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________________ 2 12000000000 00000GB Reade 294 १६० DD Page उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । एकता के पक्षधर थे...... में पदार्पण हुआ, अपार जन समुदाय आचार्य सम्राट के दर्शन हेतु उमड़ रहा था। मेरी मौसी म. की भी दीक्षा थी, मैं भी उस अवसर -हीरालाल जैन (उपाध्यक्ष अ. भा. स्था. जैन कांफ्रेंस) । पर अम्बाला आया, मेरी मौसी म. की सद्गुरूणी शासन प्रभाविका महासती श्री स्वर्णकान्ता जी म. ने मुझे बहुत ही स्नेह से अपने पास भारत की पावन पुण्य धरा की यह अपूर्व विशेषता रही है बिठाया और कहा कि 'विकास, तेरे पुण्य प्रबल है हमारी हार्दिक यहां की धरती के कण-कण में, अणु-अणु में महापुरुषों के पवित्र इच्छा है कि तू आचार्य सम्राट के पास दीक्षा ग्रहण करें तेरी माता चरित्र की सौरभ महक रही है। यहां की धरती पर अगणित और पिता तो मेरी बात मानने को सदा तत्पर है बोल तेरी क्या महापुरुष पैदा हुए हैं जिनका पवित्र चरित्र प्रकाश-स्तम्भ की तरह इच्छा है ? मैंने कहा-जैसे आप कहोगे वैसा मैं करने के लिए प्रस्तुत जन-जन का पथ-प्रदर्शक रहा है उन्हीं महापुरुषों की पवित्र परम्परा हूँ। दूसरे ही दिन गुरूणी मैया ने मुझे आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि में उपाध्याय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. का नाम अनंत श्रद्धा जी म. के चरणों में सहर्ष समर्पित कर दिया। के साथ लिया जा सकता है। आचार्य सम्राट के चरणों में पहुँचकर मुझे अपार आनंद की जब भी मेरी स्मृतियों के आकाश में उपाध्यायश्री का नाम अनुभूति हुई। आचार्य सम्राट के आदेश से छोटे गुरूदेव श्री दिनेश व आता है तो मेरा हृदय बासों उछलने लगता है और सिर गौरव से मुनि जी म. का अपार स्नेह मुझे मिला और आचार्य सम्राट से पता उन्नत हो जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से अपने चला कि मेरे दादा गुरू उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी शिष्य को इस योग्य बनाया कि आज उनके शिष्य आचार्य सम्राट म. श्रमण संघ के एक ज्योति पुरुष थे। वे बहुत बड़े ज्ञानी, ध्यानी, श्री देवेन्द्र मुनि जी म. श्रमण संघ के तृतीय पट्ट पर आसीन है। तपस्वी महापुरुष थे, उनके दर्शनों का सौभाग्य तो मुझे नहीं मिला जहाँ तक मुझे स्मरण है मैंने उपाध्यायश्री के अनेकों बार दर्शन पर उनके फोटो को देखकर ही और उनके गुणों को श्रवण कर किए हैं पर वार्तालाप करने का सुनहरा अवसर सन् १९८४ में जब मेरा हृदय उनके चरणों में समर्पित हो गया। मैं बालक हूँ और आपश्री का वर्षावास दिल्ली चांदनी चौक में था तब मिला, उस । गुरूदेवश्री के चरणों में यही हार्दिक प्रार्थना करता हूँ, हे गुरूदेव! समय आपके ओजस्वी/तेजस्वी प्रवचनों को भी सुना और १९८५ मेरी बुद्धि तीक्ष्ण हो, मैं खूब ज्ञान ध्यान कर और संयम जीवन का वर्षावास दिल्ली, वीर नगर में ही था, उस समय भी अनेक बार ग्रहण कर आपके नाम को अधिक से अधिक रोशन करूँ ऐसी मुझे दर्शन करने का अवसर मिला। सन् १९८७ में जब पूना में संत शक्ति प्रदान करें। यही मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। सम्मेलन हुआ उस समय विहार में भी संगमनेर आदि क्षेत्रों में दर्शन [ गुरूदेव का जीवन बड़ा चमत्कारी था ) और वार्तालाप करने का अवसर मिला, पूना संत सम्मेलन में भी आपके सौम्य व्यक्तित्व को बहुत ही निकटता से देखने का अवसर -कांतिलाल दरड़ा, औरंगाबाद मिला, उसके पश्चात् सन् १९८८ में इन्दौर में जब कफिस का अमृत महोत्सव था तब आपश्री के दर्शन हुए, सन् १९९२ में जोधपुर में विक्रम सं. २०२५ का वर्षावास उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री का और उसके पश्चात् चद्दर समारोह के अवसर पर उदयपुर में घोड़नदी में हुआ, यों उपाध्याय पूज्य गुरूदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. के सर्वप्रथम दर्शन हमने बम्बई में किए थे किन्तु उस समय परिचय आपश्री के दर्शन किए, उस समय आपका स्वास्थ्य काफी अस्वस्थ नहीं हो पाया, घोड़नदी वर्षावास में पूज्य गुरुदेवश्री को अत्यधिक था किन्तु आपके चेहरे पर अपूर्व तेज दमक रहा था। आचार्य सम्राट सन्निकट से देखने का सौभाग्य मिला। गुरूदेव की असीम कृपा मेरे के चद्दर समारोह का कार्य संपन्न होने पर उन्होंने आपश्री को पर और हमारे परिवार पर रही, उस समय हमारी आर्थिक स्थिति हार्दिक बधाई दी। आपश्री के मुखारबिन्द से यही शब्द निकले व बहुत ही चिन्तनीय थी पर गुरूदेव की कृपा से आज हर प्रकार से मेरा हार्दिक आशीर्वाद है कि आचार्य जिन शासन की खूब सेवा करें। आनंद ही आनंद है। जिस पर गुरू की कृपा हो जाती है उस व्यक्ति उपाध्यायश्री जी एकता के पक्षधर थे, संगठन के सच्चे को कभी कोई कमी नहीं होती। मिट्टी भी सोना बन जाती है। हिमायती थे और साथ ही वे सिद्ध जपयोगी थे, ऐसे महागुरू के चरणों में कोटि-कोटि वंदन। उनका अनंत उपकार हम कभी भी ____मेरे पूज्य पिताश्री प्रतिवर्ष गुरुदेवश्री के चरणो में पर्युषण पर्व की आराधना करने हेतु पहुँचते थे। जबसे हम गुरूदेव के संपर्क में भुला नहीं पायेंगे। हमारी अनंत-अनंत आस्थाएँ उनके श्रीचरणों में आए हमारी अनंत श्रद्धा बढ़ती ही चली गई। जब कभी जीवन में समर्पित। संकट के बादल मंडराये हमने गुरूदेव का स्मरण किया और जैसे मेरे दादा गुरुदेव दक्षिण का पवन चलने से बादल छंट जाते हैं वैसे ही हमारी बाधाएँ सदा दूर होती रही है। गुरूदेवश्री का जीवन बड़ा ही चमत्कारी रहा -वैरागी विकास जैन है उनके चमत्कार के अनेक अनुभव हमें हुए हैं, हम अपने परिवार की ओर से और अपनी ओर से गुरू चरणों में अपनी भावांजलि महामहिम आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म. का अम्बाला समर्पित करते हैं। म e hematomas p r a Foreve stepona Cake bay ar wasameibijerni dig 56960 20.03ari206 56
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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