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________________ 2 Pos ३२६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । ऐसा निश्चित ही है कि शुभ संकल्प के लिए दैव भी सहायक था। इस तेल से पूरी-पराठे बन जाते थे और ऐसे विशिष्ट अनाथ 200529 हो जाता है। बहुत-सी चीजें ऐसी भी होती जो बाजार में नहीं सामान्य अनाथों से कुछ अधिक अच्छा भोजन पा लेते थे। ये अन्धे 0 मिलती थीं और राजा के विक्रय विभाग में मिल जाती थीं। दूर-दूर । तो सामान्य अन्धे अनाथों से भी गये बीते थे, क्योंकि ये चार लाख के व्यापारी प्रायः राजा के विक्रय विभाग से ही सम्पर्क करते थे। मुद्राओं में खरीदे गये थे और बेकाम के थे, जबकि दूसरे अन्धे राज्य द्वारा खरीदा गया माल बिक ही जाता था और प्रायः चढ़े बेकाम के तो थे, पर बिना मूल्य के भी थे। जो भी हो, इन चारों भावों में बिकता था। राजा के इस शुभ संकल्प से दुहरा लाभ हुआ। अन्धों के दिन कटने लगे, सबके साथ उनका भी समय गुजर रहा प्रजा की भलाई भी हुई और राज्य की अर्थव्यवस्था भी नहीं था। इसी तरह वर्षों बीत गये। बिगड़ी, बल्कि पहले से अच्छी हो गई। राजा के नगर में एक ऐसा बाजार था, जहाँ हर तरह की एक दिन राजा के दरबार में एक विदेशी रत्न व्यापारी आया। चीजें बिकती थीं। यहाँ चल-विक्रेता ही अधिक आते थे। 'विविधा उस के पास मूल्यवान रत्न थे। राजा ने रत्न देखे और कुछ रत्न वीथी' नामक इस बाजार में पहले नगर के स्थानीय विक्रेता ही पसन्द किये। राजा के निजी रत्न पारखियों ने भी उन रत्नों के रहते थे। राजा की घोषणा के बाद दूर देश के व्यापारी-विक्रेता भी खरे-सच्चे होने की पुष्टि की। उन रत्नों में एक मोती राजा को आने लगे। इसलिए इस बाजार का नाम 'विदेश हाट' पड़ गया था। बहुत पसन्द आया। यह मोती अन्य सामान्य मोतियों से आकार में इसी 'विदेश हाट' में एक दिन चार अन्धे बिकने आ गये। चारों काफी बड़ा और विशेष कान्तिमान था। विदेशी रत्न व्यापारी ने इस अन्धे शाम तक बैठे रहे। उन्हें भला कौन खरीदता? एक तो अन्धे, अकेले मोती का मूल्य ही एक लाख स्वर्णमुद्रा बताया। राजा ने किसी काम के नहीं और दूसरे, मूल्य भी इतना कि आकाश को इतना मूल्य देना स्वीकार भी कर लिया, क्योंकि उसकी रानी को छूए। अन्धों के पास ग्राहक तो बहुत आये, पर उनकी विशेषताएँ भी यह मोती बहुत भाया था। लेकिन एक मोती का इतना अधिक सुन-सुनकर सबने अपना मनोरंजन ही किया। विशेषताएँ थीं भी मूल्य यों आँखें बन्द करके भी कैसे दिया जा सकता था ? मिट्टी ऐसी कि विश्वास कोसों दूर रहता था। जैसे कोई कहे कि खरगोश का घड़ा भी ठोक बजाकर खरीदा जाता है। एकाएक ही राजा को के सींग होते हैं और कमल पहाड़ पर खिलते हैं, ऐसी ही बातें इन याद आया, 'बहुत पहले हमने चार अन्धे खरीदे थे। उनमें से एक अन्धों की भी थीं। अन्धा होकर रत्नों की परख, अश्व परीक्षा, अन्धा रत्नपारखी भी था।' सोचते-सोचते राजा को अन्धे का नाम नारी ज्ञान और पुरुष की पहचान। ये सब बातें एक अन्धे के लिए भी याद आ गया और उसने प्रतिहार को आदेश दियाकैसे सम्भव थीं? लेकिन राजा का काम तो अविश्वास करने से चलता नहीं। उसे तो खरीदना ही था। सो जब शाम हुई तो नित्य । "हमारे अनाथालय से नयनरंजन नामक अन्धे को लिवा नियम के अनुसार वाणिज्य मन्त्री चार राजसेवकों को लेकर बाजार लाआ।" पहुँचे। एक स्थान पर बैठे चार अन्धे वाणिज्य मन्त्री को मिले । नयनरंजन आ गया। राजा ने कहाउनसे बातें कीं, मूल्य पूछा, विशेषताएँ जानी और उन्हें राजा के "नयनरंजन! इस रत्न समूह में से कुछ रत्न छाँटो।" पास ले गये। सभासद उत्सुक थे, क्योंकि उन्हें इस अन्धे के विषय में पहले दूसरे दिन राजसभा में चारों अन्धे पेश किये गये। राजा ने भी ही मालूम था। महामात्य और वाणिज्य मन्त्री भी नयनरंजन के उनसे बातें कीं। राजसभा ठहाका मारकर हँसी और राजा भी हँसे कथित गुण के बारे में सुन चुके थे। लेकिन रत्न व्यापारी आश्चर्य बिना न रह सके। अन्त में राजा ने निर्णय दिया के साथ खीझ रहा था। उस से न रहा गया तो राजा से बोला“अपनी घोषणा के बाद हमें आज तक कोई घाटा नहीं हुआ। “राजन्! यह तो मेरे रत्नों का मजाक है और मेरे पेशे का लगता है, आज हमारे शुभ संकल्प की परीक्षा है। हम इन चारों अपमान भी है। रत्न परीक्षा आप शौक से कराइये। लेकिन कराइये अन्धों को खरीदते हैं।" किसी रत्नपारखी (जौहरी) से ही। यह अन्धा क्या जाने ?' राजसभा अवाक् थी। महामात्य चकित थे। गृहामात्य, वाणिज्य राजा ने कहामन्त्री आदि सभी हैरत में थे। पर राजा का निर्णय अटल था। P004 अन्धों के माता-पिता को चारों का मूल्य चार लाख स्वर्ण-मुद्राएँ दे "तुम्हारी बात सामान्यतः तो ठीक ही है। लेकिन हमारा यह दिया गया और चारों अन्धों को राजा के अनाथालय में रख दिया अन्धा असाधारण व्यक्ति है। एक बार इसी ने बताया था कि यह गया। राजा के अनाथालय में और भी अन्धे थे। सभी तरह के । अद्वितीय रल-पारखी है। इसकी परख, परख होती है। आज हम अनाथ थे। बूढ़े-टेढ़े, लड़की-लड़के सभी को राजा की ओर से दोनों भी देखना चाहते हैं कि यह कितने पानी में है।" समय सब्जी-रोटी मिलती थी। किसी उपयुक्त-उपयोगी अनाथ को नयनरंजन ने रल टटोले। सीधे हाथ के अंगूठे और तर्जनी राजा की ओर से थोड़ा-सा तेल सरसों अथवा तिल का मिल जाता । उँगली के बीच में घुमा-घुमाकर रत्न देखे और रत्न छाँटकर राजा DODD - Jain Education Iistematióniat For Pivātė Personal use only a a www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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