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________________ SOD 5800000000000000 । वाग् देवता का दिव्य रूप ३२७005065 05020200000 Pos Paro.00 के सामने रख दिये। यह देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि गईं। उसके तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। गुणी को सभी पूजते अन्धे नयनरंजन ने वही रत्न राजा को छाँटकर दिये, जो राजा ने हैं। व्यापारी ने अन्धे के पैर पकड़ लिए और पूछापहले पसन्द किये थे और राजा के निजी रत्न-पारखियों ने जिन्हें । "इस गुप्त रहस्य को भला कौन जान सकता था? आपने कैसे खरा और सच्चा बताया था। इसके साथ ही एक नई बात यह भी जाना यह भेद ?" हुई कि अन्धे नयनरंजन ने उस बड़ें मोती को अलग उठाकर रख दिया, जो राजा-रानी को भाया था और जिसकी कान्ति सामान्य राजा ने भी पूछामोतियों से अधिक थी। उस मोती को अन्धे नयनरंजन के हाथ में "नयनरंजन! सभी उत्सुक हैं। तुमने कैसे जाना कि यह मोती देते हुए राजा ने पूछा कच्चा और दोषी है?" "नयनरंजन! यह मोती तुमने अलग क्यों रख दिया ?" नयनरंजन बोला“महाराज! यह मोती बेकार है। बस, देखने का अच्छा है।" "राजन्! पहचान अनुभव की चीज है, शब्दों में बताने की नयनरंजन की इस टिप्पणी पर और कोई तो कुछ न बोला, चीज नहीं। मैं अपने स्वजनों की आवाज पहचान लेता हूँ। लेकिन पर व्यापारी बौखला गया । राजमर्यादा की सीमा के अन्दर ही । कैसे पहचानता हूँ, यह बताया कैसे जा सकता है ?" उसने कहा राजा ने पूछा“राजन्! मैं परम्परागत और वंशानुगत रन व्यापारी हूँ। "अच्छा यह बताओ सीप में पर्याप्त समय रहने पर भी यह दूर-दूर देशों में मेरे मुक्ता जाते हैं। मेरा यह मोती सबसे अधिक मोती कच्चा क्यों रहा ?" मूल्यवान है। एक लाख स्वर्णमुद्राओं से कम मैं एक भी न लूँगा। "इसका भेद मैं बताऊँगा." अपनी पलकों को चार-पाँच बार आप भले ही यह मोती न लें, पर इस अन्धे से मेरे मोती का । जल्दी-जल्दी झपकाते हुए नयनरंजन ने कहामजाक न उड़वायें।" “पृथ्वीनाथ! गजमुक्ता, नागमोती, वंश मोती आदि कितने ही व्यापारी की बात उचित थी और उसका बिगड़ना भी ठीक था। प्रकार के मोतियों में सीपज मुक्ता विशेष कान्ति वाला होता है। सीप राजा ने अन्धे से पूछा के खुले मुख में स्वाती नक्षत्र में बरसे पानी की बूंद पड़ने से मोती "क्या कमी है, इस मोती में?" की सृष्टि होती है। स्वाती की पहली बूंद पड़ने से बनने वाला मोती “दीनरक्षक! यह मोती भीतर से कच्चा है। अभी पूरा नहीं पक सामान्य मोतियों से बड़ा और विशेष कान्तिमान होता है। यह मोती पाया है। इस समय तो मंजूषा में रहता है। जब कुछ दिन खुले में भी ऐसा ही मोती था। लेकिन जिस समय स्वाती वृष्टि की प्रथम रहेगा तो इसकी कान्ति नष्ट हो जायेगी।" बूंद सीप में गिरी थी, उसी समय एक बाज मरी हुई चिड़िया को लेकर सीप के ऊपर से उड़ा। स्वाती बूंद के साथ पक्षी की चोंच में "इसका कुछ प्रमाण भी है तुम्हारे पास?" राजा ने पूछा। लगी चिड़िया के रुधिर की एक बूंद भी सीप के मुँह में गिरी। इसी नयनरंजन ने बताया गड़बड़ी से मोती कच्चा और दागी रह गया।" "महाराज! इस मोती को तोड़ें तो इसमें से आधा पानी और नयनरंजन के इस रहस्योद्घाटन से सभी चकित-हर्षित थे। आधा रक्त निकलेगा।" राजा के बहुत आग्रह पर व्यापारी ने शेष रत्नों का मूल्य तो ले “मैं अपना मोती एक ही शर्त पर तुड़वा सकता हूँ।" व्यापारी लिया, पर एक लाख के अन्य रत्न अपनी ओर से भेंट किये। राजा ने सरोष स्वर में कहा। को अपनी लाख मुद्राएँ व्यर्थ जाने से बची और लाख के मूल्य के रत्न भी मिले। अन्धे नयनरंजन की खरीद पर व्यय की गई एक "क्या?" राजा ने व्यापारी से पूछा। लाख स्वर्ण-मुद्राएँ दूने रूप में आज वसूल हो गईं। अपनी प्रसन्नता "शर्त यह है कि मेरे मोती में से रक्त निकला तो मैं सभी व्यक्त करते हुए राजा ने प्रतिहार से कहारत्न बिना मूल्य के दे जाऊँगा और अगर अन्धे की बात झूठी रही "प्रतिहार! नयनरंजन को अनाथालाय पहुँचा आओ और तो " अनाथालय प्रबन्धक से कहना कि अब इसे एक पाव तेल रोज देना "तुम्हें दूना मूल्य मिलेगा।" व्यापारी की शेष बात राजा ने पूरी शुरू कर दे, ताकि इसका भोजन सामान्य अनाथों से अधिक कर दी। स्वादिष्ट और बढ़िया बन सके।" सभा में सन्नाटा था। मोती तोड़ा गया। सबने देखा, उसमें एक नयनरंजन को साथ लेकर प्रतिहार अनाथालय की ओर चल लाल धारी चमक रही थी। व्यापारी की आँखें फटी की फटी रह दिया। मुश्किल से पन्द्रह दिन ही बीते कि नगर में एक अश्व 706 Sanadiati m a Diwas Raigey pe www.iginellibrary.com
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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