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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर १८३ । दिव्य दोहा द्वादशी -उपप्रवर्तिनी श्री रवि रश्मिजी महाराज (तपसूर्या श्री हेमकुंवरजी म. की सुशिष्या) दर्शन को है तड़फता, सारा जैन समाज। आओ पुष्कर पूज्यवर, उपाध्याय मुनिराज ॥१॥ क्यों न होते आप श्री, जन्मजात विद्वान। जन्म समय में जब मिला, ब्राह्मण वंश महान॥९॥ शिष्य रत्न जो आपने, हमको दिये अनेक। 'श्री देवेन्द्राचार्य' हैं, सबसे बढ़कर एक॥१०॥ जाते-जाते दे गये, उनको आशीर्वाद। जो था अपने आपमें, सचमुच परम प्रसाद ॥११॥ आ सकता न आपके, गहन गुणों का अन्त। लो 'श्रमणी रवि रश्मि' के, वन्दन बार अनन्त ॥१२॥ जल्दी जाने का लिया, गुरुवर ! कैसे नाम। बहुत आपके हैं पड़े, अभी अधूरे काम॥२॥ जिसका कोई था नहीं, मोल और फिर तोल। जैन जगत के आप थे, हीरे इक अनमोल॥३॥ श्रद्धा पुष्पांजलि संत आप-सा संयमी, विरला होगा अन्य। अन्य आप-सा त्याग तप, शम, दम, जप है धन्य॥४॥ इक सौ ग्यारह भाग में, 'जैन कथायें' ढाल। देकर जग को कर गये, सचमुच मालोमाल ॥५॥ होते हैं विस्मित बड़े, बुधन जिनको देख। राजस्थानी में लिखे, कविता-ग्रन्थ अनेक ॥६॥ सूर्य-चांद-सी बात है, यह भी परम प्रत्यक्ष। भाषण शैली में रहा, जमा कौन कहो समकक्ष ॥७॥ चिजा लाए अंत मी तितिमा शिशिर शास्त्र पढ़े थे आप सीएम कि NRN कापणा जिला उपाध्याय थे आपश्री, **JUST सचमुच नम्बर एक ॥८॥ -महासती सुलक्षणप्रभाजी म. सा. जैन सि. शास्त्री, रल, एस. एस. सी (पू. कौशल्याकुमारीजी म. सा. की सुशिष्या) (तर्ज : अब तो घुड़ला पर ) म्हाने छोड़ गया हो मझधार, ओलु तो आवे आपरी॥टेर॥ आश्विन शुक्ला चतुर्दशी दिन, जन्म लियो गुरुराज सुरजनन्दा वालीरा चन्दा, धन-धन नान्देशमां गांव॥१॥ बालक वय में दीक्षा धारी, तारा गुरुवर पास। ज्ञान ध्यान तो खूब कियो है, पूरण किनी गुरु आस ॥२॥ उपाध्याय पूज्य गुरुदेव है, अध्यात्म योगीराज। मांगलिक री तो महिमा भारी, गावे हे श्री संघ आज॥३॥ विश्व सन्त जग में विख्याता, छ: काया का त्राण।। दुखियोंरा तो दुःख हरनारा, कुण सुणेला दुःखरी बात॥४॥ संयम आपरो धवल हिमालय, करुणा हृदय विशाल। ज्ञानी गहरा सागर सम थे, वाली माता रा सुनो लाल ॥५॥ शिष्य रत्न है आचार्य आपरा, देवेन्द्रमुनि गुरुराज। श्रमण संघरा नायक पर तो, किरपा वरसावो दिनानाथ ॥६॥ श्रद्धा रा म्हें सुमन चढावाँ, स्वीकारो मम नाथ। 'सुलक्षण' सुदर्शन पावो, गुरु कौशल्या गुरुणी आशीर्वाद ॥७॥ का ही रामशास्त्र पढ़े थे सतियाँ, सन्त अनेकामी फागत FOOXAXIAOMore decalcolordhadionabe DSDOODS900 Farheiansson IONSIDEOOOOO.DO
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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