृष्टि से दिखने में बहुत सीधे सादे होते हैं। पर उनका हृदय बहुत ही उदार, सरल और स्नेह से सराबोर होता है वे सद्गुणों के आगार होते हैं और सद्गुणों के कारण ही जन-जन के स्नेह के पात्र बन जाते हैं। श्रीमान् सुश्रावक लाला आनंदस्वरूप जी जैन बहुत ही उदारमना सुश्रावक हैं आपश्री के पूज्य पिताश्री का नाम विश्वेश्वरदयाल जी और माताश्री का नाम मिश्रीदेवी था। माता-पिता के धार्मिक संस्कार सहज रूप में आपको प्राप्त हुए थे। उन संस्कारों को पल्लवित और पुष्पित करने का श्रेय आगम मर्मज्ञ महामनीषी धर्मोपदेष्टा श्री फूलचंद जी म. पुफभिक्खू को है। उन्होंने आपको पहचाना और आपने भी गुरु चरणों में अपने आपको सर्वात्मना समर्पित कर दिया और विहार यात्राओं में लम्बे समय तक साथ में रहे और जब फूलचंद जी म. रुग्ण हो गए तो उनकी तन, मन से अत्यधिक सेवा भी की और उनके आशीर्वाद को प्राप्त किया। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती चन्द्रकान्ता वहिन भी आपकी तरह ही धर्म-परायणा हैं। सन् १९८५ में परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. का गुड़गाँव में पदार्पण हुआ तब श्री आनंदस्वरूप जी जैन और उनके सुपुत्र सुनीलकुमार जी, प्रवीणकुमार जी और नवीनकुमार जी ये तीनों उपाध्यायश्री के सम्पर्क में आए और ज्यों-ज्यों सम्पर्क में आए त्यों-त्यों उनमें धर्म भावना उत्तरोत्तर बढ़ती ही चली गई, जहाँ भी उपाध्यायश्री के वर्षावास हुए, आप सपरिवार उपाध्यायश्री के चरणों में पहुँचे। आपकी अनंत आस्थाएँ श्रद्धेय उपाध्यायश्री के प्रति रहीं। सुनीलकुमार जी की धर्मपत्नी का नाम सौ. रानी जी है व आपकी दो पुत्रियाँ हैं-पूजा व श्रद्धा प्रवाणीकुमार जी की धर्मपत्नी का नाम सौ. अर्चना जी है व एक पुत्र हैं राहुल नवीनकुमार जी की धर्मपत्नी का नाम सी. मीनू जी है व एक पुत्री है मनु। श्रद्धेय उपाध्यायश्री के स्वर्गवास के पश्चात् जैन धर्म दिवाकर आचार्यसम्राट् श्री देवेन्द्र मुनि जी म के प्रति आपकी अनंत आस्थाएँ हुईं। आप तीनों भाइयों की भक्ति प्रशंसनीय है। आपकी दो बहिनें हैं- शशिबाला जी और निर्मला जी । श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. के प्रति श्रद्धा-सुमन समर्पित कर प्रस्तुत ग्रंथ के लिए आपका हार्दिक अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ आभारी।
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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