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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर १८५ मारवाड़ से गुरु प्रवर मेवाड़ तरफ कर गये बिहार बही ज्ञान गंगा अपनी गति दया धर्म की जय जयकार कण कण क्षण क्षण बोल रहा था ताराचंद्र नमन सौ बार सागर खुद चलकर प्यासे के ओठों तक आये इस बार अम्बालाल हुवे वैरागी, "वैरागी" जयगान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं मिट्टी में से खोजा हीरा जौहरी थे विद्वान महान उन्हें ज्ञात था आगे चलकर होगा जैन धर्म की शान समय ठहरता नहीं कभी भी वह तो रहा सदा गतिमान वीणा पाणी सिद्ध हुई बढ़ गया साधना का सम्मान सत्य और शिव सुन्दर से निज लक्ष स्वयं निर्माण करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं श्री संघों के भाव जगे दीक्षा का लाभ हमी पावें नगरी में उत्सव हो महान धरती अम्बर नाचे गावें जालौर संघ था पुण्यवान अवसर पाकर के हरषावे चौदव वर्षि दो बालक जब संयम का मारग अपनावें दर्शन कर चक्षु धन्य हुए मंगल गीतों पर कान धरो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं श्रमण बने मुनि पुष्कर ने जीवन में लक्ष बनाये थे ज्ञान, साधना, संयम के संग गुरु सेवा अपनाये थे ध्यान, ज्ञान और भक्ति से गुरुवर तारा मन भाये थे मानों वशिष्ठ ने मर्यादा पुरुषोत्तम फिर से पाये थे । ऐसे गुरु और शिष्य चरण में मनुआ चतुर सुजान धरो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो अरिहंत शरणं जब ज्ञान, ध्यान, वैराग्य योग सब एक साथ मिल जाता है दुष्कर से दुष्कर कार्य तभी पुष्कर पुष्कर हो जाता है वेद पुराण और गीता उपनिषद् सरल हो जाता है। मेघा के मेघ उमड़ते हैं उजड़ उपवन बन जाता है वैदिक, बौद्ध, जैन दर्शन अधिकारी के व्याख्यान वरो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं संस्कृत प्राकृत गुजराती उर्दू भाषा अधिकारी थे गुरुवर के श्रीमुख से निसरित शब्द शब्द हितकारी थे रोम रोम में नेह बसा वे योगिराज ब्रह्मचारी थे शबरी के थे श्रीराम द्रोपदी के कृष्ण मुरारी थे आचार्य प्रभु देवेन्द्र मुनि के गुरु महान कल्याण करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं शिष्यों और महासतियों को आगम ज्ञान कराया था सद्गृहस्थ सन्निधि आये तत्त्वार्थ सूत्र समझाया था शिक्षा के केन्द्र हुवे निर्मित गुरु ग्रंथालय बनवाया था ज्ञान, ध्यान, वैराग्य तत्व सुधियों को भाया था। वे खुद अनन्त कृतियाँ अनन्त आतुर अन्तर यशगान करें पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं' जो सरल साधना लीन मनुज वह महाप्राण कहलाता है चाहे ग्रहस्थ या साधक हो जगती पर पूजा जाता है नख से शिख तक निर्दम्भ गुरु मन श्रद्धा से भर जाता है वे बालमना वे सिद्ध पुरुष कर ध्यान दंभ घबराता है हे ! दया धर्म के कल्पवृक्ष गुरु अमृत हमें प्रदान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं कभी शिकारी मन बदला कहीं बकरे का बलिदान रुका हिंसक भी आगे बढ़कर के चरणों में हर बार झुका दीन हीन दुःखियों की पीड़ा मानवता का माथ झुका अनावृष्टि या हो अकाल रथ दया भाव का नहीं रुका ऐसे विकट, विनाशक क्षण पर पीड़ा पर निज माथ धरो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो अरिहंत शरणं... संत कष्ट से कब घबराता दुःख में भी सुख पाता है ज्यों कांटों के बीच सुमन हंसता सुगन्ध बिखराता है जितना तपता है सुवर्ण उतना निखार आ जाता है नादान भले अपमान करें हर जहर संत पी जाता है हे! सहनशील समता सागर मेरा सारा अभिमान हरो पुष्कर मुनि की पुण्यकथा का गुणिजनो गुणगान करो। . अरिहंत शरणं "ज" जन्म छेदने वाला है “प" निश्चित पाप नशावन है जप से मन बुद्धि शुद्ध करो जप णमोकार से पावन है आंखों की ज्योति कोई पाता मन हो जाता वृन्दावन है मुहूर्त खुद ही ये बोल उठो गुरुवर महान मनभावन है जीवन में जप का है महत्व जप णमोकार इन्सान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं OSHO S 25DODCratergएक साफ w w.latinelibrary 50.000000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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