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________________ तल से शिखर तक २४१ । ADDOODHas श्रीमती इन्दिरा गाँधी तथा उनके दोनों पुत्र राजीव और संजय । दो तट हैं। इनके बीच ही मानव-जीवन की सरिता प्रवाहित होती है। गांधी भी उस समय उन कलाकृतियों को देखकर चमत्कृत हुए। धर्म श्रद्धा पर आधारित है, दर्शन तर्क पर। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई गुरुदेव श्री ने वेदान्त तथा बौद्धदर्शन के सम्बन्ध में भी राजर्षि दि. १५-९-१९७४ को गुरुदेव श्री की मोरारजी देसाई से से विचार-विमर्श किया और अन्त में सार रूप में कहा कि धर्म विचार-चर्चाएँ हुईं। श्री देसाई १९७७ में बाद में प्रधानमंत्री बने थे। और दर्शन को पाश्चात्य प्रभाव से परस्पर प्रतिद्वन्द्वी माना जाने उस दिन मोरारजी देसाई मेरे द्वारा लिखित "भगवान् महावीरः एक लगा है, यह चिन्तन भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है। इससे अनुशीलन" ग्रन्थ का विमोचन करने के लिए उपस्थित हुए थे। लाभ नहीं, हानि ही अधिक है। गुरुदेव ने अपने प्रवचन में कहा-"आज चारों ओर अशान्ति का राजस्थान के शेर सुखाड़िया जी वातावरण है। आज का मानव घोर भौतिकवादी है। त्याग के स्थान कहा जाता है कि एक जंगल में दो शेर नहीं रह सकते। यह पर भोग और अहिंसा के स्थान पर हिंसा, अपरिग्रह के स्थान पर ठीक हो या न होपरिग्रह का जंजाल ही दिखाई देता है। मानव का यह अभियान आरोहण की ओर न होकर अवरोहण की ओर हो रहा है। उत्थान किन्तु एक ही प्रदेश में दो प्रतिभासम्पन्न सज्जन महानुभाव तो आर विकास के स्थान पर पतन और सर्वनाश के पथ की ओर बढ स्नेहपूर्वक रह ही सकते हैं। रहा है। मानव की यह भौतिक प्रवृत्ति उसे अशान्त बनाए हुए है। __ सुखाड़िया जी वर्तमान वृहद् राजस्थान के निर्माता थे। कुशल "भगवान महावीर ने अन्तर्दर्शन की प्रेरणा दी। आज मानव राजनीतिज्ञ तो थे ही, विचारवान व्यक्ति भी थे। वे अनेक बार पूज्य अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह के सिद्धान्त को विस्मृत कर चुका गुरुदेव से मिले तथा उनसे शुभ कार्यों की प्रेरणा लेते रहे। वे वर्षों है। ये लक्षण शुभ नहीं हैं।" तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे और फिर तमिलनाडु के राज्यपाल भी। मोरारजी भाई सीधे-सादे, सरल व्यक्ति हैं। प्रतिभा-पुरुष हैं। वे गुरुदेव श्री के प्रवचन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने संकल्प ___ वे मुख्यमंत्री हों कि राज्यपाल, जब भी अवसर मिला, वे लिया कि वे गुरुदेव श्री के कथनानुसार मानव जाति के कल्याण के । गुरुदेव श्री से मिलने आते रहे। पशुओं में प्रतिद्वन्द्विता हो सकती है, 2009 लिए हर संभव प्रयत्न करने में कभी पीछे नहीं हटेंगे। किन्तु ज्ञानवान नर-शार्दूलों में तो परस्पर स्नेह और आदर भाव ही संभव है। सुखाड़िया जी ने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करके बहुत गुरुदेव और गृहमंत्री पंत जी कुछ सीखा और अपने सीखे हुए रास्ते पर राजस्थान, तमिलनाडु सोजत सन्त-सम्मेलन के अवसर पर तत्कालीन गृहमंत्री पं. और कहना चाहिए कि सम्पूर्ण भारतवर्ष की जनता को चलाने और 2 गोविन्दबल्लभ पंत से गुरुदेव की विचारचर्चाएँ हुईं। पंडित पन्त जी आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया। मनीषी व्यक्ति थे। उन्होंने गुरुदेव के कथन को बहुत ध्यान से सुना चन्दनमल बैद और गुना। गुरुदेव ने जो बातें पन्तजी को बताई उनका सार यही है कि जैनदर्शन के सिद्धान्त आज की भटकी हुई, त्रस्त मानवता के सन् १९७३ में गुरुदेव श्री का वर्षावास अजमेर में था। वहाँ लिए नवजीवन का संचार करने वाले हैं। अहिंसा मानव-जीवन के १३ सितम्बर को 'विश्वमैत्री दिवस' का भव्य आयोजन था। उसमें लिए मंगलमय वरदान है। अनेकान्तवाद सम्यग्दृष्टि है। अहिंसा और राजस्थान के तत्कालीन शिक्षा एवं वित्तमंत्री चन्दनमल जी बैद अनेकान्तवाद एक-दूसरे के पूरक हैं। इनके समन्वय में अद्भुत विशेष रूप से उपस्थित हुए थे। विश्व-मैत्री की पृष्ठभूमि पर चिन्तन शक्ति है। इनका उपयोग करने में ही विश्व का कल्याण निहित है। प्रस्तुत करते हुए सद्गुरुदेव ने कहा-"दर्शन सत्य है, ध्रुव है, त्रैकालिक है। मानव की कुछ मूल समस्याएँ होती हैं। दर्शन उन । मनीषी पन्तजी ने स्वीकार किया कि अहिंसा और अनेकान्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। इस समय विश्व की जैनदर्शन की भारतीय दर्शन को अनन्य और अपूर्व देन है। सबसे बड़ी समस्या विषमता है। उसका मूल कारण समत्व की दृष्टि गुरुदेव और राजर्षि टण्डन जी का अविकास है। भगवान महावीर ने इसी समत्व भाव को समझने गुरुदेव सन् १९५४ में दिल्ली में वर्षावास हेतु जब ठहरे थे, और उस पर अमल करने को कहा था। उन्होंने कहा था कि जिस तब राजर्षि टण्डन जी उनके दर्शनार्थ उपस्थित हुए थे। धर्म और प्रकार आपको दुःख अप्रिय है, उसी प्रकार सभी भूतों को, सभी दर्शन पर व्यापक और महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई। आचार और विचार प्राणियों को, सभी जीवों को दुःख अप्रिय है। अतः किसी को के परस्पर पूरक होने तथा मानव-जीवन में उनके अत्यधिक महत्त्व परिताप नहीं देना चाहिए। कर को दर्शाते हुए गुरुदेव श्री ने बताया कि आचाररहित विचार बाह्य दृष्टि से भेद होने के बावजूद सभी जीवों का आन्तरिक विकार है तथा विचाररहित आचार अनाचार है। धर्म और दर्शन जगत एकसदृश है। जिसने एक आत्मतत्त्व को जान लिया है, उसने 300:09 PROD laineduestionisternationage0000000 D o For Private & Personal use only 3000000000000000000000000 0 000000008 सल00 Dogfaigelisa
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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