SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर १५९ स्मृति ग्रन्थ की सामग्री छपने के लिए पूर्ण रूप में तैयार हो जाने तक भी गुरुदेव श्री के प्रति अनेकानेक श्रद्धांजलियाँ प्राप्त हो रही हैं। ग्रन्थ विमोचन की तिथि निश्चित हो चुकी है और समय बहुत कम है। उन सबका प्रकाशन संभव नहीं है। फिर भी कुछ महत्वपूर्ण श्रद्धासुमन यहां प्रस्तुत हैं। अति विलम्ब के कारण उन्हें यथास्थान मुद्रित कर पाना संभव नहीं हुआ है। अतः हम इस खण्ड के अन्त में ही उन्हें संयोजित करके संतोष अनुभव करते हैं। हमारी विवशता को समझते हुए आदरणीय जन क्षमा करेंगे। -सम्पादक अपूर्व थी जप निष्ठा -महासती डॉ. मुक्ति प्रभा जी म. श्रमण संघ का यह परम सौभाग्य रहा है कि इस संघ में अनेक ज्योतिर्धर विभूतियाँ रही हैं और वर्तमान में हैं। मैं कई बार श्रमण संघ को फूलों के बगीचे की उपमा देती हूँ, फूलों के बगीचे में रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल होते हैं जो अपनी भीनी-भीनी महक से जन-जन के मन को मुग्ध करते हैं। श्रमण संघ में भी ऐसे पुष्प हैं कोई ज्ञानी है तो कोई ध्यानी हैं, कोई तपस्वी हैं तो कोई चिंतक हैं लेखक है, विविध गुणों का मधुर संगम हुआ है श्रमण संघ में। परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. हमारे श्रमण संघ के एक प्रतिभा पुरुष थे। वे ज्ञान योगी, ध्यान योगी और सिद्ध जपयोगी थे। भगवान् महावीर ने अपने अंतिम प्रवचन में साधक को संदेश दिया एक समय का भी प्रमाद न कर उस अप्रमत्त स्थिति का साक्षात् रूप उपाध्यायश्री के जीवन में देखने को मिलता था। निन्दा और विकथाओं से सदा दूर रहकर सदा स्व का चिन्तन करना उन्हें पसन्द था। मैंने जब भी उनके दर्शन किए तब मैंने उनको स्वाध्याय में रत पाया और जब स्वाध्याय से निवृत्त हो जाते तो जप साधना में तल्लीन हो जाते थे। नियमित समय पर जप करने की कला यदि किसी को सीखनी हो तो उपाध्यायश्री के जीवन से सीख सकता है। बिहार हो रहा है, चिलचिलाती धूप पड़ रही है जप का समय होने पर जप के लिए बैठे हैं, न पैर झुलसने का डर और न धूप और प्यास का डर, एकान्त शान्त क्षणों में बैठकर जप कर रहे हैं, प्रवचन चल रहा है, जप का समय हो गया, उठकर चल दिए, लब्ध प्रतिष्ठित श्रद्धालु बैठे हैं, वार्तालाप चल रहा है, जप का समय होते ही 'तुम तुम्हारे और हम हमारे' कहकर उठ जाते, यहां तक कि १०५ डिग्री ज्वर में भी जप का समय होते ही वे जप के लिए बैठ जाते थे। वस्तुतः उनकी जप निष्ठा बहुत ही अपूर्व थी और सभी के लिए उठप्रेरक थी। आज हम जरा सा दूसरा कार्य आ जाता है तो जप को छोड़कर उस कार्य में लग जाते हैं। मैं श्रद्धेय उपाध्यायश्री के चरणों में अपनी भाव भीनी श्रद्धार्थना समर्पित करती हूँ, यही उनसे मंगल आशीष चाहती हूँ कि हे गुरुदेव ! आपकी तरह हमारी जप साधना भी निर्विघ्न रूप से संपन्न हो, हम भी आपकी तरह निरन्तर आध्यात्मिक उत्कर्ष करती रहे। स्वयं कष्ट उठाकर दूसरे को सुख पहुँचाना ही सच्चा परोपकार है। - उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि Jain Education International सिद्ध जप योगी थे .... -महासती डॉ. दिव्य प्रभा जी म. जीवन में कभी कभार ऐसे अनमोल क्षण आते हैं जो कभी भी भुलाए नहीं जा सकते, वे सदा-सदा के लिए स्मृति पटल पर अंकित हो जाते हैं। परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के दर्शन किस दिनांक को किए यह तो पूर्ण स्मरण नहीं है पर उनके दर्शनों का सौभाग्य हमें सर्वप्रथम बम्बई में मिला, उसके पश्चात् अहमदनगर में, पनवेल में, अहमदाबाद, अम्बाजी में मिला, जितनी बार भी दर्शन हुए और उनके श्रीचरणओं में बैठने का अवसर मिला अपार आनंद की अनुभूति हुई। उपाध्यायश्री की सबसे बड़ी विशेषता थी वे निरर्थक वार्तालाप करना पसन्द नहीं करते थे। जब भी हम पहुँचे उन्होंने जैन धर्मदर्शन संबंधी हमार से प्रश्न करने प्रारंभ किए और जब हमें उत्तर नहीं आए तो उन्होंने उत्तर बताने में भी संकोच नहीं किया। उनका ज्ञान बहुत ही गहरा था, आगम साहित्य का उन्होंने बहुत ही गहराई से परिशीलन किया था और टीका ग्रन्थों का भी आगम के गुरू गंभीर रहस्यों को सुनकर हमारा मन मानस प्रसन्नता से झूमने लगा। वे सिद्ध जपयोगी थे और हमारी भी जप के प्रति सहज रूचि रही, मेरे शोध का विषय भी अरिहंत था । उपाध्याय श्री की नवकार महामंत्र पर अनंत आस्था देखकर हमारा हृदय आनंद से तरंगित हो उठा, वे स्वयं तीनों समय जप करते थे और जो भी उनके संपर्क में आता उन्हें जप की प्रेरणा प्रदान करते थे। उनके मंगल पाठ को श्रवण कर हजारों व्यक्ति स्वस्थ हुए आधि-व्याधि, और उपाधि से मुक्त हुए। उपाध्यायश्री का हमारे गुरुदेव आत्मार्थी मोहन ऋषि जी म. प्रवर्त्तक विनय ऋषि जी म. और हमारी सद्गुरूणी जी शासन प्रभाविका उज्ज्वल कुंवर जी म. के साथ बहुत ही निकट का संबंध रहा। हमारी दीक्षा के पूर्व ही पूर्व गुरूदेवों के साथ संबंध होने के कारण हमारी भी अनंत आस्था आपश्री के प्रति प्रारंभ से रही है। जितना हमने आपश्री के संबंध में सुना था उससे अधिक हमने आपको पाया, आज आपके सुशिष्य आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म. श्रमण संघ के सरताज हैं, उस गुरू को हार्दिक बधाई है। जिन्होंने शासन के लिए ऐसे प्रभावक शिष्य रत्न प्रदान किया। हमारी अनंत श्रद्धाएं श्रद्धेय उपाध्यायश्री के श्रीचरणों में समर्पित । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org goday
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy