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________________ 00000000000000000 to 1080S .Sonam श्रद्धा का लहराता समन्दर १५५ परम उदार ज्ञानी गुरुदेव श्री ताराचंद्र जी म. सा. की निश्राय में रही थीं। इस प्रकार न जाने कितने जीवन विनाश होने से पहले ही वि. सं. १९८१ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को गढ़जालोर में १४ वर्ष की बच गए और न जाने कितने घर तबाह होने से बच गए। अल्पवय में आर्हती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेने के साथ ही आपने साधना उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य था जिसे उन्होंने अपनाया ज्ञानार्जन, धर्म-प्रचार, सेवा-साधना, साहित्य-साधना आदि और अपने जीवन का अभिव और अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया। साधना उनकी सहचरी श्रमणोचित गुणों के बीजों को मानव समाज के बहुमुखी विकास । थी और वे साधना के लिए सर्वतोभावेन समर्पित थे। यद्यपि संसार कर ज्ञान गंगा से उर्वर बना नन्दनवन बना डाला। और सांसारिकता उनके लिए नगण्य थी, किन्तु फिर भी मानव-SSAGE "ज्ञान कंठे और दाम अंटे" की राजस्थानी कहावत को पूर्ण । कल्याण और उसके माध्यम से प्राणी कल्याण को उन्होंने अपने समझकर कंठस्थ ज्ञान को आपने विशेष महत्व दिया। आपने अपनी कर्म क्षेत्र के अन्तर्गत रखा। इसका कारण यह था कि प्राणिमात्र के DEPRE ज्ञान गंगा को सर्वप्रथम कविता के माध्यम से प्रवाहित किया। प्रति वे करुणा और दया से ओतप्रोत थे। वे साधना में जितने आपने अपनी अटूट लगन व विलक्षण विद्वता से जैन व जैनेत्तर निष्ठुर, अनुशासन में कठोर और आचरण में संयमी थे, उतने ही 00:00 सिद्धांतों, आगमों का गंभीर व गहरा ज्ञान पाया। आपने अपने इस वे सहृदय, दया से परिपूर्ण और करुणा से ओतप्रोत थे। यही ज्ञान प्रकाश को हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, कारण है कि वे अपनी संयमपूर्ण जीवन यात्रा में जन-जन के राजस्थानी आदि अनेक भाषाओं के माध्यम से गद्य-पद्य दोनों ही आराध्य बन गए। समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए वे उस साहित्य की विधाओं में जन-जन तक पहुँचाया। आपके साहित्य में कुएं की भाँति थे जो तृषितों की तृषा शान्त करने में समर्थ था। oad अनुभवों का अमृत है, चिन्तन की गहनता धर्म, दर्शन, अध्यात्म दुःखी और पीड़ितों के लिए वे उस वैद्य की भाँति थे जो अपने और साधना का तलस्पर्शी विवेचन है। उनमें ऐतिहासिक व 1 चिकित्सा नैपुण्य से रोगों का शमन कर कष्ट से छुटकारा दिलाने में 208 पौराणिक कथाओं का प्राचुर्य है। समर्थ था। इस प्रकार वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रज्ञापुरुष थे। आप जप-साधना के महान साधक थे। साथ ही जनमानस का सम्पूर्ण समाज उनका अत्यधिक ऋणी है, क्योंकि समाज को आत्म-कल्याण करना आपके उदार एवं आदर्श जीवन का मुख्य उन्होंने बहुत कुछ दिया है। समाज को जो दिशा निर्देश मुनिश्री से PPORTA लक्ष्य था। श्रद्धालु जनमानस आपको अज्ञानान्धकार में सम्यक्ज्ञान प्राप्त हुआ उससे समाज का बहुत बड़ा उपकार हुआ है। समाज में DDAR का प्रकाश फैलाने वाला महान पुरुष मानती है और