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________________ 2059290c0000RRC P2P76 39000000000006663 । ३६८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । अमंत्रमक्षरं नास्ति, नास्तिमूलमनौषधम्। भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए कि वह जिस मंत्र की अयोग्यः पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः॥ साधना, जिस प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए कर रहा है, अवश्य ही सफल होगा। सफलता मिलने में देर-सबेर हो सकती है। किसी कोई अक्षर ऐसा नहीं, जो मंत्र न हो; कोई मूल (जड़ी) ऐसा व्यक्ति को पूरी शक्ति के साथ मंत्रानुष्ठान करने पर ही सफलता के नहीं, जौ औषध न हो, कोई मनुष्य ऐसा नहीं, जिसमें योग्यता दर्शन होते हैं, जबकि किसी व्यक्ति को अल्प प्रयत्न से ही सफलता छिपी हुई न हो, किन्तु दुर्लभ है-संयोजन करने वाला। योग्य का योग्य के साथ संयोग मिला कर इनकी शक्ति को अभिव्यक्त करने मिल जाती है। इसके अनेक कारण हैं। इसीलिए जैनदर्शन में काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरुषार्थ, ये पाँच कारण-समवाय प्रत्येक 30 वाला। वाला। कार्य की निष्पत्ति में कारण बताये गए हैं। परन्तु मंत्रसाधक में यदि मंत्रों की अचिन्त्य शक्ति : कब और कैसे? आत्मविश्वास, दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प है तो वह अवश्य ही यह सच है कि योग्य अक्षरों को परस्पर जोड़ने और उनका अपने अनुष्ठान में सफल होता है। इसके विपरीत यदि संयोजन करके उन्हें मंत्र का रूप देने का दुर्लभ कार्य भी प्रत्येक आत्मविश्वास का अभाव है, इच्छा शक्ति दुर्बल है और संकल्प भी धर्म-सम्प्रदाय या मत-पन्थ के मनीषियों ने किया है। किन्तु मंत्रों के । शिथिल है तो असफलता के दर्शन होंगे। असफलता कोई कठिनाई अक्षर-संयोजन के कार्य के लिए पहले योजक को प्रत्येक अक्षर का नहीं, कठिनाई है-व्यक्ति में आत्मविश्वास का अभाव। दृढ़ 092DP अपने स्वयं पर या अपने इष्ट मित्र, परिवार आदि पर प्रयोग आत्मविश्वास के होने पर दिखाई देने वाली असफलता भी सफलता करना पड़ा है। तभी वे सद्यः प्रभावशाली मंत्रों का संयोजन कर में परिवर्तित हो जाती है। 02PF सके हैं। जैसे-जैसे मंत्र की आराधना आगे बढ़ती है, संकल्प शक्ति और कप्यु इसीलिए संस्कृत-साहित्य में एक प्रसिद्ध सूक्ति है-'अचिन्त्यो हि । इच्छा शक्ति का विकास होता जाता है। ऐसी स्थिति में चारों ओर मणि-मंत्रौषधीनां प्रभावः-मणि. मंत्र और औषधि का प्रभाव एक प्रकार का सुरक्षात्मक कवच निर्मित होता है। उक्त कवच का अचिन्त्य होता है-कल्पना से परे होता है। वस्तुतः भाग्य अनुकूल हो इतना प्रबल प्रभाव होता है कि व्यक्ति की चेतना पर कोई भी बाहर D तो मंत्र के द्वारा दुर्लभ कार्य भी शीघ्र ही सुलभ एवं सिद्ध हो जाते का आक्रमण, संक्रमण, दुश्चक्र हावी नहीं हो सकता। संकल्प शक्ति हैं। हमें कहना चाहिए कि उन्हीं मनीषियों की साधना के फलस्वरूप और