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________________ COODAI PROPODPaapODDY 5000 | परिशिष्ट ६६९ श्री भीमराज जी कच्छारा : बम्बई कांतिलाल जी की धर्मपत्नी का नाम सौ. विजयादेवी है। आपके पुत्र का नाम सुरेशकुमार और अनिलकुमार है। सुरेशकुमार जी की मेवाड़ की पावन पुण्य धरा सदा ही वीरों की स्मृति दिलाती धर्मपत्नी का नाम छायादेवी और अनिल जी की धर्मपत्नी का नाम रही है। अरावली की पहाड़ी में बसा हुआ दोवड़ एक नन्हा-सा गाँव ऊषादेवी है। अनिल जी के एक पुत्र और एक पुत्री हैं जिनके नाम है, इस नन्हे से गाँव में भीमराज जी सा. का जन्म हुआ। आपके क्रमशः विनीत और पूनम हैं। कांतिलाल जी की सुपुत्री का नाम पूज्य पिताश्री का नाम किशनलाल जी और मातेश्वरी का नाम सौ. वंदना है। पानीबाई था। आप बहुत ही उत्साही, दानवीर सज्जन हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम शंकरबाई है। आपके बाबूलाल जी और आपके द्वितीय पुत्र का नाम जयन्तीलाल जी है। उनकी धर्मपत्नी का नाम सौ. सुमनदेवी है तथा उनके दो पुत्र हैं किशोर हिम्मतलाल जी दो पुत्र हैं। और आनंद एवं एक पुत्री है जिसका नाम ज्योति है। बाबूलाल जी की धर्मपत्नी का नाम पिस्ताबाई और पुत्री का तृतीय पुत्र का नाम भरतकुमार है। उनकी धर्मपत्नी का नाम नाम रीणाबाई है। भीमराज जी सा. की छह पुत्रियों के नाम इस प्रकार हैं-सौ. गौमतीदेवी, सौ. बसंतीदेवी, सौ. मिठूदेवी, सौ. सौ. अल्कादेवी और उनके पुत्र ऋषभ और पुत्री का नाम भावना है। श्री करचदास जी के चार पुत्रियाँ हुईं-पद्मादेवी, गुलाबदेवी, लक्ष्मीदेवी, सौ. लीलादेवी और सौ. मीनादेवी। भीमराज जी कर्मठ शकुन्तलादेवी और शीलादेवी। कार्यकर्ता एवं समाजसेवी हैं। श्री वर्द्धमान स्थानकवासी मेवाड़ संघ, बम्बई के आप प्रमुख भी हैं। आपने धर्म स्थानकों के लिए और कई आपका व्यवसाय केन्द्र जालना है। आपका मुख्य व्यवसाय संस्थाओं को समय-समय पर अनुदान भी दिया है। "पुष्कर एजेन्सी" के नाम से मेडीकल का है। प्रस्तुत ग्रन्थ में आपने भक्ति-भावना से विभोर होकर गुरु चरणों में जो समर्पण किया है आपके लघु भ्राता का नाम पृथ्वीराज जी है। उनकी धर्मपत्नी वह आपके सहज भक्ति-भाव का प्रतीक है। का नाम कमलाबाई है। पृथ्वीराज जी के भागचन्द जी, मुकेशकुमार जी और राकेशकुमार जी ये तीन पुत्र हैं। भागचन्द जी की पत्नी श्री केवलचन्द जी बोहरा : रायचूर का नाम टीनादेवी है। आपकी पुत्रियों के नाम मुन्नी, सुशीला, भारत के महामनीषियों ने जीवन की परिभाषा करते हुए रंजना, प्रेमलता और मंजू हैं। कहा-जीवन वही श्रेष्ठ है जो उदार हो। श्री केवलचन्द जी बोहरा आपके तीसरे भाई का नाम सोहनराज जी है। उनकी धर्मपत्नी । एक उदारमना सुश्रावक थे और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरदारबाई का नाम किस्तूरबाई है। उनके तीन लड़के-दिनेशकुमार, मदनलालजी थीं। वे बहुत ही उदार हृदय की सुश्राविका थीं। केवलचन्द जी और सुरेशकुमार तथा दो सुपुत्रियाँ-कुमारी संगीता और सुमित्रा हैं। सा. के दलीचन्द जी, चुन्नीलाल जी, जसराज जी और अमरचन्द जी आपका व्यवसाय बम्बई-बलसाड़ में "कोपन ब्रास पाइप" की ये चार अन्य भाई थे और तीन सुपुत्र हैं मोहनलाल जी, दानमल फैक्टरी है और दीवड़ में भी फैक्टरी है। आपका पूरा परिवार स्व. जी और मनोहरलाल जी। परम श्रद्धेय गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी म. का अनन्य भक्त रहा है। मुनि जी म. सा. का सन् १९७६ में वर्षावास रायचूर में हुआ। उस आचार्यसम्राट् के प्रति आपकी अनंत आस्था है। प्रस्तुत ग्रंथ-रल हेतु वर्षावास में धर्मानुरागिणी सरदारबाई ने खूब सेवा की और आपका हार्दिक सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ साधुवाद। दानमल जी ने तथा उनकी धर्मपत्नी अ. सौ. मदन कुँवरबाई ने सेवा का अपूर्व लाभ लिया। उनके मन में श्रद्धेय उपाध्यायश्री के श्री कचरदास जी दर्डा : जालना । प्रति अपार आस्था थी और समय-समय पर सेवा का लाभ वे लेते श्री कचरदास जी दर्डा महाराष्ट्र में घोड़ नदी के निवासी थे। रहे हैं। सन् १९६८ का उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का घोड़ नदी दानमल जी सा. के दो पुत्र हैं-उत्तमचन्द जी और मनीषकुमार चातर्मास हआ। उपाध्यायश्री के पावन प्रवचनों को सुनकर उनके जी तथा तीन पत्रियाँ हैं-अ. सौ. अंजदेवी, क. अर्चना, क. दिव्या। अन्तर्मानस में सहज श्रद्धा जाग्रत हुई और वे जब तक जीवित रहे |आपका व्यवसाय कर्नाटक में रायचूर में कॉटन का जनरल मर्चेन्ट तब तक पर्युषण महापर्व की आराधना करने हेतु उपाध्यायश्री के । का है। प्रस्तुत ग्रंथ में आपकी ओर से सहयोग राशि प्राप्त हुई, यह चरणों में पहुँचते रहे। आपके पूज्य पिता श्री का नाम नानूराम जी आपकी गुरुदेव के प्रति अपार आस्था और श्रद्धा को अभिव्यक्त और 'मातेश्वरी का नाम देऊबाई था। आपकी धर्मपत्नी का नाम करती है। शान्ताबाई था। आपके एक बहिन थी जिसका नाम हरकूबाई बरमेचा था जिनको जीवन की सांध्य बेला में ५६ दिन का संथारा स्व. श्री कंवरलाल जी बेताला : गौहाटी आया। आपके तीन सुपुत्र हैं-कांतिलाल जी, जयन्तीलाल जी और यह सत्य है कि मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान् बनता है। भरतकुमार जी। किन्तु यह भी सत्य है कि पूर्व जन्म के शुभ संस्कारों के कारण ही 00000000000000 000000000 0 0000007838000000000000000000000000000000000000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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