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________________ 650 | इतिहास की अमर बेल ४४३ द्वितीय ज्ञानमलजी महाराज। ज्ञानमलजी महाराज और उनकी आपकी मातेश्वरी अपने पितृगृह थोब ग्राम में रहने लगीं। वहीं पर परम्परा का परिचय विस्तार के साथ मैंने अगले पृष्ठों में दिया है। आचार्यश्री अमरसिंह जी महाराज की सम्प्रदाय की आनन्द कुंवरजी किशनचन्दजी महाराज एक प्रतिभासम्पन्न सन्त रत्न थे। आपका ठाणा ९ वहाँ पधारी। उनके उपदेश से माता और पुत्र दोनों को जन्म अजमेर जिले के मनोहर गाँव में वि. सं. १८४३ में हुआ। वैराग्य भावना उत्पन्न हुई और आत्मार्थी श्री ज्येष्ठमलजी महाराज के आपके पिता का नाम प्यारेलालजी और माता का नाम सुशीलादेवी सन्निकट आपने मातेश्वरी के साथ सं. १९६७ में माघ पूर्णिमा के था। जाति से आप ओसवाल थे। आपने वि. सं. १८५३ में दिन दीक्षा ग्रहण की। ज्येष्ठमलजी महाराज ने आपको रामकिशनजी आचार्यश्री के पास दीक्षा ग्रहण की। आपको आगम साहित्य, स्तोक महाराज का शिष्य घोषित किया और आपश्री ने उन्हीं के नेश्राय में साहित्य का अच्छा परिज्ञान था। आपके हाथ के लिखे हुए पन्ने रहकर आगम साहित्य का व स्तोक साहित्य का अच्छा अभ्यास जोधपुर के अमर जैन ज्ञान भण्डार में आज भी सुरक्षित हैं। उनमें । किया। आपकी लिपि बड़ी सुन्दर थी। आपकी प्रवचन-कला मधुर, मुख्य रूप से आगम, थोकड़े व रास, भजनादि साहित्य है। सरस व चित्ताकर्षक थी। आपश्री के दो शिष्य हुए-प्रथम शिष्य का वि. सं. १९०८ में आचार्यश्री जीतमलजी महाराज के सान्निध्य नाम मुलतानमलजी महाराज था जिनकी जन्मस्थली बाड़मेर जिले का में ही आपश्री का स्वर्गवास हुआ। किशनचन्द जी महाराज के शिष्य वागावास थी। आपके पिता का नाम दामनमलजी और माता का नाम हुकमचन्दजी महाराज थे। आपकी जन्मस्थली जोधपुर थी। वि. सं. नैनीबाई था। सं. १९५७ में आपका जन्म हुआ। आपकी बुद्धि तीक्ष्ण १८८२ में आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नथमलजी तथा थी। आपने वि. सं. १९७0 में समदड़ी में दीक्षा ग्रहण की। वि. सं. माता का नाम राजीबाई था और वे स्वर्णकार थे। आपके 1 १९७५ में आपका स्वर्गवास हुआ। गृहस्थाश्रम का नाम हीराचन्द था। आपश्री ने वि. सं. १८९८ में नारायणचन्दजी महाराज के दूसरे शिष्य प्रतापमलजी महाराज किशनचन्द जी महाराज साहब के शिष्यत्व को ग्रहण किया। आप थे। आपका जन्म सं. १९६७ में हुआ। आप गृहस्थाश्रम में जाट कवि भी थे। आपकी कुछ लिखी हुए कविताएँ जोधपुर के अमर परिवार के थे। आपका नाम रामलालजी था। उपाध्याय पुष्कर मुनि जैन ज्ञान भण्डार में प्राप्त होती हैं और बहुत-सा कविता साहित्य | जी के साथ सं. १९८१ ज्येष्ठ शुक्ला १0 को जालोर में दीक्षा हुई जो सन्तों के पास में था, वह नष्ट हो गया। आपका आगम साहित्य और आपका नाम मुनिश्री प्रतापमलजी महाराज रखा गया। आप का अध्ययन बहुत ही अच्छा था। गणित विद्या के विशेषज्ञ थे। बहुत ही सेवाभावी सन्त रल थे। आपने अपने गुरुवर्य चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति के रहस्यों के ज्ञाता थे। आपके मुख्य नारायणचन्दजी महाराज की अत्यधिक सेवा की। नारायणचन्दजी चातुर्मास जोधपुर, पाली, जालोर, जूठा, हरसोल, रायपुर, महाराज का दिनांक १८.