SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ भारतीय साधना पद्धति में जप का विशेष महत्व सदा काल से रहा है। आध्यात्मिक साधना उपलब्धियाँ व चमत्कार जप वह चमत्कार है, जो समस्त आधि-व्याधियों और उपाधियों को नष्ट कर परम आनन्ददायी समाधि प्रदान करता है। अद्भुत शक्ति निहित है-जप में गीता में - श्रीकृष्ण ने अर्जुन से इसी रहस्य का उद्घाटन करते हुए रहा था "यज्ञानां जप यज्ञोऽस्मि ।" हे अर्जुन! यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूँ। केवल दो अक्षर हैं 'जप' में 'ज' जन्म का विच्छेद करने वाला है और 'प' पाप का नाश करने वाला। अतः, ध्यान दीजिए, जप संसार का नाश करने वाला है, अर्थात् जन्म-मरण से मुक्ति । ध्यान से मन शुद्ध होता है। जप से वचन की शुद्धि होती है, और आसन से काया विशुद्ध बनती है। जो भव्य प्राणी सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए जप की अनिवार्य आवश्यकता है। इसीलिए भारत के एक तत्त्व चिन्तक ने कहा है जात्सिद्धिर्नपात्सद्धिर्जपात्सिद्धिर्न संशयः । -त्याग दीजिए तमाम संशय जप कीजिए, और एकाग्र मन से कीजिए। जप में अनन्त शक्ति है। असंभव कार्य भी जप से संभव हो जाते हैं। नियमित समय पर सद्गुरुदेव से सविधि नवकार महामंत्र को लेकर यदि जप किया जाय तो सिद्धि अवश्य ही मिलती है। ऐसा दृढ विश्वास था आपश्री का आप स्वयं प्रतिदिन नियमित रूप से जप करते थे। भोजन के स्थान पर भजन को अधिक महत्त्व देते थे। उनके जीवन में जप की साधना तो साकार ही हो उठी थी। सम्पर्क में आने वाले जिज्ञासुओं को वे जप करने की शुभ प्रेरणा प्रदान करते थे। स्वयं भी रसपूर्वक जप करते थे। अपने प्रवचनों में वे प्रायः कहा करते थे-कहाँ-कहाँ भटक रहे हो ? क्यों भटक रहे हो ? मन्त्र-तन्त्रों के पीछे पागल बनकर घूमना वृथा है। महामंत्र नवकार जैसा प्रभावशाली मंत्र अन्य कोई नहीं है, हो नहीं सकता। एकनिष्ठा, एकतानता के साथ इसका जप करो- तुम्हें अनिर्वचनीय आनन्द की उपलब्धि होगी। आपश्री को जप और ध्यान की साधना गुरुपरम्परा से प्राप्त थी। जप की सिद्धि के लिए गुरुजनों की कृपा अत्यन्त आवश्यक भी letedagogas उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ होती है। यदि उनके द्वारा प्राप्त विधि से जप किया जाय तो अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। गुरुदेव प्रातः, मध्यान्ह और रात्रि में जप-साधना नियमित रूप से घंटों तक करते थे। उस साधना में किसी प्रकार की लौकिक अथवा भौतिक कामना या भावना का अंशमात्र भी नहीं था । इसीलिए आपको वह सिद्धि प्राप्त थी, जिसे हमने स्वयं अपनी आँखों से देखा है, प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि लोग रोते-बिलखते हुए आते थे और गुरुदेवश्री से मांगलिक सुनकर हँसते और मुसकराते हुए विदा होते थे । डॉक्टर और वैद्य हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाते थे। आकाश की ओर दृष्टि उठा देते थे। असहाय हो जाते थे। किन्तु उन्हीं रोगियों को हमने गुरुदेव की वाणी से स्वस्थ होते हुए देखा है। ऐसे ही एक-दो प्रसंग यहाँ दिए जा रहे है, जिससे कि पाठक जप के महत्त्व को तथा उससे प्राप्त होने वाली शक्ति और सिद्धि का कुछ अनुमान तो लगा सकें। सन् १९६९ का समय । गुरुदेव का विहार नासिक में था। एक बाई रोती- कलपती उनके पास आई और बोली "मेरे नी वर्ष के पुत्र के नेत्रों की ज्योति चली गई है। मैं बहुत दुःखी हूँ। अब मेरे पुत्र का क्या होगा ?" उस भद्र महिला के दुःख से गुरुदेव का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने उसके घर जाकर बालक को मांगलिक सुनाया और पूछा"कुछ दिखाई देता है ?" बालक ने उत्तर दिया- "कुछ धुंधलाधुँधला-सा । " तीन दिन उसे गुरुदेव ने मांगलिक सुनाया। उसके नेत्रों की ज्योति लौट आई। बड़े-बड़े नेत्र विशेषज्ञ जो निराश हो चुके थे, आश्चर्यचकित रह गए और बोले - " महाराजश्री, आपकी इस चमत्कारपूर्ण सिद्धि को देखकर हमें परमात्मा पर विश्वास हो गया है। हम आस्तिक बनने पर विवश हो गए हैं। धन्य है आपको।" X X सन् १९७७ का एक अन्य प्रसंग गुरुदेव मैसूर से बैंगलोर पधार रहे थे। बैंगलोर से पैंतीस मील दूर रामनगर नामक ग्राम में वे ध्यान से निवृत्त हुए ही थे कि एक कार में कुछ व्यक्ति आए। उनके साथ एक महिला भी थी। महिला अस्वस्थ थी। सभी लोग बहुत चिन्तित थे। पाँच दिन से उस महिला ने न कुछ खाया-पिया था और न ही वह कुछ देख सकती थी या बोल सकती थी उसकी हालत बहुत चिन्तनीय थी डॉक्टर कुछ कर नहीं पा रहे थे। angiraf
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy