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________________ SODE 1656 १४४२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । जाता है। संयम की आराधना करते हुए परम आह्लाद के साथ जो पानी मँगवाया और जो अत्यन्त श्रम से प्रज्ञापना सूत्र का वनस्पति मृत्यु का वरण करता है वह जागृत मृत्यु है। जिनमें भेद-विज्ञान | पद, सचित्र तैयार किया था उसका कहीं दुरुपयोग न हो जाय, होता है, आत्मा और शरीर की भिन्नता का जिसे बोध हो जाता है, । अतः आपने उसे पानी में डालकर नष्ट कर दिया। उस समय वह देह के प्रति आसक्त नहीं होता और न वह मृत्यु से ही भयभीत जोधपुर के प्रसिद्ध श्रावक वैदनाथ जी ने आपश्री से सनम्र प्रार्थना होता है। किन्तु वह तो मृत्यु को सहर्ष स्वीकार करता है। आचार्य की कि भगवन्! आप यह अनमोल वस्तु क्यों नष्ट कर रहे हैं? प्रवर ने चतुर्विध संघ से क्षमायाचना की और संथारा ग्रहण किया। आपश्री ने उन्हें कहा-इन सबका सारांश मैंने एक पन्ने में लिख एक मास तक संथारा चलता रहा। दिन-प्रतिदिन आपके परिणाम दिया है जो समर्थ विद्वान होगा वह उससे सब कुछ समझ जायेगा उज्ज्वल और उज्ज्वलतर होते गये। उस समय आपके सन्निकट । और शेष व्यक्ति इसका दुरुपयोग नहीं करेंगे। अन्त में ज्येष्ठ शुक्ला योग्यतम शिष्य का अभाव था। आपने अपने एक शिष्य से गरम दशमी के दिन सम्वत १९१३ में आपका स्वर्गवास हो गया। प्राचीन पत्र के अनुसार आपश्री के वर्षावास की सूची १. उदयपुर २. चावर ३. जूनिया ४. बड़ोदरा ५. चित्तौड़गढ़ ६. अजमेर ७. जोधपुर ८. पाली ९. बालोत्तरा १०. सोजत ११. जालोर १२. जोधपुर १३. मेड़ता १४. उदयपुर १५. पाली १६. सोजत १७. विशलपुर १८. बीकानेर १९. बघेरा २०. बालोत्तरा २१. जोधपुर २२. जोधपुर २३. रूपनगर २४. जोधपुर २५. बघेरा २६. समदड़ी २७. जोधपुर २८. जालोर २९. पाली ३०. जोधपुर ३१. बालोतरा ३२. नागौर ३३. जोधपुर ३४. पाली ३५. जयपुर ३६. जोधपुर ३७. कोटा ३८. बीकानेर ३९. जोधपुर ४०. बालोतरा ४१. जालोर ४२. उदयपुर ४३. जोधपुर ४४. कुचामण ४५. किशनगढ़ ४६. जोधपुर ४७. जोधपुर ४८. अजमेर ४९. अजमेर ५०. जोधपुर ५१. सोजत ५२. अजमेर ५३. जोधपुर ५४. किशनगढ़ ५५. उदयपुर ५६. जोधपुर ५७. जोधपुर ५८. अजमेर ५९. जोधपुर ६०. पाली ६१. अजमेर ६२. जोधपुर ६३. पाली ६४. जोधपुर ६५. जोधपुर ६६. जोधपुर ६७. अजमेर ६८. अजमेर ६९. जोधपुर ७०. जोधपुर ७१. जोधपुर ७२. पाली ७३. जोधपुर ७४. जोधपुर ७५. चौपासनी ७६. जोधपुर ७७. जोधपुर ७८. जोधपुर श्रमण भगवान महावीर स्वामी के राजगृह नगर में १४ । आचार्यश्री जीतमलजी महाराज की शिष्य परम्परा चातुर्मास हुए तो आपश्री के जोधपुर में ३० चातुर्मास हुए। उसका आचार्यश्री जीतमलजी महाराज एक महान् प्रतिभा सम्पन्न मुख्य कारण कुछ सन्त वृद्धावस्था के कारण वहाँ पर अवस्थित थे आचार्य थे। उनके कुल कितने शिष्य हुए ऐतिहासिक सामग्री के तो उनकी सेवा हेतु आपश्री को वहाँ पर चातुर्मास करना आवश्यक अभाव में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। पर यह सत्य है हो गये थे। कि उनके दो मुख्य शिष्य थे-प्रथम किशनचन्दजी महाराज और GGEOGORI For Privates Personal use Only8 Jain Education International 360 Howww.jainelibrary.orgi
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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