९.१९५४ के आसोज सुदी ५ शुक्रवार को सालावास, बड़ और समदड़ी में हुए थे। सं. १९४० के भादवा बदी दुन्दाड़ा ग्राम में संथारे से स्वर्गवास हुआ और स्वामी नाराणचन्दजी दूज को चार दिन के संथारे के पश्चात् जोधपुर में आपका महाराज के स्वर्गवास के चार महीने के पश्चात् प्रतापमलजी स्वर्गवास हुआ। आपश्री के रामकिशनजी महाराज मुख्य शिष्य थे। महाराज का जोधपुर में स्वर्गवास हुआ। उनके कोई शिष्य नहीं थे। आपकी जन्मस्थली जोधपुर थी। सं. १९११ में भादवा कृष्ण चौदस इस प्रकार किशनचन्दजी महाराज की पद-परम्परा रही। मंगलवार को आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम गंगारामजी ज्योतिर्धर आचार्यश्री जीतमलजी महाराज का व्यक्तित्व बहुत और माता का नाम कुन्दन कुंवर था। गृहस्थाश्रम में आपका नाम ही तेजस्वी था और कृतित्व अनूठा था। आप में वे सभी सद्गुण थे मिट्ठालाल था। वि. सं. १९२५ के पौष बदी ११ को गुरुवार बडु जो एक महापुरुष में अपेक्षित होते हैं। आपकी आकृति में ग्राम में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपकी लिपि बड़ी सुन्दर थी। बिजली-सी चमक थी। आपकी आँखों से छलकता हुआ वात्सल्य रस आपने पालनपुर, सिद्धपुर, पाटन, सूरत, अहमदाबाद, खम्भात और का स्रोत दर्शक को आनन्दविभोर कर देता था। आपश्री के शासन मौर्वी आदि महागुजरात के क्षेत्रों में विचरण किया। राजस्थान में काल में सम्प्रदाय की हर दृष्टि से काफी अभिवृद्धि हुई। आपके जोधपुर, सोजत, पाली, समदड़ी, जालोर, सिवाना, खण्डप, ग्रन्थ, आपकी चित्रकला आपके ज्वलन्त कीर्तिस्तम्भ के रूप में आज हरसोल, जूठा, रायपुर, बडु, बोरावल, कल्याणपुर, इंदाड़ा, भी विद्यमान हैं। बालोत्तरा, कर्मावास प्रभृति क्षेत्रों में आपका मुख्य रूप से विहार क्षेत्र और वर्षावास हुए। वि. सं. १९६० ज्येष्ठ वदी १४ को महामहिम आचार्य संथारापूर्वक जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। पूज्यश्री ज्ञानमलजी महाराज श्री रामकिशनजी महाराज के शिष्यरल थे, नारायणचन्दजी महाराज। आपका जन्म बाड़मेर जिले के सणदरी ग्राम में हुआ। महामनस्वी आचार्यश्री ज्ञानमलजी महाराज का व्यक्तित्व विराट आपके पिताश्री का नाम चेलाजी और माता का नाम राजाजी था। था। उनका तेजस्वी व्यक्तित्व जन-जन के लिये प्रेरणा-स्रोत था। वि. सं. १९५२ पौष कृष्णा १४ के दिन आपका जन्म हुआ। जब उन्होंने अपने जीवन का ही निर्माण नहीं किया किन्तु अनेकों आपकी उम्र ५ वर्ष की थी, आपके पिताश्री का देहान्त हो गया, तब व्यक्तियों का भी निर्माण किया। उनके जीवन की क्षमताओं को 26650 un Edication themational Sap0PACeRGEOGorivals Personalise only.D SOowww.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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