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________________ ded 0000000 00000000 १८४ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । PRIOR :00-000val श्री पुष्कर गुरु महिमा -कवि सुरेश 'वैरागी' (मन्दसौर) गुरु पद पंकज हृदयंगम कर जीवन का कल्याण करो, वर्ष उम्र का नवम बाल से ममता का आंचल छूटा पुष्कर गुरु की पुण्यकथा का गुणिजनो! गुणगान करो। निर्मल हुआ विधाता नटखट मन की खुशियों को लूटा बिखर गए सपने शैशव के भावों का घट ही फूटा अरिहंत शरणं पत्थर लगा अचानक जैसे खिड़की का शीशा टूटा सिद्धाणं शरणं क्या है अमर और क्या नश्वर मनुआ इसका ध्यान धरो साधू शरणं पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। दया धर्म शरणं अरिहंत शरणं संत जगत में भक्ति शक्ति ले विरला कोई आता है देखी जीवन की सुन्दरता मृत्यु का चेहरा विद्रूप जो दुःख हरणा मंगल करणा मोक्षमार्ग दिखलाता है कभी बहे पुरवा सुखदाई कभी जेठ की तपती धूप दैहिक दैविक भौतिक व्याधि से प्राणी बच जाता है दीपक जब बुझ गया अचानक कहाँ गया ज्योतिर्मय रूप सत् गुरु की सन्निधि मिलने पर सत्य अमर फल पाता है हुआ चित्त पर चिन्तन हावी “वैरागी" हो गया स्वरूप काम क्रोध मद लोभ शमन कर सौम्य सुधा का पान करो चलो सत्य के उस स्वरूप से जीवन में पहचान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं अरिहंत शरणं माह आश्विन शुक्ल चतुर्दशी उन्नीस सौ सड़सठ का साल अम्बालाल जी अम्बालाल को अपनाकर खुशहाल हुवे सूरजमल वालीबाई के फलित पुण्य थे अम्बालाल निःसंतान सेठ सेठानी पाकर पुत्र निहाल हुवे जन्म भूमि सिमटार तीर्थ सम चमक उठा मेवाड़ी भाल परावली ले गये साथ में दिन दिन मालामाल हुवे बलिदानी भूमि पर आये ध्वजा धर्म की लिए कृपालु जब अपनी संतान हुई बदले बदले सुस्ताल हुवे पालीवाल ब्राह्मण कुल गौरव वंदन करो बखान करो पशुधन लेकर भटके जंगल बाल पीर का ज्ञान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो पुष्कर मुनि की पुण्यकथा का गुणिजनो गुणगान करो। __अरिहंत शरणं अरिहंत शरणं महापुरुष का जीवन पथ तो सदा कंटकाकीर्ण रहा पत्थर की ठोकर से आहत बहा पांव से रुधिर अपार छोड़े जागीरदार पिता मन ध्रुव समान दुःख पूर्ण रहा घर पहुँचे तो हुवे प्रताड़ित कौन वहां जो देता प्यार जन्मभूमि तज नान्देशमा ननिहाल बसे मन चूर्ण रहा तन ज्वर से तपता था लेकिन प्रतिध्वनित हो गई पुकार मित्रों संग परिधि में घूमे ममता का आघूर्ण रहा। मन विचलित वन चले पशु ले हुआ क्रूरता का व्यवहार विनय और व्यवहार कुशलता संस्कारों का मान करो मन ही मन ठानी बालक ने अब सत् गुरु का भान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं अरिहंत शरणं नान्देशमा जहाँ जैन श्रमण-श्रमणी अकसर ही आते थे महासती जी धूलकुंवर जी से जाकर के करी पुकार ज्ञान ध्यान की सरिता बहती श्रावक जन सुख पाते थे गुरुवर ताराचंद्र जी से मिलवाकर के कर दो उपकार सन्तों की निर्मलवाणी सुन जो आनंद मनाते थे ही चाह यही है गुरु यहाँ आ मुझको करें शिष्य स्वीकार बुद्धि तेज संयुत शिशु अम्बालाल सभी को भाते थे. यह महासती ने पास बिठाया ममतापूर्ण किया व्यवहार बाल विनोद मुदित मोहक छवि मन ही मन अनुमान करो । लगन सत्य निष्ठा हो तो साकार मिले आह्वान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो।कार पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं..... अरिहंत शरणं 20-NOVOID salin Education remata 206 Forporate a perione use only OF0H09002090090862%anjalnelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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