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________________ 50000000000000000 30% P उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । जल अवस्था आती है। विकल्प रहेंगे, तब तक पूर्ण मुक्ति नहीं होगी। यह चाहता है और जहाँ द्वेष, घृणा या अरुचि होती है, वहाँ नापसन्द तो हुआ विकल्प का विवरण। चीज को मन पकड़ना नहीं चाहता। यही मन का विकल्पात्मक कार्य है। 006 मन में संकल्प कैसे जागता है? वह क्या है? ___ मन का संकल्प क्या है? इसे भी समझ लें। व्यक्ति की कल्पना पति पत्नी में परस्पर स्नेहभाव रहता है, तब दोनों का परस्पर का सुदृढ़ और ठोस होना संकल्प है। जब मन में संकल्प जागता है, आकर्षण होता है और किसी कारणवश आपस में मनमुटाव हो कर तब उसमें अपूर्व शक्ति प्रादुर्भूत हो जाती है। पूरी शक्ति से वह जाता है, तब एक दूसरे के प्रति विकर्षण होता है। एक दूसरे से ॐ विचार करता है, जो संकल्प का रूप धारण करने पर क्रियान्वित बोलना, मिलना भी बंद हो जाता है। एक दिन पत्नी घर से बाहर ओर AE जा रही थी और पति महोदय बाहर से घर की आ रहे थे। हो जाता है। संकल्प में महान् शक्ति होती है। परन्तु वह संकल्प दुष्ट त विचारों, रौद्रध्यान आदि से प्रेरित होता है, किसी को हत्या करने, दरवाजे के पास ही दोनों की परस्पर मुलाकात हो गई, मगर दोनों में वैमनस्य होने के कारण दोनों नीची नजर करके चल पड़े। पत्नी लूटने, ठगी करने या धन हड़पने का संकल्प होता है, तो वह पाप अपने पति को थाली में भोजन परोस कर चुपचाप चली जाती है, 36 संकल्प बन जाता है, परन्तु राष्ट्र को या देश को स्वतंत्र कराने कुछ बोलती नहीं। पति भोजन के लिए मनुहार करता है, परन्तु 3 का, अहिंसक ढंग से सामूहिक शुद्धि प्रयोग करके अन्याय परस्पर मनमुटाव होने के कारण पत्नी कहती है-मुझे भूख नहीं है। अत्याचार-पीड़ित को न्याय एवं सुरक्षा दिलाने का, समाज सेवा का दोनों एक दूसरे से खिंचे-खिंचे रहते हैं। पहले परस्पर प्रेम था, तब -90900P या व्रत पालन का मन में संकल्प होता है, वह शुभ है। समत्व, राग का विकल्प था, अब वैमनस्य है, इसलिए द्वेष का विकल्प है। SIDED अहिंसा, सत्य आदि धर्म पर दृढ़ रहने का निःस्वार्थ भाव से किया दोनों विकल्प कौन करता है? मन ही करता है। 3 हुआ संकल्प शुद्ध है। कभी-कभी व्यक्ति संकल्पबल से प्रेरित होकर अपना बलिदान तक देने को उद्यत हो जाता है, तथा समाधिमरण राग और द्वेष के विकल्प ए. सी.-डी.सी. करेंटवत् 300 का संकल्प भी करता है, वह शुद्ध है। बिजली दो प्रकार की होती है-ए. सी. और डी. सी. । ए.सी. SHAD ऐसे अशुभ विकल्प पतन की ओर ले जाते हैं विद्युत् धारा करेंट लगने पर अपनी ओर खींचती है और डी. सी. विद्युत् धारा बाहर की ओर फैंक देती है। यही हाल राग-द्वेष के eopl किन्तु जब व्यक्ति के मन में आता है, यह भी कर लूँ, वह भी। विकल्प का है। मन की धारा से राग का करेंट लगता है तो वह LOD कर लूँ। ऊँची-ऊँची कल्पना की उड़ाने भरता है। मन पूरा दृढ़ नहीं | अपनी ओर खींचता है और द्वेष का करेंट लगता है तो उसे बाहर है तो वह संकल्प विकल्प बन जाता है। वह अशुभ विकल्प हो तो दूर फैंक देता है। इसलिए वीतराग प्रभु कहते हैं कि तुम्हारा मन व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। झूठे एवं थोथे वायदे करना। सांसारिक छद्मस्थ अवस्था तक राग और द्वेष के विकल्प में दौड़ता संकल्प नहीं है, न ही शुभ विकल्प है। रहता है। म मन राग-द्वेषात्मक विकल्प करता रहता है बालकों-सी चंचलता और अस्थिरता से मनोनिग्रह कठिन DED पहले मैं कह चुका हूँ कि मन संकल्प-विकल्प दोनों करता है। बालकों में भी बहुत चंचलता होती है। वे देर तक एक स्थान 18 ये दोनों मुख्य कार्य हैं मन के। शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का पर नहीं बैठ सकते, न ही वे किसी एक कार्य में मन लगा सकते B विचार वह करता है। मन विकल्प कैसे करता है? इसे एक रूपक हैं। वे दिन भर भाग-दौड़ करते रहते हैं। किसी वस्तु को पाने के व द्वारा समझिये। एक व्यक्ति अपने घर से दस रुपये का नोट लेकर लिए मचलते हैं, रोते-चिल्लाते हैं, किन्तु उसे पा लेने पर भी वे अपनी धुन में बाजार की ओर जा रहा था। वह जिस साइड में जा । सन्तुष्ट नहीं होते। जिसके लिए वे अभी आतुर हो रहे थे, उसे पाने Bह रहा था, उसी साइड में एक परिचित व्यक्ति मिला, जिससे मिलना के कुछ ही देर बाद वे उससे ऊब जाते हैं, और जो हाथ में है, और बात करना वह पसन्द नहीं करता था, क्योंकि वह उसका । उसे फेंक कर, नई चीज ढूँढते हैं, उसे पाने के लिए भी वे पहले का विरोधी था, शत्रु था। अतः उससे बचने के लिए उसने साइड बदल । की तरह मचलते हैं। इस तरह वे उठा-पटक करते रहते हैं। उनका दी। दोनों अपने-अपने रास्ते से चले गए। अब वह लेफ्ट साइड में बचपन प्रायः इसी चंचलता और अस्थिरता में बीत जाता है। यद्यपि TE जा रहा था कि आगे जाते उसे एक व्यक्ति और मिला, जो उसका उनका उत्साह, भागदौड़ और श्रम कम नहीं होता, बड़ों की अपेक्षा मित्र था। वह मित्र राइट साइड में जा रहा था, अतः उसे इसने । अधिक ही होता है, परन्तु उससे कुछ बनता नहीं। सारी भाग-दौड़ 200 आवाज देकर अपने पास बुलाया। वह आया। दोनों मित्र मिले और निरर्थक होती है। परिश्रम भी निष्फल होता है। बच्चे की तरह, एक प्रेमपूर्वक बातें कीं। इस घटना से दो तथ्य अभिव्यक्त होते हैं-द्वेष । बंदरों और पक्षियों की अधिकांश भाग-दौड़ निरर्थक, निष्फल और 688 और राग। जहाँ जिस पर द्वेष होता है, उसे व्यक्ति नहीं पकड़ता निष्प्रयोजन होती है। उनकी पेट भरने की भाग-दौड़ समझ में आती और जहाँ जिसके प्रति राग होता है, उसे पकड़ता है। इस रूपक से । है, मगर पेट तो उनका थोड़े से प्रयत्न से भर जाता है। कोई भी BP स्पष्ट है कि जहाँ राग, स्नेह, मोह होता है, वहाँ मन उसे पकड़ना बड़ी जिम्मेदारी उनके सिर पर नहीं होती। फिर भी वे चैन से नहीं SO0ND000000 PAanEducation internationau ODD O G Saas ForPriyang a personal use only.D E D EOSDEDO RE99 .BSETEwww.jainelibrary.org.
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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