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________________ 0000003cooparoo २४२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । विश्व के सभी तत्त्वों को जान लिया है-"जे एगं जाणइ से सव्वं । छोटा-सा शब्द है। किन्तु वह विष्णु के तीन चरणों से भी अधिक जाणइ” “एकस्मिन् विज्ञाते सति सर्व विज्ञातं भवति" का यही विराट् एवं व्यापक है। मनुष्य जाति ही नहीं, विश्व के समस्त अर्थ है। चराचर प्राणी इन तीन चरणों में समाए हुए हैं। अहिंसा है, वहाँ अतः सारांश यह कि आज आवश्यकता समत्व भाव विकसित जीवन है। जहाँ अहिंसा नहीं, वहाँ जीवन भी नहीं है। यह एक करने की है। अहिंसा और अनेकान्त की दृष्टि से यह संभव है। विराट् शक्ति है। समस्याओं का समाधान अहिंसा में ही है। अतः विश्व के चिन्तकों को इन महनीय सिद्धान्तों को अपनाना । "संसार के सभी दर्शनों में अहिंसा के महत्त्व को स्वीकार चाहिए। किया गया है। सभी धर्म-प्रवर्तकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से अहिंसा गुरुदेव श्री ने राजस्थान में बढ़ते हुए मत्स्योद्योग तथा तत्त्व की विवेचना की है। किन्तु अहिंसा का जितना सूक्ष्म तथा मदिरापान एवं धार्मिक शिक्षा के विषयों पर भी श्री बैद से चर्चा व्यापक विश्लेषण जैनदर्शन में है, उतना अन्यत्र कहीं नहीं है। जैन की। आपश्री के विचारों से प्रभावित होकर उनकी गाँठ बाँधकर श्री संस्कृति की प्रत्येक क्रिया अहिंसामूलक है। गाँधी जी भी मानते थे बैद ने विदा ली। कि अहिंसा केवल साधु-महात्माओं के लिए ही नहीं है, वह तो मानव-मात्र के लिए है। दि. ३०-१०-८२ को पूज्य गुरुदेवश्री की जन्म-जयन्ती पर जोधपुर में उपस्थित होकर श्री बैद ने कहा-"मैं पूज्य उपाध्याय श्री “अहिंसा के अभाव में मानव निर्दयी दानव बन जाता है। वह के तेजस्वी व्यक्तित्व, कृतित्व तथा विचारों से प्रभावित हूँ। आपने एक प्रेत के समान हो जाता है। सुप्रसिद्ध चिन्तक इंगसोल ने लिखा साहित्य के माध्यम से भी जो ज्ञान-गंगा प्रवाहित की, वह युग-युग है-"जब दया का देवदूत दिल से दुत्कार दिया जाता है और तक जन-जन के पाप, ताप और संताप को दूर करने वाली है।। आँसुओं का फव्वारा सूख जाता है, तब मनुष्य रेगिस्तान में रेंगते हमारा सौभाग्य है कि आपश्री जैसे महान् साधक और ज्ञानी सन्त । हुए सर्प के सदृश हो जाता है।" के चरणों में बैठने का अवसर हमें उपलब्ध है।" सरदार गुरुमुख निहालसिंह अहिंसा के इस महान् तथा व्यापक श्री डी. पी. यादव विश्लेषण को सुनकर अभिभूत हो गए तथा प्रवचन के पश्चात् अहिंसा पर ही गुरुदेव श्री से चर्चा करते रहे। सन् १९७१ में बम्बई, कान्दावाड़ी में वर्षावास था। उस समय केन्द्रीय मंत्री श्री डी. पी. यादव उपस्थित हुए। बिहार में उस समय भाऊ साहब वर्तक भीषण दुर्भिक्ष पड़ा हुआ था। पीड़ित बिहार निवासियों की बम्बई के सन्निकट बिरार (महाराष्ट्र) में गुरुदेव श्री विराज रहे सहायतार्थ वे उपस्थित हुए थे। गुरुदेवश्री ने भारतीय संस्कृति की थे। उस समय महाराष्ट्र के कृषि मंत्री भाऊ साहब पूज्य गुरुदेव के मूल आत्मा की पहचान प्रगट करते हुए कहा-"भारतीय संस्कृति निकट सम्पर्क में आए। गुरुदेवश्री ने अपरिग्रह तथा समाजवाद के की मूल आत्मा, मूल आधार है-दया, दान और दमन। प्राणियों के विषय में कहा-कोई भी व्यक्ति बन्धन में नहीं रहना चाहता। परिग्रह प्रति दयाभाव रखो, मुक्त हस्त से दान करो और मन के विकल्पों सबसे बड़ा बन्धन है। पदार्थ के प्रति हृदय की आसक्ति व ममत्व का दमन करो। जब मानव को क्रूरता से शान्ति नहीं मिली तब वह की भावना ही परिग्रह का मूल है। पतन का मूल कारण भी परिग्रह दया की ओर लौटा, संग्रह से शान्ति नहीं मिली तब दान की ही है। बाइबिल में तो यहाँ तक भी कहा गया है कि सुई की नोंक भावना का उदय हुआ तथा जब भोग ने मानव के जीवन में से ऊँट भले ही निकल जाय, किन्तु धनवान को स्वर्ग में प्रवेश नहीं अशान्ति और अमिट तृष्णा भर दी, तब इन्द्रिय-दमन आया। अतः मिल सकता। यह कथन स्पष्टतया परिग्रह के विरोध में ही है। विकृत जीवन को सुसंस्कृत बनाने हेतु दया-दान-दमन की । भगवान् महावीर ने रूपक भाषा में कहा है-परिग्रह रूपी वृक्ष के आवश्यकता है।" स्कन्ध हैं-लोभ, क्लेश, कषाय। चिन्ता रूपी सैंकड़ों सघन और गुरुदेवश्री के प्रवचन के प्रभाव से उसी सभा में साठ हजार विस्तीर्ण उसकी शाखाएँ हैं। रुपयों की राशि एकत्रित हो गई। महर्षि व्यास के अनुसार उदर-पालन के लिए जितना आवश्यक सरदार गुरुमुख निहालसिंह है, वह व्यक्ति का अपना है, इससे अधिक जो व्यक्ति संग्रह करके सन् १९५४ में गुरुदेव दिल्ली के चाँदनी चौक जैन स्थानक में रखता है वह चोर है और दण्ड का पात्र है। विराज रहे थे। उस समय राजस्थान के भू. पू. राज्यपाल सरदार आज व्यक्ति, समाज और राष्ट्र में जो अन्तर्द्वन्द्व चल रहा है, गुरुमुख निहालसिंह प्रवचन में उपस्थित हुए। उनके मन में गुरुदेव । वह संग्रह की वृत्ति के ही कारण है। रूस के महान् क्रान्तिकारी के दर्शन प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा थी। अहिंसा का विश्लेषण लेनिन ने संग्रह वृत्ति को मानव-समाज की पीठ का ज़हरीला फोड़ा करते हुए गुरुदेव ने फरमाया-“अहिंसा तीन अक्षरों का एक कहा है। 2022 16 O SRO09EOडयालयमा SREDGEO-NCS.ORG000000000665ERI 6SARA98.2000.00. 000.000000000000000000000002. 00 SAHEducationsainternationaip a d:00RDP00000.00SUFOLPrivalekarsayDEMODD500.00. 00 w oswjaipeliplaysia 090 9 Hoàn thành HOSARORDS95-0000ARTeOD2010 TORE
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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