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________________ PORad JODD ROOR 20-2900000 :00 में। 220269 10000३८२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । मोहनीय कर्म के उपशान्त होने से जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। कितने स्वयमेव पंचमुष्टि लुंचन करते थे। भगवती सूत्र के मोहनीय कर्म का ज्ञानावरणीय से क्या संबंध है? शतक २ उद्दे. ९ में स्कंद के जी ने भगवान् महावीर को कहा-तं उत्तर-मोह के उपशान्त होने से सम्यग्दर्शन और ज्ञानावरणीय इच्छामि णं देवाणुप्पिये, सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं" हे कर्म के क्षयोपशम से मतिज्ञान उत्पन्न हुआ नमिराज को सम्यग्दर्शन देवानुप्रिय! मैं इच्छा करता हूँ स्वयमेव प्रव्रजित होऊँ और स्वयं था, अतः उवसंतो मोहणिज्जो कहा है तथा मेघमुनि को जाति । मुण्डित होऊँ। केश कटवाना और स्वयमेव मुंडित होने का वर्णन स्मरण ज्ञान सम्यग्दर्शन में हुआ और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को जाति आगमों में मिलता है अतः नापित से दीक्षा पूर्व केश कटवाने में स्मरण मिथ्यात्व दशा में हुआ है। कोई आपत्ति नहीं। १३. प्रश्न-जाति स्मरण ज्ञान किस ज्ञान का भेद है? वह । १६. प्रश्न-साधुओं के १२५ अतिचार कौन से हैं ? मनुष्य के कितने भवों को देख सकता है तथा अन्य संज्ञी जीवों के उत्तर-ज्ञान के १४, सम्यक्त्व के ५ और पाँच महाव्रतों के, कितने भवों को देखता है, सप्रमाण बताइये? पच्चीस भावना के पच्चीस अतिचार। रात्रि भोजन के दो अतिचार उत्तर-जातिस्मरण ज्ञान आभिनिबोधिक ज्ञान का भेद है (जाति हैं (१) सूर्योदय के पूर्व का लिया हुआ आहार और अन्धेरे में स्मरणं त्वाभिनिबोधिक विशेषः) आचारांग प्रथमश्रुत-स्कन्ध- प्रथम लिया हुआ आहार करना तथा दिन में किए हुए आहार का रात्रि अध्ययन प्रथम उद्देशक के चौथे सूत्र की शीलांकाचार्य कृत टीका में उकाला आ जाने पर उसे निगल जाना यह दूसरा अतिचार। रात्रि में खाने की इच्छा करना, सूर्योदय नहीं हुआ समझ उपाध्याय समय सुन्दर कृत विचार शतक में कहा है-"जातिः करके भी खाना पहला एक अतिचार (२) दिन है ऐसा समझकर स्मरणो मनुष्यो नवभवान् पश्यति न त्वधिकान् (जाति स्मरण ज्ञान खाना किन्तु सूर्यास्त हो गया। ईर्या समिति के चार अतिचार १. मनुष्य के नव भवों का देख सकता है। द्रव्य से देखकर न चले, २. युग प्रमाण मात्र से देखकर न चले, ३. काल से दिन में देखकर और रात्रि को पूजकर न चले, ४. भाव से १४. प्रश्न-प्रज्ञा और अज्ञान परीषह ज्ञानावरणीय कर्मोदय से । बोलता हुआ चले, भाषा संबंधी दो अतिचार-असत्य और मिश्र होते हैं तो मुनियों में ये दो परीषह कैसे होंगे? भाषा बोले। एषणा समिति के ४७ दोष नहीं टाले। उत्तर-कभी-कभी मुनि अपनी प्रखर बुद्धि से सचोट प्रश्नों के आदान भंड मात्र निक्षेपन समिति के दो अतिचार १. बिना तब पूछने वाला प्रसन्न हो जाता है। तब मुनि को देखे उपकरण आदि लेना २. और रखना। अपनी प्रज्ञा पर गर्व हो जाता है। तब उन्हें प्रज्ञा परीषह हो जाता है उच्चार-प्रस्रवण, खेल, सिंघाण जल्ल परिष्ठापिका समिति के और कोई मुनि अत्यधिक आगम पाठों को रटता है तब भी उसको १० अतिचार। याद नहीं हो पाता तब वह आर्तवश याद करना छोड़ देता है, तब उस मुनि को अज्ञान परीषह उत्पन्न होता है। उत्तराध्ययन २४वें में बताए गए दस बोल के अनुसार उन्हें नहीं टाले। १५. प्रश्न आगमों में दीक्षा लेने वाले को पंचमुष्टि लुंचन का वर्णन आता है तो आज नाई से क्यों मुंडन करवाते हैं क्या यह मन, वचन और काया इन तीन गुप्ति के संरम्भ समारम्भ और पद्धति नई है? आरंभ के भेद से नौ अतिचार। इस प्रकार ज्ञान के १४, दर्शन के उत्तर-दीक्षार्थी के केश नापित से कटवाने की प्रणाली प्राचीन पाँच, संलेखना के पाँच, पाँच महाव्रतों के २५ रात्रि भोजन २ है। भगवती सूत्र शतक १ उद्दे. ३३वें में जमाली क्षत्रिय कुमार के ईर्यासमिति के ४, भाषा समिति के २ एषणा समिति के ४७ आदान वर्णन में पिता ने नापित को बुलवाया और नापित आता है “परेण भंड मात्र निक्षेपण समिति के २ उच्चार प्रस्रवण समिति के १० जत्तेणं चउरंगुलवज्जे णिक्खमण पाओगे अग्ग केसे कप्पए" यतना तीन गुप्ति के ९ कुल १२५ अतिचार हुए। से चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण योग्य केश काटे। 0202000%a0 10000 Ro0000052160665202065 26060055520NaD जल वही जिससे प्यास बुझे, बन्धु वही जो दुःख में सहायक हो, पुत्र वही जिससे पिता को निवृत्ति हो, विद्या वही जिससे आत्मा नरकगामी न हो । -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि 0.00 10620 Bo90655P9034 andlelonintentationeticles For Private & Personal use only www.lainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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