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________________ R-1३२८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । व्यापारी आया। राजा ने घोड़े देखे और कुछ घोड़े छाँट भी लिए। के दूसरे किनारे से घोड़ा बड़ी तेजी से लौट रहा था कि उसके मुँह इन सबमें सफेद रंग का एक घोड़ा राजा को बहुत भाया। घोड़ा था से निकलते झाग सभी ने देखे और गन्तव्य स्थान पर आते-आते भी बहुत सुन्दर। उसके छोटे-छोटे कान अन्दर से लाल थे। वक्ष । घोड़े का दम फूल गया। व्यापारी को एक लाख स्वर्ण-मुद्राओं का चौड़ा था। टाँगे सुगठित थीं। पूँछ के बाल श्याम और लम्बे थे। घाटा सहना पड़ा, यह बात ज्यादा दुःख की नही थी। उसे दुःख इस राजा को ध्यान आया कि नयनरंजन की तरह उसका भाई अन्धा बात का था कि अपने पालित-पोषित घोड़े के बारे में मैं नहीं जान सुदर्शन भी तो अश्व पारखी है। क्यों न उसी की सलाह से घोड़े पाया और इस अन्धे ने बता दिया। राजा तो प्रसन्न था ही। उसने खरी ? प्रतिहार को आज्ञा दी तो वह सुदर्शन को बुला लाया। । सुदर्शन से पूछासुदर्शन ने स्पर्श अनुभव से वे सभी घोड़े अच्छे बताये, जो राजा ने “यह दोष इस घोड़े में क्यों कर आया?" पसन्द किये थे। राजा ने श्वेताश्व के बारे में भी पूछा तो अन्धे सुदर्शन ने तीन बार घोड़े के वक्ष को ठोका। घोड़ा हिनहिनाया। सुदर्शन ने बतायासुदर्शन ने निर्णय दिया "राजन्! यह घोड़ा मातृ पोषित नहीं था। माँ के दूध में जो "राजन्! घोड़ा अच्छा नहीं है।" प्रकृत गुण इसे मिलते, वे इसे नहीं मिल पाये। इसका पोषण भैंस के दूध से हुआ मालूम पड़ता है। विजातीय मातृ पोषण के कारण ही “क्या खराबी है, इसमें?" राजा ने पूछा। इसमें यह विकार पैदा हुआ था।" सुदर्शन बोला राजा ने अश्व व्यापारी की ओर देखा। व्यापारी ने स्वीकार "इस घोड़े को तेज नहीं दौड़ाया जा सकता। अगर आप इसे कियातेज दौड़ायेंगे तो मुँह से झाग देने लगेगा, दम फूल जायेगा और "अन्धा ठीक कहता है। मुझे तो यह कोई जादूगर मालुम हाँफता हुआ रुक जायेगा।" पड़ता है। इस घोड़े को जन्म देते ही इसकी माँ अरबी घोड़ी मर सुदर्शन की यह टिप्पणी अश्व व्यापारी को बहुत लगी, पर गई थी। मैंने इसे भैंस के दूध से ही पाला है।" * अन्धे पर तरस खाकर बोला राजा ने प्रसन्नता व्यक्त की और प्रतिहार से कहा"राजन्! किसी और घोड़े के बारे में यह अन्धा कुछ भी "प्रबन्धक से कहना, सुदर्शन को भी एक पाव रोज तेल देना कहता तो मैं इसकी बात का बुरा न मानता। लेकिन इस घोड़े की शुरू कर दे।" तो बात ही और है। इस घोड़े का जन्म मेरे यहाँ ही हुआ है। इसकी राजा ने खरीदे हुए घोड़े तो अश्वशाला में बँधवा दिये और माँ अरब की थी और इसका गर्भागमन एक ईरानी लड़ाकू घोड़े से राजसभा में लौट आया। राजा ने विचार किया 'ये दोनों अन्धे तो हुआ था। यह घोड़ा तो लाखों में एक है।" कमाल के निकले। शेष दोनों अन्धों की भी जाँच कर ही लूँ।' राजा नयनरंजन की मुक्ता परख के बाद राजा को इन अन्धों के ने शेष दोनों अन्धों में से पहले सुलोचन को बुलवाया। सुलोचन का गुणों पर बहुत विश्वास हो गया था। अतः राजा ने व्यापारी से । गुण नारी कुल का परीक्षण था। राजा ने उससे कहाकहा "सुलोचन! स्त्री के कुलादि की परीक्षा करोगे न?" "मानता हूँ, तुम्हारा घोड़ा लाखों में एक है, पर सुदर्शन भी "हाँ महाराज! आप करायेंगे तो क्यों न करूँगा? आपने मुझ करोड़ों में एक ही अश्व पारखी है।" पर एक लाख मुद्राएँ खर्च की हैं। मेरे गुण का पूरा उपयोग करने व्यापारी ने इतना ही कहा- ना. का आपको अधिकार है।” | "तो तुम हमारी रानी की परीक्षा करो।" “सो तो इसके सुदर्शन नाम और इसकी नेत्रहीनता से ही पता चल रहा है।" "रानी की?" अपनी परख की चुनौती सुदर्शन बर्दाश्त न कर सका। उसने “हाँ हमारी रानी की।" व्यापारी से कहा "पृथ्वीनाथ! रानीजी तो ठीक ही होंगी। उनकी परीक्षा क्यों "इसमें बुरा मानने की बात क्या है? घोड़ा दौड़ाकर देख लो।" | कराते हैं ? किसी और की कराइये।" व्यापारी को भी जोश आ गया और राजा से सवारी करने को “सुलोचन! ठीक हो तो ठीक बताना। तुम निर्भय होकर हमारी कहा। राजा ने घोड़े को चाबुक मारा और घोड़ा हवा से बातें करते । राना का परखा कि वह क्या है? वह किस कुल का है?" हुए दौड़ने लगा। अश्व परीक्षा एक बड़े मैदान में हो रही थी। मैदान सुलोचन ने कहा Jain Education intamational For Pavale & Personal Use Only aiwww.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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