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________________ Podc0000-00- P393068 90.94 :00:09 000 Po वाग् देवता का दिव्य रूप ४०९ । 20999 उपाध्यायश्री रौ राजस्थानी साहित्य -डॉ. नृसिंह राजपुरोहित संस्कृत-प्राकृत आदि प्राच्य भाषाओं के अधिकारी विद्वान् उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी बहुभाषा विज्ञ थे। उर्दू, फारसी, मराठी, गुजराती वे बहुत अच्छी प्रकार बोलते थे। राजस्थानी, मारवाड़ी, मेवाड़ी तो उनकी मातृभाषा ही थी। उनकी वाणी से जब मातृभाषा के स्वर शब्द रूप में प्रस्फुटित होते तो श्रोताओं को कुछ अलग ही आनन्द आता। राजस्थानी में आपकी अनेक प्रवचन पुस्तकें छपी हैं। कुछ पुस्तकें पहले हिन्दी और फिर राजस्थानी में अवतरित हुई हैं। राजस्थानी भाषा के प्रख्यात पंडित डॉ. नृसिंह राज पुरोहित ने उपाध्यायश्री के राजस्थानी साहित्य को विविध रूप में अनूदित किया है। अतः यहाँ पर उन्हीं की समीक्षात्मक व परिचयात्मक लेखनी का रसास्वाद कीजिए। -संपादक GLI00000 09665S5DD उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी रौ प्रवचन साहित्य यूँ तो मोकलो ई । राम राज है, पण खासकर नै जिको राजस्थानी भाषा में उपलब्ध है, वो तीन इण कृति में उपाध्यायश्री रा कुल पाँच प्रवचन संकलित है। कृतियाँ रै रूप में है-संस्कृति रा सुर, "राम राज" अर वारी विगत इण भांत है-रामराज, धरम री परख, जीवण री "मिनखपणा री मोल।" इण तीनूं कृतियाँ में उपाध्यायश्री रै दियौड़ा कला. जिंदगाणी रौ आणंद अर चालता रही आगे बढौ। यूं तो प्रमुख प्रवचनां रौ संकलन है। प्रवचन हिन्दी अर गुजराती । सगळा प्रवचन प्रेरणादायी अर जीवणोपयोगी है, पण कृति में भाषावां में पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुया जिणरै पछै उक्त तीनूं । संकलित "राम राज" इण कृति री प्रमुख रचना है। कृतियाँ राजस्थानी भाषा में अनुवादित होयनै प्रकाशित हुई। राम री सता भारत रै कण-कण में मौजूद है। मानखी वारा समीक्षात्मक दीठ सूं तीनूं कृतियाँ री न्यारी-न्यारी बंत इण भांत है गुणगान तनमन सूं करै। यूं भारत री सगळी सांस्कृतिक विचार संस्कृति रा सुर धारावां में राम रै नाम री सांगोपांग चरचा है। इण पुस्तक में उपाध्यायश्री रा कुल १४ प्रवचन संकलित है। आ बात सही के न्यारी न्यारी सांस्कृतिक विचार धारावां मुजब विषय वस्तु री दीठ सूं जीवण री झणकार, ढाई आखर प्रेम रा, राम रै सांसारिक जीवण रौ चित्राम न्यारै न्यारै ढंग सूं हुयो है। पण कर्तव्य निष्ठा, मन रौ मरम, ईमानदारी री जोत, धरम रौ मूळमंत्र, सगळा ग्रंथां रौ मूळ ओ इज के राम ओक अवतारी महापुरुष है। दान री आणंद अर परोपकार रौ इमरत इत्याद प्रवचन प्रमुख है। राम री पितृ भगती, रामरी मातृ भगती, राम रौ बांधव प्रेम सगळां रा विषय प्रेरणास्पद अर मानव जीवण रै उत्थान सूं संबंध अर सीता रौ पति प्रेम सगळी आदर्श स्थितियां रही है। इण कारण राखण आळा है। इण प्रवचनां में चिंतन री गेहराई, विचारां री हजारूं बरस बीत्यां पछै ई राम रौ नाम आम आदमी री जबान निर्मळता, भावां रौ फूटरापौ अर प्रेरणा री पवित्रता है। सगळा माये है। सगळां री ओक ई चावना है के राम राज पाछी आवै। प्रवचन घणा सरल, सहज अर गंभीर है। इणां में जीवण रै अनेकू प्रसंगां अर मोकळी समस्यावां माथै गेहरो चिंतन हुयी है। __ इण कृति रा प्रमुख प्रवचन "रामराज' में आ ई बात बार बार कहीजी है के राम रौ चरित्र ई इण मूल्क रौ मेरुदंड है। मुल्क पुस्तक री प्रस्तावना में राजस्थानी रा मानीता कवि डॉ. री आजादी इण चरित्र राखूटा सूं ई बंध्यौड़ी है। आजा शक्तिदान कविया रा इण कृति बाबत जे विचार सोळू आना सही है के इणरै न्यारै-न्यारै अध्यायां जिको अनुभव रा मोती पोया है अर इणी ज भांत धरम री परख अर जीवण री कला प्रवचनां में समाज सुधार रा सुपना संजोया है। वे घणा ऊजला, उत्तम अर। मानखे नैं जीवण कला रौ परम समझावण री कोशिश करीजी है। अनोखा है। मानखौ जठा तांई जीवण कला रौ पारखी नी बणै, उठे तांई उणरी जीवण सफल नी होय सके। इसै उतम साहित्य रै प्रचार-प्रसार री इण जमाने में अपूती जरूरत है। कारण के आज ईमानदारी ठकै सेर बिके है अर चोरटां पैलड़ी कृति रै ज्यूं इण पुस्तक में संकलित सगळा प्रवचन ई जीवण नै ऊपर उठावण आळा अर सद्कामां तांई प्रेरणा देवण रै घरां मालपूआ सिक है। आंधी पीसै नैं कृता खावै है अर बैवती गंगा में हाथ नी धोवै वो पछतावै है। कुवै भांग पड़ी है अर जनता आळा है। पीवण ताई अडथड़ी है। आज राजकाज में भ्रष्टाचार, वैपार में मिनखपणा रौ मोल काळा बाजार, धरम म धुधुकार अर शिक्षा में बंटाढार है। इण उपरोक्त दोन कृतियाँ रै ज्यूं इण तीजी कृति “मिनखपणा रा कारण इसे साहित्य री इण जमानै मैं खास दरकार है। कुल मिळाय } मोल" में ई उपाध्यायश्री रा कुल छः प्रवचन संकलित है। मैं आ कृति प्रेरणादायी है, पाठकां रै मन भाई है जिण सूं इणै सूं मिनखपणा रौ मोल, आचार अर विचार, संयम रौ चमत्कार, इणै घणी प्रसिद्धि पाई है। विवेक रौ प्रकाश, धरम रौ मरम अर जीवणा रौ इमरत। एकह O CRAWAIYALOESAROLOEVOODSHIDDEO पतानातहतकoRARDO ansducation-rigamational SDS D SEDODaridrateekersghardse hiya3030050 0 R s jainelibrary.oard B9032369906580006DPosc0000 0 3003090090902 50OOD REPSD8906: 05 90-902029.000000000-00-00-00-00-200000000000000000000000000000.00APKYON
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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