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________________ 2000४०८ 10000 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । साधना के उपायों पर भी विस्तार से प्रकाश डला है। इसी अनुक्रम नारी जाति और ब्रह्मचर्य पर पृथक से विचार प्रकट कर में उन्होंने प्रतिज्ञा को साधना की रीढ़ बताया है। एक कार्य उन्होंने उन्होंने एक और स्तुत्य कार्य किया है। यद्यपि जो कुछ भी कहा स्तुत्य किया है। वह है विभिन्न धर्मों में ब्रह्मचर्य साधना की परम्परा गया था वह सबके लिए था किन्तु फिर भी इस प्रकार के पर प्रकाश डालने का। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनका कथन पृथक्करण से सोने में सुहागा वाली बात हो गई है। प्रत्येक धर्म में एकांगी रह जाता। सभी धर्म परम्पराओं में ब्रह्मचर्य साधना का नारी के प्रति जो दृष्टिकोण है, वे यहाँ स्पष्ट हो जाते हैं। जहाँ तक विवरण प्रस्तुत कर उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि ब्रह्मचर्य साधना जैन ब्रह्मचर्य-साधना के नियमों का प्रश्न है, वे सभी समान हैं। उनमें परम्परा अथवा वैदिक परम्परा में समान रूप से है। इससे एक बात कोई अन्तर नहीं है। भी स्वतः सिद्ध होती है कि जो श्रेष्ठ है, उसका स्थान प्रत्येक धर्म प्रवचनकार ने अपनी इस प्रवचन पुस्तक को बार-बार पढ़ने परम्परा में है। यह बात अलग है कि अन्य धर्म परम्पराओं की का आग्रह विषय की गहनता को ध्यान में रखकर किया है और तुलना में जैन धर्म-परम्परा में ब्रह्मचर्य को विशेष महत्व दिया गया अंत में पुस्तक के नाम ब्रह्मचर्य विज्ञान रखने पर भी अपने विचार है। जैन परम्परा में ब्रह्मचर्य को श्रमण-श्रमणियों के लिए महाव्रत प्रकट किए हैं। इस संबंध में उन्होंने जो भी लिखा है, वह दृष्टव्य एवं श्रावक-श्राविकाओं के लिए अणुव्रत के रूप में स्वीकार किया है:-"पुस्तक का नाम ब्रह्मचर्य विज्ञान है, इसे ब्रह्मचर्य साधना भी DD गया है। लिखा जा सकता था, किन्तु मेरा अभिमत यह है कि श्रद्धा को ज्ञान योग साधना और ब्रह्मचर्य साधना का गहरा संबंध है। तभी तो | से परिपुष्ट करके यदि साधना की जाए तो वह साधना अधिक उन्होंने बताया कि यौगिक प्रक्रियाओं से ब्रह्मचर्य की साधना सहज सुन्दर, सप्राण व सतेज होगी, इसलिए इसे "ब्रह्मचर्य विज्ञान' नाम है। इससे आगे उन्होंने मनोविज्ञान की दृष्टि से भी ब्रह्मचर्य साधना से सम्बोधित किया है। विज्ञान हमेशा प्रायोगिक होता है इस दृष्टि पर प्रकाश डाला है तथा ब्रह्मचर्य साधना एवं योगाभ्यास पर से इसमें साधना तो सन्निहित है ही। बिना साधना के तो ज्ञानविस्तारपूर्वक लिखा है। यह साधकों के लिए महत्वपूर्ण है। विज्ञान सब शून्य है, निष्प्राण है, अतः इस विज्ञान को जीवन___उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. ने इन्द्रिय संयम के अनुकूल साधना बनाकर जीवन-धर्म बनायें, तभी इसका चमत्कार आपके नुस्खे भी बताये हैं। अक्सर होता यह है कि व्यक्ति ब्रह्मचर्य की जीवन में सार्थक होगा।" साधना करना चाहता है किन्तु वह अपने मन को वश में नहीं सम्पूर्ण पुस्तक न केवल पठनीय है वरन् मैं तो यह कहना कर पाता। परिणामतः वह आगे साधना मार्ग से हट जाता चाहूँगा कि यह नित्य स्वाध्याय करने योग्य है। जो भी पाठक इसे है/भटक जाता है। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा प्रशस्त पथ साधकों एक बार पढ़ेगा वह निश्चय ही एक बार तो यह अवश्य ही सोचेगा का मार्गदर्शन करेगा और उन्हें कुमार्ग पर जाने से बचाएगा। कि ब्रह्मचर्य का मार्ग अपना लेना चाहिए। यदि ऐसी मानसिकता उन्होंने तो यहाँ तक बताया है कि काम भावना को ब्रह्म विद्या पाठकों की बनती है तो प्रवचनकार का प्रवचन करना सार्थक हो के रूप में परिवर्तित कर स्वस्थ स्वरूप प्रदान करना चाहिए। इस जाता है। सफल हो जाता है। पुस्तक में एक सौ बत्तीस विभिन्न प्रकार काम विजय दुष्कर तो है किन्तु दुःसाध्य नहीं है। दृढ़ प्रतिज्ञ ग्रन्थों के उद्धरणों से प्रवचनकार ने अपने कथन को पुष्ट किया है व्यक्ति इस पर सहज ही विजय प्राप्त कर सकता है, फिर उन्होंने और ब्रह्मचर्य जैसे दुष्कर और शुष्क विषय को रोचक एवं सरल ब्रह्मचर्य की साधना के चार स्तरों की भी चर्चा की है। वे इस बनाने के लिए अनेक महापुरुषों के चमत्कारिक दृष्टांत भी दिए गए प्रकार है: हैं। इससे पाठकों का औत्सुक्य बराबर बना रहता है। १. पूर्ण अखण्ड (सर्वविरति) ब्रह्मचर्य (महाव्रत), अंत में इस पुस्तक के संबंध में एक बात और कहना चाहता २. गृहस्थाश्रम में रहते हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य, हूँ। वह यह कि इस पुस्तक की सामग्री मूलतः प्रवचन हैं किन्तु ३. श्रावक का देशविरति-ब्रह्मचर्य (अणुव्रत), प्रवचनकार के सुयोग्य शिष्यरत्न श्रमणसंघ के वर्तमान आचार्य ४. नैतिक दृष्टि से आंशिक ब्रह्मचर्य। सम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. ने अपनी सम्पादन कला के द्वारा इनके विस्तृत विवरण के लिए प्रस्तुत पुस्तक का अध्ययन इसे एक निबंध संग्रह का स्वरूप प्रदान कर दिया है। निबन्ध भी करना चाहिए। कोई सामान्य कोटि के नहीं, वरन् ये सब इस विषय का शोध करने वाले अनुसंधानकर्ता के लिए भी उपयोगी बन गए हैं और पुस्तक में ब्रह्मचर्य साधना के मूलमंत्र को भी बताया गया है यह संग्रह ब्रह्मचर्य पर एक सम्पूर्ण ग्रंथ का स्वरूप पा गया है। और वीर्य-रक्षा के ठोस उपाय भी स्पष्ट किए गए हैं। इतना सब विषय वस्तु को तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत करने से यह पुस्तक सभी स्पष्ट करने के पश्चात् भी और ब्रह्मचर्य की महत्ता को समझते हुए धर्मावलम्बियों के लिए उपयोगी हो गई है। भी यदि कोई व्यक्ति इसकी साधना नहीं करता है तो यह उसका दुर्भाग्य ही करना चाहिए। swww.jainelibrary.org Sain Education Intematonal For Private & Personal Use Only
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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