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________________ 8 00000 100 } वाग् देवता का दिव्य रूप ३३७ बैठते। अतः बंदरों, बच्चों या पक्षियों की इन सब हलचलों में मन । आतुरता होती है, उनके केवल श्रम ही पल्ले पड़ता है। की चंचलता ही काम करती है। मानसिक चंचलता के इशारे पर ही मनोयोगपूर्वक किसी काम को न करने वाले अधीर और उतावले इधर-धर उचकते-मचलते रहते हैं, बिना उद्देश्य, निरर्थक, जिनमें लोग मन को योजनापूर्वक कार्यसिद्धि में नहीं लगा पाते। मन की एकाग्रता नहीं होती, जिनका मन वश में नहीं होता, उनकी ज्ञाताधर्मकथासूत्र में दो लड़कों का मोरनी की अण्डे से बच्चे ललक चंचलता में ही रची-पची रहती है। मन की ऐसी चंचलता को निकलने के विषय में धीरता/अधीरता के प्रतिफल का दृष्टान्त वानर वृत्ति या बाल बुद्धि कहा जाता है। प्रस्तुत किया गया है। जिस लड़के में धीरता थी, वह मोरनी के फलाकांक्षा छोड़ने पर ही मन स्थिर होता है अण्डे को बार-बार देखता नहीं था, उसमें दृढ़ श्रद्धा और धीरता थी, फलतः एक दिन मोर का सुन्दर बच्चा उस अण्डे में से चंचलता की तरह मन की अस्थिरता भी मनोनिग्रह में बाधक निकला, किन्तु दूसरे लड़के के मन में अविश्वास और अधैर्य था। है। मन किसी सत्कार्य, सद्विचार या सच्चिन्तन के लिए उमगता वह बार-बार अण्डे को हाथ में उठाकर हिलाता, देखता और स्पर्श है, परन्तु इतना धैर्य नहीं होता कि उस कार्य, विचार या चिन्तन में करता, फलतः अण्डे में से जीव विचलित हो गया, बच्चा नहीं धैर्यपूर्वक अन्त तक टिका जाए, उसमें मन को पूरी शक्ति से, निकला। यही तथ्य मन की एकाग्रता या स्थिरता के प्रतिफल से दृढतापूर्वक नियोजित कर दिया जाए। आरंभ करने के कुछ ही वंचित रहने का है। इससे श्रम भी व्यर्थ जाता है। दिनों बाद, जब शीघ्र सफलता नहीं दिखती, उसका यथेष्ट फल नजर नहीं आता तो वे झटपट उसे समाप्त कर देते हैं, छोड़ देते हैं मन की अशांति : मन की अत्यधिक गति अथवा एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे कार्य की ओर मन को मन की अत्यधिक गति ही मन की अशांति है। मन को किसी दौड़ाते रहते हैं। जैसे चूल्हे पर अभी एक चीज फिर थोड़ी ही देर अयोग्य विचार को चढ़ाकर बार बार उस विचार को दोहराते बाद दूसरी और फिर तीसरी चीज चढ़ाई जाती रहे तो पूरी तरह } जाना, मानसिक असन्तुलन है। मनोनिग्रह के लिए शरीर और मन एक को भी पकने का अवसर न मिलने से वे सब चीजें कच्ची रह की गति और स्थिति का सन्तुलन अपेक्षित है। विचारों की प्रसाक्ति, जाती हैं। यात्री कुछ देर पूर्व को फिर पश्चिम को, तत्पश्चात् उत्तर मन को विक्षिप्त बना देती है। ऐसे व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन या दक्षिण को चले तो वह केवल इधर से उधर घूमता रहेगा, बिगड़ जाता है, जिससे मानसिक तनाव तथा विविध मनोरोग पैदा अपने अभीष्ट गन्तव्य स्थान तक पहुँच नहीं सकेगा। एक जगह ४० हो जाते हैं। मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है-अधिक फीट जमीन खोदने पर