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________________ १३० से जीवन चलता रहा। मेरा परम सौभाग्य है कि सन् १९८३ का वर्षावास परम श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनिजी म. का मदनगंज में हुआ। मदनगंज संघ वर्षों तक गुरुदेव के वर्षावास हेतु प्रयत्नशील रहा और अन्त में सफलता प्राप्त हुई। प्रस्तुत वर्षावास में मदनगंज संघ ने सेवा की दृष्टि से मुझे चुना और उस वर्षावास में समाज के कार्यों में अधिक भाग लेने का अवसर मिला, उस वर्षावास में परम श्रद्धेय उपाध्याय पू. गुरुदेव की सेवा का भी अवसर मिला। गुरुदेव की सेवा में पहुँचकर मेरे जीवन का नक्शा ही बदल गया। मुझे राजनीति से भी धर्मनीति के प्रति अधिक रुझान पैदा हुआ और गुरुदेवश्री के ध्यान मंगलपाठ के अनेक चमत्कार मैंने स्वयं ने देखे एक बार मेरा पेट अत्यधिक दर्द कर रहा था, मैं गुरुदेवश्री के चरणों में पहुँचा, उनका ध्यान मंगलपाठ सुनते ही मेरा दर्द गायब हो गया। अनेकों बार गुरुदेव के चामत्कारिक प्रसंग देखने को मिले। मैंने देखा कि जो लोग नास्तिक थे, वे भी गुरुदेव श्री के संपर्क में आकर आस्तिक बन गए। मेरे मन में एक भावना उदयुद्ध हुई कि प्रस्तुत वर्षावास की पावन स्मृति सदा-सदा बनी रहे, इसके लिए "पुष्कर गुरुसेवा संस्थान" की स्थापना की और औषधालय निर्माण हेतु विशाल बिल्डिंग तैयार हो गई। हम चाहते थे कि गुरुदेवश्री का आगमन हो और उनके नेश्राय में उद्घाटन हो और उस दृष्टि से हमने अनेकों बार प्रयास भी किया पर सफलता नहीं मिली। आज गुरुदेवश्री हमारे बीच नहीं हैं किन्तु गुरुदेवश्री की पावनस्मृति में जो हमने संस्था बनाई है, यह सदा-सर्वदा उनके वर्षावास की स्मृति को ताजगी प्रदान करती रहेगी, और हम चाहते हैं कि गुरुदेवश्री सच्चे जंगमतीर्थ थे, जड़पुष्कर तीर्थ में तो कितने ही व्यक्ति डूब जाते हैं पर गुरुदेवश्री ऐसे महापुरुष थे, कि उनकी सेवा में पहुँचने पर अधम से अधम व्यक्ति भी तिर जाता था, उस स्थावर तीर्थ पर तो श्रद्धालुओं को जाना पड़ता है पर वह जंगमतीर्थ हमारे भक्तिभाव को महत्व देकर हमारे घर पर ही पहुँच जाता था। गुरुदेवश्री के गुणों का वर्णन मैं किन शब्दों में करूँ, उनकी असीम कृपा हमारे परिवार पर रही है, और उनके अनेक संस्मरण भी मेरी स्मृति पटल पर नाच रहे हैं, मेरी उनके चरणों में भावभीनी श्रद्धांजलि और उनका स्मरण हमारे लिए पावन पाथेय है मेरी भावभीनी वंदना निस्पृह संत -रतनलाल मारू संत शब्द संस्कृत भाषा के सत् शब्द से निर्मित हुआ है, जिसका तात्पर्य है अविनाशी, अजर, अमर, त्रिकालाबाधित सत्व सत्ता । संत केवल शरीर नहीं होता वह तो आत्मा होता है, आत्मा का वह दिव्य और भव्य तेज जो क्रूरकाल के अंधकार में कभी Bar Education International Da 2006 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ आच्छादित नहीं होता, जो सदा रहता है। संत का शरीर भले ही नष्ट हो जाए किन्तु उसकी आत्मा अमर है और वह दिव्य गुणों के प्रकाश से प्रकाशित है। परम श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. भले ही शारीरिक दृष्टि से हमारे बीच में नहीं रहे हैं परन्तु अपने दिव्य गुणों के भव्य आकार में आज भी विद्यमान हैं, उनके श्रमणत्व का भव्य और नव्य रूप अब भी हमारे सामने ज्यों का त्यों विराजमान है। उनके जीवन की पावन स्मृति, उनके निर्मल साधुत्व की दिव्य दृष्टि आज भी हमारे अन्तर्मानस पर आसीन है ये अजर, अमर, अविनाशी जीवन के धनी थे। " श्रद्धेय सद्गुरुवर्य की असीम कृपा हमारे पर रही है। गुरुदेवश्री ने हमारे संघ की प्रार्थना को सम्मान देकर मदनगंज में वर्षावास किया और उस वर्षावास में जो एकता की लहर व्याप्त हुई, मदनगंज संघ में अभिनव चेतना का संचार हुआ। गुरुदेवश्री जैसे निष्पृह योगी के दर्शन कर और उनकी सेवा भक्ति कर मदनगंज संघ अपने भाग्य की सराहना करने लगा। हमने सैंकड़ों संत भगवन्तों के दर्शन किए, उनकी सेवा भक्ति की परन्तु उपाध्याय पूज्य गुरुदेव के जीवन की निराली विशेषताएँ हमने देखीं उनका जीवन स्फटिक की तरह निर्मल था। किसी भी पदार्थ के प्रति उनके मन में आसक्ति नहीं रही थी हमने मदनगंज में पुष्कर गुरु सेवा संस्थान की संस्थापना की पर गुरुदेवश्री ने उस संस्था के लिए कभी भी अपने मुँह से एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने यही कहा कि आप लोगों का काम आप करें। और मेरा काम ध्यान-साधना, जप-साधना और उपदेश देना है, वह मैं दूँगा। गुरुदेवश्री की निस्पृहता देखकर हम सभी विस्मित थे। गुरुदेवश्री के नाम की संस्था बनाई पर गुरुदेव अपने नाम की संस्था के प्रति भी कितने निस्पृह रहे यह हम देखकर आनंद-विभोर हो उठे। हम चाहते थे कि गुरुदेवश्री के मदनगंज पधारने पर हम उसका उद्घाटन करवाएँ और हमने मेड़ता में गुरुदेव से प्रार्थना भी की कि आप यहाँ पधारें पर गुरुदेवश्री का स्वास्थ्य प्रतिकूल था हमारी मन की बात मन में ही रह गई, यह कल्पना भी नहीं थी कि चद्दर समारोह के पश्चात् गुरुदेवश्री इतने जल्दी हमें छोड़कर इस संसार से विदा हो जायेंगे। हम गुरुदेवश्री के चरणों में श्रद्धा से नत हैं। उनका मंगलमय आशीर्वाद सदा सर्वदा हमें मिला है और उनकी विमल छत्रछाया में हमने हर प्रकार से विकास किया है। गुरुदेवश्री की विमल छत्रछाया हमारे पर सदा बनी रहेगी, यही मंगल मनीषा के साथ मैं उनके चरणारबिन्दों में कोटि-कोटि वंदन कर श्रद्धार्चना समर्पित करता हूँ। नियम धर्म का पालन धैर्य, श्रद्धा और विश्वास के साथ करो। - उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि For Private & Personal Use Only www.janelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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