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________________ 630306.6. 3 000Nd. ac0. 66onal PRORS२४० 3000 500.00 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । 00.0000 शिखर-समागम 00006 2009 आप कल्पना कीजिए कि हमारे साथ आप हिमालय की यात्रा । धैर्य, लगन और कर्त्तव्य-परायणता के कारण देश स्वतन्त्र हुआ है पर हैं और देख रहे हैं-ऊँचे, गगनचुम्बी, पुनीत, धवल शिखर और अब इस स्वराज्य को सुराज्य बनाना है। इसके लिए 00000 2000 और शिखर आवश्यकता है पवित्र चरित्र की। एक दिन था जबकि भारत अपनी परस्पर रहस्यमय मौन संभाषण करते हुए! 90.ODS कितना आकर्षक हो सकता है यह दृश्य! चारित्रिक गरिमा के कारण विश्व गुरु जैसे गौरवमय पद पर अलंकृत था, किन्तु आज की स्थिति शोचनीय बनती जा रही है। श्रद्धेय गुरुवर्य का सम्पर्क जन-साधारण से तो रहा ही, किन्तु उनके पावन और गम्भीर-शिखर समान व्यक्तित्व के आकर्षण से नैतिक स्तर का उत्थान देश की प्रगति के लिए अनिवार्य है। खिंचकर भारत के अनेक शीर्ष और विशिष्ट सत्पुरुष समय-समय आपश्री ने यह भी बताया कि प्राचीन साहित्य और संस्कृति की पर उनसे भेंट करते रहे। उन विशिष्ट व्यक्तियों में चिन्तक, रक्षा की जानी चाहिए। जैनाचार्यों ने विविध भाषाओं के जिस विचारक, धर्म एवं संस्कृति के प्रति आस्थावान अनेक लोग रहे। विपुल श्रेष्ठ साहित्य का सृजन किया है, उसका परिचय भी आप जब वे लोग समीप बैठकर चिन्तन और चर्चा करते थे तो श्री ने-राजेन्द्र बाबू को दिया। विद्वान राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि जैन साहित्य किसी सम्प्रदाय विशेष की ही नहीं, बल्कि ऐसा ही प्रतीत होता था, मानो हिमालय के धवल गगनचुम्बी मानव-मात्र की विशेष उपलब्धि है। मैं भाग्यवान हूँ कि मेरा जन्म D oora शिखरों का परस्पर मौन संभाषण चल रहा हो। भी उसी पावन-भूमि में हुआ है जहाँ भगवान् महावीर का हुआ था। मा हठाग्रह से विहीन आपश्री चिन्तन के आदान-प्रदान में विश्वास रखते थे एवं अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही बातों को सुनने के जन-नायक वीर जवाहर और गुरुदेव SDOG अभ्यस्त थे। जिस कथन में जितना सार हो, उसे ग्रहण करने में जवाहरलाल नेहरू का नाम स्मृति में आते ही दृष्टि के समक्ष आपश्री को कभी संकोच नहीं होता था। बिजलियाँ-सी कौंधने लगती हैं-ऐसा ही तेजस्वी व्यक्तित्व था उनका। निस्संदेह आपश्री स्थानकवासी संस्कृति के प्रति पूर्ण एवं प्रबल वे भारत के प्रथम निर्विवाद प्रधानमंत्री थे। पूर्व और पश्चिम का आस्थावान थे, उसे आप महान् क्रान्तिकारी विशुद्ध आध्यात्मिक अद्भुत संगम था नेहरूजी की विचारधारा में। ४ दिसम्बर, १९५४ विचारधारा और आचार का प्रतीक मानते थे, तथापि भ्रान्त को श्रद्धेय गुरुदेवश्री का पंडितजी से दिल्ली में विचार-विमर्श हुआ। धारणाओं और रूढ़िवाद से आप सर्वथा दूर थे। वार्तालाप का सारांश इस प्रकार हैआपका मानस उदार, विशाल और व्यापक था। वहाँ संकीर्णता गुरुदेव-"भगवान् महावीर विश्व की महान् विभूति थे। उनका के दायरे नहीं थे। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय कार्य करने आचार उत्कृष्ट था, विचार निर्मल। उन्होंने साधना कर अपने वाले कार्यकर्ता, जिज्ञासुगण, विचारक-सभी आप श्री के निकट जीवन को निखारा था। भगवान् महावीर ने आचार में अहिंसा तथा सम्पर्क में आए और कुछ लेकर ही गए। आपश्री ऐसे लोगों से विचार में अनेकान्त जैसे दिव्य सिद्धान्त प्रदान किये। किन्तु आज आत्मीयता के साथ मिलते रहे तथा आपके सौजन्यतापूर्ण व्यवहार हम उनका जन्मदिवस अथवा स्मृति-दिवस नहीं मानते। शासन को से अपने अन्तरतम तक प्रभावित होकर ही वे लोग लौटे। चाहिए कि ऐसे महापुरुष की स्मृति में एक दिवस का अवकाश रखा जाय।" आपश्री के सम्पर्क में आने वाले विशिष्ट व्यक्तियों की संख्या काफी अधिक रही। यहाँ कतिपय व्यक्तियों से आपश्री के संस्मरण नेहरू जी-"निस्संदेह आपका सुझाव उपयुक्त है। मैं भगवान् प्रस्तुत हैं। महावीर को महापुरुष मानता हूँ। इस सम्बन्ध में अवश्य चिन्तन करूँगा। यह भी असंदिग्ध है कि उनका प्रभाव राष्ट्रपिता गाँधीजी राष्ट्रपति के साथ पर अहिंसा के सिद्धान्त के रूप में बहुत अधिक, अचल था।" ___भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरल डॉ० राजेन्द्र प्रसाद इस देश श्रमण-संस्कृति की विभिन्न धाराओं के सम्बन्ध में और जैन के एक महामूल्यवान रल ही थे। वे आध्यात्मिक प्रकृति के थे। संस्कृति एवं कला पर जब चर्चा चली तब गुरुदेव श्री ने ज्योतिर्धर भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन के प्रति उनमें अपूर्व निष्ठा थी। आचार्य जीतमल जी द्वारा बनाई गई उत्कृष्ट कलाकृतियाँ बताई। उनमें गम्भीर विद्वत्ता थी और देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होते एक चने की दाल जितने स्थान पर चित्रित एक सौ आठ हाथी, हुए भी उनकी विनम्रता, सरलता और सादगी एक आदर्श ही थी। सूर्यपल्ली तथा दोनों ओर कटिंग किए हुए अक्षरों को देखकर नेहरू दिल्ली में वे आपश्री के सम्पर्क में आए और अनेक विषयों जी बहुत प्रभावित हुए। पचपन मिनट तक इन दोनों महापुरुषों ने DDO पर वार्तालाप हुआ। आपश्री ने बताया कि भारतीय जनता के अपूर्व । सौहार्द्रपूर्ण वार्तालाप किया। alig000रालाका ततsasaap SadEducationalrdemaltdeale000 0 0.30 OS D to ovales Renon use only20 100amagram -06-30000 0000000000000000 10.000 2.90-90 200OS DHODAfreibering
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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