युगों-युगों तक व्याप्त आडम्बरपूर्ण दिखावा, कुरीतियों और गलत परम्पराओं की मानती रहेगी। आपकी प्रेरणा से अनेक पुस्तकालय, विद्यालय खोले ओर संकेत करते हुए मुनिश्री ने उनसे होने वाली हानियों और गए। अन्ध-विश्वासों, अंधपरम्पराओं, जातिवाद, स्वार्थाधंता, समाज पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट पारस्परिक विषमता आदि दुर्गुणों का युक्तिपूर्वक खण्डन कर आपने किया। उनकी प्रेरणा से समाज ने वास्तविकता को समझा और उन सद्भाव व सदाचार, स्नेह, सहयोग, सहिष्णुता और शुद्धात्मवाद का कुरीतियों और आडम्बरों से स्वयं को मुक्त किया। इस प्रकार प्रचार कर राष्ट्रीय मूलों को मजबूत बनाया। समाज में पुनर्जागरण का सूत्रपात हुआ और स्वस्थ समाज का निर्माण हुआ। उन्होंने समाज को समता भाव और अहिंसा का जो ऐसे सरल सम्यक्ज्ञानी ध्यानी अजेय महापुरुष को मेरा मूलमंत्र दिया था उसका व्यापक प्रभाव समाज पर हुआ। अतः शत्-शत् वंदन। निर्विवाद रूप से स्वस्थ और अहिंसक समाज की स्थापना में उनका 80 योगदान अद्वितीय ही माना जायेगा। इसी प्रकार समाज में नैतिक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी - उत्थान की प्रेरणा भी लोगों को उपाध्यायश्री से प्राप्त हुई। वर्तमान 600 में नैतिक रूप से लोगों का जितना अधःपतन हुआ है वह निश्चय ही -सुशीला देवी जैन चिन्ता का विषय है। उपाध्यायश्री ने इसे बहुत पहले ही समझ लिया 99.90 और लोगों में शुद्ध आचरण के संस्कार डालने का संकल्प उन्होंने 60 श्रद्धेय गुरुप्रवर उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी का व्यक्तित्व किया था। उनके उद्बोधनों, प्रवचनों एवं सदुपदेशों का इस बुराई DED बहुआयामी एवं विलक्षण था। वे यद्यपि आध्यात्मिक संत थे तथापि सामाजिक पुनर्जागरण और लोगों में नैतिकता का विकास उनके को दूर करने में व्यापक प्रभाव हुआ जो स्पष्टतः लक्षित हो रहा है। प्रवचनों में मुख्य रूप से मुखरित होता था। उन्होंने सदैव अपने उपाध्यायश्री यद्यपि आज हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनकी प्रवचनों में आचरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया और लोगों । स्मृति, उनकी शिक्षा, उनकी प्रेरणा, उनके सदुपदेश और उनके को उसकी प्रेरणा दी। उनकी वाणी में माधुर्य था, आकर्षण था और उद्बोधन आज भी सतत् रूप से हमारा, हम सब का, सम्पूर्ण प्रेरणा का वह पुट था जो अनायास ही श्रोताओं के हृदय को छू समाज का, सम्पूर्ण देश और विश्व का मार्ग निर्देश कर रहे हैं-यही 8888 लेता था। उनकी प्रेरणा से अनेक लोगों का हृदय परिवर्तन हुआ हमारा सम्बल है और यही हमारी धरोहर है। और उन्होंने अपने जीवन से उन बुराइयों और कुव्यसनों से उनकी स्मृति को सदैव जीवन्त बनाए रखने के लिए आवश्यक छुटकारा पाया जो उनके जीवन को घुन की भाँति जीर्ण-शीर्ण बना है कि उनके द्वारा दिखाए हुए पथ का अनुसरण हम निष्ठा और PPP anEducatioh internationalos 9 80900 0 eoFor Private Personat-uses only so800:09 3 0-3200204000ww.jairnelibrary.org AT THE GIOI CHO 2
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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