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________________ ३९२ " रामराज्य" शीर्षक वाले प्रवचन में उपाध्यायश्री जी ने विषयानुकूल विचार प्रकट किए हैं। यह प्रवचन उन्होंने स्वतंत्रता दिवस (१५ अगस्त) के दिन फरमाया था। इसमें उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के पूर्व हम जो रंगीन कल्पनाओं की ऊँची उड़ान भर रहे थे, वे कमनीय कल्पनाएँ साकार रूप धारण नहीं कर सकीं। उन्होंने अपने प्रवचन में फरमाया था कि यदि आप राम राज्य चाहते हैं, देश को आबाद और सुखी देखना चाहते हैं। तो नैतिकता की महाज्योति को हृदय में जगाइये, आज की स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर यह प्रतिज्ञा ग्रहण कीजिए कि हम राम की तरह आदर्श उपस्थित करेंगे, जिससे देश के गौरव को चार चांद लगेगा। वास्तव में किसी भी कार्य की सफलता में, उन्नति में नैतिकता ही चार चांद लगा सकती है। नैतिकता के अभाव में विकसित होने की कल्पना करना निरर्थक है। फिर चाहे वह व्यक्ति हो चाहे राष्ट्र "जिन्दगी की लहरें " शीर्षक प्रवचन में जीवन का अर्थ बताते हुए तीन प्रकार के जीवन बताकर उनका विवेचन किया गया है। जीवन के तीन प्रकार इस प्रकार बताए गए हैं-9. आसुरी जीवन, २. दैवी जीवन और ३. अध्यात्म जीवन ! गुरु जीवन निर्माता होता है। वही हमें सब कुछ बताता है, हमारा मार्गदर्शन करता है, हमारी डूबती नैया को किनारे लगाता है। गुरु-सद्गुरु के विविध स्वरूपों को और उसके महत्व को बताया गया है- "जीवन के कलाकार: सद्गुरु" प्रवचन में! अगला प्रवचन है साहित्य : एक चिराग ! एक ज्योति ! इसमें साहित्य पर प्रकाश डाला गया है। "जीवन का सुनहरा प्रकाश : कर्तव्य" में कर्तव्य पर प्रकाश डालते हुए कर्तव्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा प्रदान की गई है। "समय का मूल्य" प्रवचन में समय के महत्व को स्पष्ट किया गया है। जो समय व्यतीत हो चुका है वह लौटकर वापस आ नहीं सकता। इसलिए समय को कभी व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए। इस प्रवचन में समय की पाबन्दी रखने वाले अनेक इतिहास पुरुषों के दृष्टान्त भी दिए गए है। समय को जीवन का अमूल्य धन बताया गया है, इसी शीर्षक वाले अगले प्रवचन में इन दो प्रवचनों में "समय" पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इन्हें पढ़कर यदि पाठक समय का मूल्य समझकर अपना प्रत्येक कार्य समय पर करने लगें तो जीवन में एक नई चमक दमक आ सकती है। मन पर हमारे यहाँ बहुत कुछ चिन्तन किया है। मन पर ही यहाँ दो प्रवचन हैं, 9. मन की साधना और २ मनोनिग्रह की कला। दोनों प्रवचनों में विषयानुरूप विषय का प्रतिपादन किया गया है। मनोनिग्रह की रक्षा के अंत में उन्होंने कितना सुन्दर चित्र उपस्थित करते हुए मन को साधने की बात कही है-“हाँ, तो आप निश्चिन्तता से मन के दीपक में श्रद्धा की बत्ती और सद्विचारों का तेल डालकर उसे जलाइये और प्रतिक्षण यह देखते रहिये कि कहीं Jain Education International Pand उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ वासना की वायु का झोंका उसे बुझा न दे। बस, यही सावधानी आपको रखनी है। मन के वश होने की निशानी ही यही है कि वह वासना के झोंके से बुझे नहीं, सतत् प्रकाशमान रहे। पर इसके लिए निरन्तर साधना की आवश्यकता है। निरन्तर आप साधना चालू रखें, फिर मन आपका स्वाभी न होगा, आप मन के स्वामी होंगे और सफलता आपके साथ होगी।" (पृष्ठ १८० ) मृत्यु पर लगभग सभी दर्शनों में चिन्तन किया गया है। मृत्यु शाश्वत सत्य है। जिसका जन्म हुआ है, उसे एक न एक दिन मरना ही है किन्तु संसार का कोई भी प्राणी मरना नहीं चाहता मृत्यु का नाम आते ही प्राणी भयभीत हो जाता है। मृत्यु का सामना कोई भी करना नहीं चाहता । मृत्यु एक कला शीर्षकान्तर्गत प्रवचन में प्रवचनकार ने मृत्यु पर विस्तार से शास्त्रीय संदर्भों के साथ अपने विचार अभिव्यक्त किए हैं। उन्होंने कहा- "भारतीय तत्व चिन्तकों ने मृत्यु से डरने की जगह मृत्यु का सहर्ष आलिंगन करने की बात कही है। उनका कहना है कि मृत्यु तो इस जीवन का अन्त है और दूसरे जीवन का प्रारम्भ है।” (पृष्ठ १८३) इस प्रकार प्रवचनकार का कथन है कि जब मरना ही है तो उसे महोत्सव के रूप में वरण कर मरना चाहिए। मरण भी एक कला है इस कला को सीखना चाहिए और हँसते-हँसते मृत्यु को स्वीकार कर लेना चाहिए। लेकिन मृत्यु की कला सीखने के लिए जीवन में पहले से ही साधना होनी चाहिए। जीवित काल ही कार्यकाल है, मृत्यु काल तो विश्रान्ति काल है। उस समय मन के मनसूबे मन में ही धरे रह जायेंगे, कुछ होगा नहीं। इसलिए भलाई के कार्य या सुकृत कार्य पहले से ही कर लेना चाहिए। अगले प्रवचन में “भारतीय संस्कृति में मृत्यु का रहस्य" प्रकट किया गया है। विभिन्न शीर्षकों द्वारा अपरिग्रह के विविध पहलुओं को स्पष्ट किया गया है। ऐसे चार प्रवचन दिए गए हैं। "जीवन की लालिमा” शीर्षक से ब्रह्मचर्य पर विस्तार से विचार किया गया है। “कर्तव्य निष्ठा" में कर्तव्यनिष्ठ बनने का आग्रह किया गया है। विनय का विवरण जीवन महल की नींव के नाम से दिया गया है वास्तव में विनय को अपनाने से जीवन चमक उठता है और विनयी व्यक्ति सर्वत्र आदर प्राप्त करता है। इस प्रवचन में एक महान् विचारक के संदर्भ से बताया गया है कि विनीत व्यक्ति के तीन लक्षण होते हैं। यथा १. जो कड़वी बात का मीठा जवाब देता है, २. क्रोध का प्रसंग उपस्थित होने पर भी जो चुप रहता है, ३. दण्डनीय को दण्ड देते समय चित्त को कोमल रखता है। जीवन का अरुणोदय के अन्तर्गत सुसंस्कारों की विवेचना की गई है। इसमें यह बताया गया है कि सुसंस्कार प्रदान करने का समय बाल्यकाल ही है। बाल्यकाल से ही जीवन का अरुणोदय होता For Private & Personal Use Only 12 www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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