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________________ 60000000000000000000000000006086660-653300036 {१५४ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । उनका यशःशरीर आज भी है और सदा रहेगा। वे हमारे हृदय के विवेक और धैर्य से निर्वहन करते थे, जिनकी वाणी में कुछ सिंहासन पर आसीन हैं, उनका मंगलमय नाम ही सम्पूर्ण कार्य की | निराला ही ओज था, उलझी समस्याओं के समाधान में जो सिद्धि को लिए हुए है। उनकी विमल छत्र-छाया के आलोक में सिद्धहस्त थे, भक्तों के सहारे थे। जैनत्व के सर्व मंगलकारी रूप के हमारा जीवन सदा प्रगति के पथ पर बढ़ता रहेगा यही उनके प्रति विकास के लिए जो कटिबद्ध थे, जिनके चरण-कमल जहाँ भी श्रद्धार्चना है। पड़ते। संयम, सदाचार और समता की सौरभ से जन-जन का हृदय प्रमुदित हो जाता था। ऐसे थे परम श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री जीवन के सफल कलाकार : पुष्कर मुनिजी म.। उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म.सा.. सत्साहित्य का अमृत पिलाकर जो भौतिकता से मूर्छित विश्व समाज को नवजीवन प्रदान करते थे, जिनका औदार्य अत्यन्त -शान्ता बहिन मोहनलाल दोशी, बम्बई विशाल था जिन्होंने साम्प्रदायिक संकीर्णताओं की दीवार को हटाकर संघीय एकता के महामंत्रोच्चार में अपना स्वर मिश्रित कर मैं उस परम पावन श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर श्रमण संगठन की आवाज को बुलन्द किया। ऐसे राजस्थानकेसरी मुनि जी म. के श्री चरणों में अनन्त आस्था के श्रद्धा सुमन समर्पित उपाध्याय पूज्यपाद श्री पुष्कर गुरुदेव का विशाल भव्य, दिव्य, करता हूँ जिस महागुरु ने अपने ज्ञान के दिव्य प्रकाश से जीवन सरल, सहज, सद्भावों से छलाछल भरा हृदय वत्सलता से पूर्ण था। और जगत को ज्योतिर्मय बनाया और उस दिव्य आत्मा के प्रति वे ब्राह्मणत्व के साक्षात् रूप थे। चतुर्मुखी प्रतिभासम्पन्न थे अर्थात् श्रद्धा का कलकल-छलछल करता हुआ निर्झर पूरे प्रवाह के साथ उनके तेजस्वी आभामण्डल से ज्ञान की किरणें फूट रही थीं। वे प्रवाहित है, जिसने विकट से विकट परिस्थितियों में भी बाधा की ज्ञान के पुंज थे। साथ ही क्षत्रियत्व का दिव्य तेज भी उनमें चट्टानों को चीरकर जो निरन्तर आगे बढ़ा, जिसने विश्व को नई झलकता था। जब प्रवचन पट्ट पर वे आसीन होते और प्रवचन राह दी, नई दिशा प्रदान की, जिस राह पर वे स्वयं चले और करते तो वीरत्व सहनमुखी कमल की भाँति खिल उठता। कार्य की दूसरों को चलने के लिए आगाह किया, जिसके अन्तर्मानस में सत् कुशलता और वार्तालाप के चातुर्य को देखकर आप में “वैश्यत्व" की उपलब्धि की भव्य भावना अंगड़ाइयाँ लेती हों, उसे एक दिन के दर्शन होते। आपश्री की सेवा भावना निहार कर चतुर्थ वर्ण के सत्य सहज ही उपलब्ध हो जाता है। कवि के शब्दों में, जिन खोजा कर्तव्य का स्मरण हो उठता। आपका व्यक्तित्व पारदर्शक, चुम्बकीय तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ। उन्होंने खोजा और उन्हें प्राप्त हुआ, व तेजोमय था। उसमें से ज्ञान रश्मियों की प्रखरता, हिम शिखरों अपने जीवन में ज्ञान के साथ ध्यान और ध्यान के साथ जप की की तरलता, मानस की पवित्रता, परदुःख कातरता संस्कृति की साधना निरन्तर चलती रही, जीवन रूपी वस्त्र को उन्होंने जप और जप के शुभ संस्कारों से संस्कारित किया। सजग प्रहरी की कर्तव्यनिष्ठा उस व्यक्तित्व की धीर, गम्भीरता और निश्छलता सहज ही अपनी ओर खींचती चली जाती थी। गुरुदेव क्या थे? एक शब्द में कहना चाहूँ तो सादा जीवन 5 और उच्च विचार के वे साकार रूप थे। जैसा उनका दिव्य और सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. का भव्य शरीर था वैसी ही दिव्य और भव्य आत्मा उसमें निवास जीवन मानव-जीवन के समुद्धार के लिए करुणा, मैत्री, सहृदयता, करती थी। जो भी उनके संपर्क में आया, उसके जीवन में प्रमोद भावना से संयुक्त ओत-प्रोत मुक्तिमार्ग की ओर प्रशस्त था। आमूलचूल परिवर्तन हुआ, उसके जीवन की दृष्टि बदली और साथ पूज्यश्री जी का मंगल प्रवचन अनुभूतिपूर्ण, चिन्तनशील, हृदयस्पर्शी BOOBही सृष्टि भी बदली। उसका जीवन-पुष्प खिल उठा, ऐसे जीवन के और अन्तर्मुखी साधना से पूर्ण चमत्कृत था। प्रत्येक प्रश्न का सम्यग सफल कलाकार के श्रीचरणों में भावभीनी वंदना। उत्तर देकर मार्ग प्रशस्त करते थे। आप अपने नाम के अनुकूल संयम के अगाध सागर थे, जिसमें संयमनिष्ठा के अनन्त रत्न [सम्यक् ज्ञान पुंज : उपाध्याय पूज्य गुरुदेव ) विद्यमान थे। आपका नयनाभिराम व मनोभिराम निर्मल गौरवर्ण, तेजपूर्ण, शान्त मुखमण्डल प्रेम पीयूष बरसाते दिव्य नेत्र से सज्जित -डॉ. विद्युत जैन (गाजियाबाद) व्यक्तित्व में भगवान महावीर की संयम निष्ठा, श्रीकृष्ण का कर्मयोग, (अध्यक्ष : अ. भा. श्वे. जै. स्था. महिला विभाग) बुद्ध की करुणा और चाणक्य की नीति का सुन्दर समन्वय था। सर्वोच्च श्रमण के सभी गुणों से विभूषित, बाल ब्रह्मचारी जो पूत के पांव पालने में ही नजर आते हैं। आपने वीरभूमि विद्वता के अगाध सागर थे, सिद्धियाँ जिनके चरण चूमती थीं, मेवाड़ के ग्राम गोगुन्दा के सन्निकट सिमटार ग्राम में आश्विन वैराग्य जिनका अंगरक्षक था, संयम जिनका जीवन साथी था, जो शुक्ला १४ वि. सं. १९६७ (सन् १९१०) में माता वालीबाई की "अध्यात्मयोगी" के नाम से प्रख्यात संत थे, जो प्रतिकूल कोख से ब्राह्मण कुल में जन्म लिया, पिता सूरजमल के जीवन को परिस्थितियों में भी अजयमेरू थे। श्रमणसंघ प्रदत्त उत्तरदायित्वों का कृतार्थ किया। आप सांसारिक नाम अम्बालाल से जाने जाते थे। 180. 00लयल य लय GOOD Panduration intemanoral ABOARD.00009999 OFrivatsa Parsonal use on EOS0000000 000480.40awanidarelibay.org 2023 .06.6300366990590870890-12:00DPADD9030069000906653660
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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