पानी निकलना था, इसलिए उतनी गहरी सोचना। दूसरा कारण है-अधीरता और जल्दबाजी। तनाव का खुदाई करने की आवश्यकता थी। परन्तु उतावले मन वाले ने दस । तृतीय कारण है-असहिष्णुता। सहिष्णुता की कमी से मानसिक फुट खोदने के बाद पानी न निकलते देखा तो दूसरी जगह खोदना असन्तुलन एवं पाचनतंत्र में गड़बड़ी तथा अनिद्रा की बीमारी आदि शुरू किया, वहाँ भी पानी न निकला तो तीसरी और चौथी जगह समस्याएँ पैदा होती है। इन मानसिक समस्याओं से तनाव पैदा होते। भी वही प्रयास दुहराया गया। खुदाई तो पूरी ४0 फीट हो गई, हैं जो अनेक मानसिक-शारीरिक रोगों के कारण बनते हैं। इसलिए परन्तु वह एक जगह न होने से बेकार का श्रम हुआ। एक भी मनोनिग्रह करने वालों को इन और ऐसे बाधक कारणों से बचना जगह के गड्ढे में पानी नहीं निकला। अच्छी जमीन भी ऊबड़ चाहिए। एक दृष्टि से मन की चंचलता बुरी नहीं है। मन का खाबड़ हो गई। मन की अस्थिरता, उतावली का परिणाम भी ऐसा तेजतर्रार होना अच्छा है। आवश्यकता इस बात की है कि जो ही होता है। एक पौधे को अभी यहीं लगाया, फिर दूसरी, तीसरी व्यक्ति मन को वश में करना चाहता है उसकी दृष्टि, विचार और और चौथी जगह लगाया जाए तो उसकी जड़ें बेकार हो जाएंगी, जागरूकता या यतना ये तीनों स्पष्ट होनी अनिवार्य है। वह पौधा पनप नहीं सकेगा। यही हाल मन की चंचलता एवं मन-मर्कट को मदारी के समान प्रशिक्षित करो अस्थिरतापूर्वक बार-बार अनेक विषयों में लगाने का है। मन की। चंचलता और अस्थिरता किसी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं करा । मन को हम अपना शत्रु एवं विरोधी न समझें। उसे अपना सकती। मनुष्य में धैर्य और प्रतीक्षा का अभाव ही अधीरता का मित्र एवं सहायक मानकर चलें। उसे मारना नहीं है, उसे निष्क्रिय कारण है। भी नहीं बनाना है, परन्तु उसे साधना है, सक्रिय रखना है। उसे सुसंस्कारी और प्रशिक्षित बनाइए। जैसे मदारी रीछ, वानर आदि एकाग्रता के लिए अधीरता, आतुरता एवं उतावली को अभीष्ट खेल-तामाशा दिखाने के लिए अभ्यास कराता है। इसके छोड़ना आवश्यक लिए एक ओर से वह उन्हें मनमानी करने से रोकता है, व्यर्थ की जिनके मन में अधीरता है, उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है।। उछल-कूद पर अंकुश लगाता है, दूसरी ओर से वह उन्हें अपने खजूर, बरगद जैसे पेड़ पूरी लम्बाई तक पहुँचने और प्रौढ़ । अभीष्ट खेल-तमाशे दिखाने के लिए प्रशिक्षित एवं अभ्यस्त करता विकसित होने में काफी लम्बा समय चाहते हैं. किन्त जिनके मन में है। इसी प्रकार एक ओर से मन को व्यर्थ की उछल-कूद मचाने, R अधीरता, उतावली और शीघ्र ही फल पाने या लाभ उठाने की । निरर्थक निराधार विचार, कल्पना करने या पाप विकल्प करने से 20... 903 %es G6580003200-6 Binosa90040393010032929490 3030890658000 Jain Education tritematonal For Pevate & Personal use only c www.entora DONESDD00000000100665
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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