प्राण शक्ति का इतना विकास हो चुकता है कि ये सब अनिष्ट उक्त मंत्रों द्वारा ज्ञान, विद्याध्ययन, सुखानुभूति एवं सुरक्षा आदि की प्रयोग बाहर ही पड़े रह जाते हैं। संकल शक्ति का विकास होने पर दिशा में गतिशील होने में व्यक्तियों को सहायता प्राप्त होती है, वह बाह्य (वातावरण से आने वाली) और आन्तरिक (मन से आने वाली) विघ्न बाधाओं को पार कर सकता है। इसलिए मंत्रसाधना की पूर्ण सफलता संकल्प शक्ति पर निर्भर है। मंत्र-साधना की सफलता : संकल्पशक्ति पर निर्भर वस्तुतः मंत्र-साधना की सबसे बड़ी उपलब्धि है-संकल्प शक्ति मंत्रसाधना : कवचीकरण-साधना है साधना में संकल्पशक्ति का बहत बड़ा हाथ है। वस्तुतः देखा जाय तो मंत्र-साधना कवचीकरण की साधना है। मंत्रसाधना की यह धुरी है। प्राणवायु पर भी संकल्प शक्ति का । मंत्ररूपी कवच जब मंत्रसाधक के पास होता है, तो बाह्य अनिष्ट शासन है। जिसकी संकल्पशक्ति बलवान् होती है, वह वायु को वश प्रहारों को झेलने में वह समर्थ हो जाता है। हम जो कुछ मन में में कर लेता है। वायु पर संकल्प शक्ति के द्वारा नियंत्रण किया जा सोचते हैं, या बोलते हैं, उसकी लहरें बनती हैं, वे लहरें-विचारों सकता है। जिस व्यक्ति की संकल्प शक्ति प्रबल और सुदृढ़ होती है, की, कार्यों की और शब्दों की तरंगें पूरे आकाश में फैल जाती हैं वह मंत्रसाधना में सफलता प्राप्त कर लेता है। जिसमें संकल्प शक्ति और मंत्र के शब्दों को बार-बार उच्चारण करने पर वे अपने का अभाव होता है, यह मंत्रसाधना में तो क्या, प्रत्येक व्यावहारिक समान परमाणु पुद्गलों को लेकर आती हैं। इससे समझा जा सकता कार्य में भी निराश, हताश और असफल होता है। वह प्रत्येक क्रिया है कि मंत्र की कितनी उपयोगिता है। बाहर से आने वाले अनिष्ट करते समय आत्मविश्वास से हीन होता है। निराशा और आशंकाएँ प्रकंपनों के प्रहारों से बचा जा सकता है क्योंकि मंत्रसाधक जिन उसके दिल-दिमाग को घेरे रहती हैं। जिसकी संकल्प शक्ति सुदृढ़ विचारों का मंत्र जाप करता है, उसकी समान लहरों से उसके चारों होती है, वह दुःसाध्य कहे जाने वाले रोग से भी मुक्त और स्वस्थ ओर अच्छा आभामण्डल निर्मित हो जाता है। हो जाता है। शुभमंत्रशक्ति द्वारा निर्मित आभावलय प्रतिरोधात्मकता अतः मंत्रसाधक में संकल्प शक्ति सुदृढ़ होनी अनिवार्य है। यदि का प्रतीक संकल्पशक्ति शिथिल है, ढीली-ढाली है, डांवाडोल है तो मंत्रसाधना अतः मंत्रशक्ति का सदुपयोग करें, शुभ शब्दों का संयोजन ऐसे P का यथेष्ट परिणाम नहीं आता। मंत्रसाधक को दिल-दिमाग, श्रद्धा, ढंग से करें कि उससे ऊर्जा का आभावलय निर्मित हो। मंत्रशक्ति आत्मविश्वास और इच्छा शक्ति से ओतप्रोत होना चाहिए। उसमें यह द्वारा निर्मित वह आभावलय इतना शक्तिशाली और प्रतिरोधकारक 13020908050000000000000000 हई है। Jain Education International 0000000000029 ace%303603
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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