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________________ 90000. 00200305 680606 86.0 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ आपकी आध्यात्मिक शक्ति को देखकर वह मुसलमान भाई धीरे-धीरे साँझ ढल गई। अन्धकार अपना राज्य फैलाने लगा। बहुत प्रभावित हुआ। चरणों में गिरकर पश्चात्ताप करता हुआ उसी समय अचानक पत्थरों की वर्षा होने लगी। देखने पर अनुमान क्षमायाचना करने लगा और बोला-"मुझे माफ कीजिए। उस मकान हुआ कि एक टेकरी पर जो कुछ झोंपड़ियाँ दिखाई दे रही थीं, में जिंन्द रहता है। वह किसी को ज़िन्दा नहीं छोड़ता। मैंने आपको उधर से ही पत्थर आ रहे थे। काफिर समझकर जान-बूझकर उस मकान में भेजा था। बड़ी गलती किन्तु एक भी पत्थर लगा नहीं। और वह पाषाण-वर्षा फिर हुई। एक सच्चे फकीर को मैंने तकलीफ दी। माफ कीजिए। आगे से । बन्द हो गई। प्रतिक्रमणादि से निवृत्त होकर गुरुदेव जप-साधना में कभी ऐसा नहीं करूँगा। आपने मेरी आँखें खोल दीं।" बैठ गए। रात्रि के लगभग नौ बजे होंगे कि एक थानेदार कुछ सिपाहियों एक और प्रसंग पाठकों को सुनाने योग्य है। इसलिए कि वह के साथ वहाँ आ धमका। वह गरजा-"कौन हो? यहाँ क्यों बैठे स्पष्टतः यह प्रमाणित करता है कि इस धराधाम पर पूज्य गुरुदेव । हो? चलो थाने पर।" श्री के समान कुछ ऐसे नर-शार्दूल समय-समय पर अवतीर्ण होते हैं, गुरुदेव श्री ने ध्यान से निवृत्त होकर कहा-"हम जैन श्रमण जिनके हृदय में प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और दया का एक ऐसा हैं। रात्रि में विहार नहीं करते।" प्रदीप्त प्रकाश होता है कि किसी भी प्रकार के भय का अन्धकार उनके समीप भी नहीं फटक सकता। तथा ऐसे महापुरुषों के समक्ष थानेदार अधिकार-मद में मत्त था। उसने कहा कि चलना ही क्रूर से क्रूर और हिंसक से हिंसक प्राणी भी अपनी हिंसावृत्ति तथा पड़ेगा। वह धमकियाँ देने लगा। किन्तु गुरुदेव ने शान्त भाव से वैरभाव का विसर्जन कर देते हैं। कहा-"आपकी धमकियाँ व्यर्थ हैं। आप अपनी शक्ति का अपव्यय न करें। हम रात्रि में विहार नहीं करेंगे।" इस घटना का संकेत हमने आरम्भ में किया था। अब उस अविस्मरणीय प्रसंग की थोड़ी विगत यहाँ दी जा रही है सीधे-सादे शब्दों में कही गई इतनी-सी बात में वज्र की-सी दृढ़ता थी। थानेदार ने इस बात को समझ लिया और कहाघटना सन् १९४८ की है। गुरुदेव घाटकोपर (बम्बई) का “अपना कुछ परिचय दे सकते हो तो दीजिए आप।" वर्षावास पूर्ण कर नासिक संघ के अत्याग्रह को स्वीकार कर वहाँ पधारे और फिर सूरत की ओर आगे बढ़े। मार्ग में सतपुड़ा पर्वत “बम्बई की विधानसभा के स्पीकर भाऊ साहब कुन्दनमल की विकट पहाड़ियाँ आती थीं। उन्हें पार कर वासदा पहुँचे। कोई फिरोदिया हमारे शिष्य हैं।"-गुरुदेव ने बताया। भी जैन मुनि कहाँ बाईस वर्षों के पश्चात् पधारे थे, अतः वहाँ के थानेदार ने कहा-इतनी दूर का नहीं, कोई निकट का परिचय संघ में आनन्द की लहर व्याप्त हो गई थी। दो दिन वहाँ ठहरकर बताइये। नवसारी की ओर प्रस्थान किया। तब गुरुदेव ने कहा-“वासदा के नगरसेठ इन्दुमल जी हमारे अपरान्ह का समय था। पगडण्डियों के मार्ग से यात्रा चल रही शिष्य हैं।" थी। सड़क नहीं थी। चारों ओर गाढ़-जंगल फैला हुआ था। मार्ग में इतना सुनते ही थानेदार गुरुदेव के चरणों में गिरकर क्षमा मिलने वाले किसी व्यक्ति से पूछा तो उसने बताया वह लक्ष्य-स्थल माँगने लगा और कहने लगा-“अरे, गुरुदेव! मुझसे बड़ी भूल हो वहाँ से दो गाऊ है। दो गाऊ, अर्थात् चार मील। गई। आपने अपना यह परिचय मुझे पहले ही क्यों नहीं दिया? आगे चले। मीलों पीछे छूटते चले गए, किन्तु वे चार मील तो नगरसेठ का फोन मेरे पास आया था कि हमारे गुरुदेव पधार रहे द्रोपदी के चीर के समान बढ़ते ही चले गए। उनका कोई अन्त ही हैं। ध्यान रखना। उन्हें कोई कष्ट न हो। किन्तु मैंने तो उल्टा आपके नहीं आ रहा था। इस प्रकार कम से कम बारह मील की यात्रा हो | साथ अविनयपूर्वक व्यवहार कर डाला। अब मुझे क्षमा कीजिए। गई होगी, किन्तु लक्ष्य का कोई नामोनिशान नहीं था। तब गुरुदेव वस्तुतः इस टेकरी पर जो झोंपड़ियाँ हैं, उनमें कुछ आदिवासी रहते श्री ने अस्ताचल की ओर निर्देश करते हुए कहा-"देवेन्द्र! सूर्य हैं। उन्होंने कभी जैन मुनियों को देखा नहीं। बेचारे भोले भी हैं। अस्ताचल की ओर शीघ्रता से बढ़ रहा है। चारों ओर पहाड़ियाँ हैं। उन्होंने समझा कि कोई चोर-डाकू आ गए हैं। अतः वे फरियाद कोई गाँव भी दिखाई नहीं देता। अब हम आगे नहीं बढ़ सकते।। लेकर मेरे पास आए थे। इसीलिए मैं यहाँ आया। अब आप मुझे किसी वृक्ष के नीचे ही आज रात्रि विश्राम लेना होगा।" क्षमा करते हुए कृपया समीप ही एक मील पर एक ग्राम है, वहाँ ___साथ में जो भाई था उससे आज्ञा ग्रहण कर एक वृक्ष के नीचे पधारिए। यह स्थान तो अत्यन्त भयावह है। नदी पर पानी पीने के आसन जमा दिया। चारों ओर हरा-भरा वन था और समीप ही लिए रात्रि में शेर तथा अन्य हिंसक प्राणी आया करते हैं।" कहीं ताप्ती नदी प्रवाहित थी। किन्तु पर्वत भी डिगते हैं क्या? 80 Pos OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO 00000000000000000000000000000000000000000000000000000 200DosaasDosopanDASOIDESOSORSDDDDDDDDDDDDOOSomalaSamanelesary Thang máng các cao ốc Gia 2009 2008 2009 (gọc nữ 9 nga
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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