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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर श्वास तक स्व-पर की साधना में आपने अपना जीवन सफल बना लिया। इस दुर्लभ मानव देह को प्राप्त कर आपने पूरा जीवन आध्यात्मिक खोज में बिता दिया था। आपकी वाणी में अद्भुत जादू भरा था, वात्सल्य भाव से ओतप्रोत आपकी अमृतवाणी से जनसमूह दंग रह जाता था । आपकी आत्मा की उदारता, विचारों की भव्यता एवं व्यक्तित्व की झिलमिलाती रश्मियाँ दर्शनार्थियों को आनन्द-विभोर कर देती थीं। आप ऊर्ध्वसी ओजस्वी महान विभूति थे। आपकी सिंहनाद जैसी जोशीली सारगर्भित वाणी का अमृत जब प्रवचन में हृदय की उत्कृष्ट भावना से बरसता था, पूरी सभा मंत्रमुग्ध हो जाती थी। आपके जीवन का महान पहलू था कि आप चलते-फिरते लाउडस्पीकर थे। आपकी आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती थी। जब आप जसवंतगढ़ चातुर्मासार्थ विराजमान थे तब हम आपकी सेवा में दर्शनार्थ पहुँचे। दूर से ही आपकी अमृतवाणी हमारे कानों में सुनाई दी। मेरे परिवार वालों ने मुझे कहा आप कहते हैं कि उपाध्यायश्री माईक में नहीं बोलते हैं और यहाँ तो माईक का शौर है। मैंने कहा हम प्रवचन सभा में ही जा रहे हैं आप ही देख लेना। मेरे साथीगण ताज्जुब कर रहे थे कि मधुरता से भरपूर इतनी पहाड़ी आवाज क्या मानव की हो सकती है। ? आप देह से हमारे बीच नहीं रहें किन्तु आपकी पावनमूर्ति आँखों से ओझल न होगी। जीवन की महानता जन्म और मृत्यु दोनों को ही गौरवशाली बना देती है। संत सद्गुरु बनकर जन-जन के मानस में संस्कार का सिंचन करते हैं जब आदर्श समाज बनता है। आपने भारत के विभिन्न प्रांतों में घूम कर जन-जन को भगवान महावीर का संदेश सुनाया है घर-घर में अध्यात्म की, जप की लौ प्रज्ज्वलित की है। आपकी ओज भरी वाणी सुनकर हजारों जैन-अर्जन व्यक्तियों ने व्यसन मुक्ति पाई है। आपकी असीम पुण्यवानी आसमान छू रही थी जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण वर्तमान आचार्य भगवान परम श्रद्धेय श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. जैसे सरल स्वभावी, आज्ञाकारी, निरवालिस शिष्य हैं। आपके इंगित इशारे पर आपकी सेवा में परम श्रद्धेय राजेन्द्रमुनिजी, श्री रमेश मुनिजी एवं श्री दिनेश मुनिजी म. सा. रहे। आपके द्वारा प्रेम, सद्भाव, स्नेह, संगठन, ऐक्यता के लिए समय-समय पर कविता भजन के द्वारा प्रवचनों का नया रूप निखरता था। आप सफल वक्ता, लेखक एवं आशु कवि की त्रिवेणी थे। आपके मन में सदैव दृढ़ता का भाव बना रहता था। अपने शिष्यों में यहीं विरासत छोड़ गये हैं। इन्दौर चातुर्मास में आपके दर्शन का एवं सेवा का लाभ मिला। मैंने बहुत ही नजदीक से आपको देखा कि हर दर्शनार्थी के साथ आप ज्ञान चर्चा करते थे, छोटे-बड़े का, सम्प्रदायवाद का कोई भेदभाव आप में नहीं था। आप और अभिमान छत्तीस का अंक था। समाज के कमजोर वर्ग के लिए आप मसीहा बनकर आये थे । आप Jain Edit canon daternational G १५३ जीता-जागता, चलता-फिरता कल्पवृक्ष थे, उनकी शीतल छाया में आधि-व्याधि से ग्रस्त मुरझाया हुआ मानव पुष्प नवचेतना नवस्फुरणा प्राप्त करते थे। पुष्कर-सा निर्मल झरना आज भी अप्रत्यक्ष रूप से बह रहा है जिसमें अवगाहन कर हमें कर्मों का मल धोना है। महान् आत्मा का, सद्गुरु का गुणानुवाद हमारे पुण्यों की अभिवृद्धि करता है। आज उनकी पावन जन्म जयंती पर स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करना उनके प्रति दृढ श्रद्धा की सुन्दर अभिव्यक्ति है। हम उन्हीं संतों के पावन पदचिन्हों पर चलकर जीवन उज्ज्वल कर सकें। यही श्रद्धासुमन हृदय से उत्कृष्ट भावों से समर्पित करती हूँ। सत सत वंदन के साथ श्रद्धा के सुमन समर्पित हैं दुःखियों के मसीहा के चरणों में जैनशासन के सितारे जो हो गये प्रभु के प्यारे प्रतापपूर्ण प्रतिभा के धनी सद्गुरुदेव -श्रीमती पुष्पा जैन (जयपुर) प्रतापपूर्ण प्रतिभा के धनी श्रद्धेय उपाध्याय सद्गुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी म. के व्यक्तित्व का चित्रण करना अनन्त आकाश को बाहुपाश में आबद्ध करने के समान कठिन है तथापि सद्गुरुदेव के प्रति अनंत आस्था से उत्प्रेरित होकर उनके श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित करने का साहस कर रही हूँ। सादगी, सरलता, सहिष्णुता, सज्जनता, सहृदयता, समता के साक्षात् रूप सद्गुरुदेव, उनका व्यक्तित्व असाधारण, प्रेरक और गुणग्राही था। उन्होंने भारतीय धर्म-दर्शनों का गहराई से अनुशीलन और परिशीलन किया था तथापि उनमें ज्ञान का अहंकार नहीं था, वे निर्मल चारित्र के धनी थे किन्तु चारित्र का अहंकार भी उनको छू नहीं सका था, उनका संपूर्ण जीवन जप, तप और स्वाध्याय से परिपूर्ण था। वे समय पर जप करते थे, स्वाध्याय करते थे, उनका सम्पूर्ण जीवन नियमित जीवन था। वे समय पर भोजन को छोड़ सकते थे, किन्तु भजन को नहीं। समय पर भजन करना उनके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी, नियमित समय पर जप करने के कारण उनका जप सिद्ध हो गया था, वे जप के पश्चात् जो मंगलपाठ प्रदान करते, उसे श्रवण करने के लिए हजारों की भीड़ सहज रूप से एकत्रित हो जाती थी, जो आस्था से समुपस्थित होता, उसकी आधि-व्याधि और उपाधि सदा-सदा के लिए मिट जाती और समाधि के अपूर्व आनन्द में निमंजित हो जाता। हमारा परम सौभाग्य रहा कि उनके श्रीचरणों में रहने का समय-समय पर अवसर मिला। उन्हें बहुत ही सन्निकटता से देखने का और परखने का अवसर मिला, उनके लौकिक व्यक्तित्व ने सदा हमें प्रभावित किया। ये महापुरुष आज हमारे बीच नहीं है किन्तु For Private & Personal Use 00 www.jainejbrdly
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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