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________________ तल से शिखर तक उन सज्जनों ने बताया- "गुरुदेव ! हम बड़ी आशा लेकर आपके पास आए हैं बैंगलोर के सम्माननीय सेठ श्री छगनलाल जी मूथा ने बताया कि हमारे लिए अब आपके अतिरिक्त अन्य कोई शरण नहीं है। कृपा कीजिए।" गुरुदेव ने दो क्षण उस महिला को नवकार मंत्र सुनाया और फिर एक पुस्तक उसे बताते हुए कहा- "इसे पढ़ सकती हो?" दो क्षण पूर्व जो महिला मूर्च्छितावस्था में पड़ी थी, सहसा चैतन्य होकर उस पुस्तक को दनादन पढ़ने लगी । गुरुदेव की कृपा से वह पूर्ण स्वस्थ हो गई। उपकृत लोग जब आश्चर्य विमुग्ध थे तब गुरुदेव ने कहा - "भाई, मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ। मैं तो एक साधक हूँ। साधना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। साधना कीजिए, कल्याण होगा।" X सन् १९७३ का वर्षावास अजमेर में था। पारसमल जी ढ़ाबरिया की धर्मपत्नी मनधर ने मासखमण तप किया था। पारणे से पूर्व रात्रि में अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई। सभी लोग घबरा गए। उस समय के प्रसिद्ध डॉ. सूरजनारायण जी भी कुछ समझ और कर न सके। चिन्तित ढ़ाबरिया परिवार गुरुदेव श्री के पास आया- "गुरुदेव ! अब क्या किया जाय ? यदि उसे कुछ हो गया तो जैनधर्म की बड़ी निन्दा होगी कि जैनी लोग मनुष्यों को भूखा मार देते हैं। अब तो आपकी ही शरण है।" "शरण तो धर्म की है, भाई चिन्ता न कीजिए। सब ठीक हो जायेगा।" कहकर गुरुदेव ढ़ाबरिया जी के घर गए। उनकी पत्नी को उन्होंने कुछ सुनाया। वह तत्काल एकदम स्वस्थ हो गई। सर्वत्र आनन्द छा गया। X सद्धर्म एवं साधना के समक्ष बड़ी से बड़ी दानवी शक्ति भी किस प्रकार परास्त हो जाती है, इसका उदाहरण है यह एक प्रसंग सन् १९३६ की बात है। गुरुदेव बड़ौदा से सूरत पधार रहे थे। मार्ग में दूर-दूर तक केवल मुसलमानों की ही बस्तियाँ थीं। नवीपुरा की कपास की मील में एकमात्र एक ब्राह्मण का घर था। वहाँ से आहार तो प्राप्त हो गया, किन्तु ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं मिला। गुरुदेव को उपयुक्त स्थान के लिए इधर-उधर देखते हुए एक मुसलमान भाई ने देखा और पूछा - "क्या देखते हो बाबा ?” गुरुदेव ने बताया कि रात्रि विश्राम के लिए कोई उपयुक्त स्थान चाहिए। उस मुसलमान ने एक बड़ा-सा बंगला बताते हुए कहा - "वह मेरा ही है। आप खुशी से उसमें ठहर सकते हैं।" 040 उस समय आपके साथ गुरुदेव श्री ताराचन्द्र जी महाराज तथा पं. रामानन्द जी शास्त्री थे। तीनों उस बंगले में ठहर गए। एकान्त, 080000 २३५ जंगल-सा था । अँधेरी रात्रि थी। पंडित जी एक लालटेन अपने लिए किराये पर ले आए। एक ओर पंडित जी तथा दूसरी ओर आप तथा गुरुदेव श्री ताराचन्द्रजी महाराज विश्राम कर लेंगे यह विचार था। रात्रि में नौ बजे तक आप पंडित जी से ज्ञान चर्चा करते रहे। उसके बाद आपश्री जपादि करके लेट गए। इससे पूर्व आपने पंडित जी को सावधान कर दिया था कि बंगले की स्थिति देखते हुए किसी उपद्रव की आशंका हो सकती है। अतः वे ध्यान रखें।. ज्यों ही आपश्री को नींद आने लगी कि एक चीत्कार सुनाई पड़ी। आप उठ बैठे देखा पंडित जी चीख रहे थे और दीपक टिमटिमा रहा था। समीप जाकर आपने पूछा- क्या बात है पण्डितजी ? पंडितजी का शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था। हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था। उन्होंने कहा- "मेरी छाती पर एक भयावनी सूरत आकर बैठ गई और मुझे मारने लगी।" आपने कहा - "संभव है आपका हाथ आपकी छाती पर आ गया हो। चिन्ता न कीजिए। " किन्तु पंडितजी ने कहा- "नहीं महाराज! वह तो साक्षात् यम ही था। अब मैं यहाँ नहीं सो सकता। आपश्री के समीप ही सोऊँगा।" यह कहकर वे आपके पास ही आकर सोए। दीपक भी उन्होंने अपने समीप ही एक ओर रख लिया। रात्रि के बारह बजे पुनः पंडित जी उसी प्रकार चीख पड़े। आप उठ बैठे। देखा - दीपक का प्रकाश जो बिलकुल ही मन्द हो चुका था, धीरे-धीरे पुनः तेज हो रहा था और पंडित जी पहले की ही भाँति पसीने से नहाए हुए थे। आपश्री ने कहा- “पंडित जी ! यह इसी मकान का चमत्कार है। किन्तु अब आप घबराइये नहीं। कुछ नहीं होना ।" यह कहकर आपने कुछ जप किया और रजोहरण से रेखा खींचते हुए कहा- अब आप निश्चिन्त होकर सो जाइये। आपका बाल भी बाँका न होगा।" किन्तु पंडित जी इतने भयभीत हो चुके थे कि वे अब अलग सोने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा- “मैं तो अब आप दोनों के बीच में ही सोऊँगा।" परिस्थिति को देखते हुए आपने पंडित जी को बीच में ही सुला लिया। प्रतिदिन के नियमानुसार आप तो दो बजे उठकर जप ध्यान में विराज गए और पंडित जी शान्ति से सोते रहे। प्रातःकाल विहार कर भड़ींच जाना था। मकान की आज्ञा पुनः लौटाने के लिए जब उस मुसलमान भाई के पास गए तब वह तीनों । को देखकर हैरान रह गया, बोला- “कमाल है, आप लोग जिन्दा रह गए ?" आपने उसे समझाया - "ऐसा करना ठीक नहीं। हम तो बच गए, किन्तु दूसरों के साथ कभी ऐसा न करना । " Indolan orgo
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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