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________________ त op 20000000000000 श्रद्धा का लहराता समन्दर माया ११९ SODBADROID 9000053160RDEL हार्दिक श्रद्धांजलि शरीर विनश्वर है, आत्मा अमर है। फूल बिखर जाता है, उसकी सौरभ वातावरण को सुरभित कर जाती है। गुरुदेवश्री का l -श्री एवं श्रीमती पारसमल बोहरा व्यक्तित्व अमर है, कृतित्व युग-युग तक जैन समाज में प्रेरणापुंज बना रहेगा। वह पावन देह भले ही अनन्त में विलीन हो गई पर 2 2 पूज्य गुरुदेव का हमारे पर असीम उपकार है। आपकी आत्मा । उनकी गुण-सौरभ हम सबके जीवन को सदैव सुरभित करती को चिर शांति मिले, एवं शीघ्र ही अनंत सुखों को प्राप्त करे, ऐसी रहेगी, उनके दिव्य संदेश आने वाली पीढ़ियों को साधना की राह जिनेश्वर भगवान से कामना करते हैं। मेरी एवं मेरे परिवार की दिखाते रहेंगे। उनकी पावन स्मृतियाँ सदैव सम्बल देती रहेंगी। तरफ से पूज्य गुरुदेव को अनन्य भक्ति के साथ में अश्रुपुरित । हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित हैं। नाम के अनुरूप थे वे मुझ पर उनकी कृपा दृष्टि थी -धर्मीचन्द जैन, लुणावत 4000 -बी. सज्जनराज सुराणा पूज्य उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. महान पूज्यनीय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के देवलोक होने का महापुरुष थे। अपने नाम के अनुरूप ही वे कोमल और निर्मल थे। के समाचार सुनकर मुझे एवं समस्त परिवार को हार्दिक दुःख जो भी भक्त उनके पास आता था उनके दर्शन लाभ प्राप्त कर हुआ। आत्म-संतोष का अनुभव करता था। उपाध्यायश्री के आपके चादर महोत्सव पर दूर से दर्शन करने पूज्य उपाध्याय श्री एक महान कलाकार थे। उपाध्याय श्री एक | के अन्तिम सौभाग्य प्राप्त हुए थे। उपाध्यायश्री की मेरे पर काफी अच्छे साहित्यकार थे। कृपा दृष्टि शुरू से रही है। उनका चला जाना मुझे एवं सारे समाज । को बुरी तरह खलेगा। आज पूज्य उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. हमारे बीच नहीं हैं। केवल उनकी स्मृतियाँ ही शेष हैं। इस अवसर पर मैं श्रद्धा सुमन पूज्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. को सादर वंदन नमन करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। -राम स्वरूप जैन जैसे सूर्य अस्त हो गया "पुष्कर मुनि थे, सन्त महान । Fac 480% संयमी जीवन, अनुपम ज्ञान ॥" Fallo -सुभाष जैन श्रमण संस्कृति में त्यागी सन्त का महत्वपूर्ण स्थान है। इसी उपाध्याय श्री जी के निधन का समाचार सुनकर हम सब | श्रमण शृंखला में श्रमण-संघीय उपाध्याय श्रद्धेय श्री पुष्कर मुनि जी परिवारी जन शोक सागर में डूब गये। एक सूर्य जैसे अस्त हो गया म. का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। आपके दर्शनों का लाभ हो। पूज्य श्री जी एक गम्भीर चिन्तक, दार्शनिक एवं ज्ञानी सन्त थे। आज से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व बम्बई में प्रथम बार प्राप्त हुआ। ऐसे अनमोल रत्न का संसार से चले जाना वज्रपात के समान है। उदयपुर चादर समारोह में भी दर्शनों का खूब लाभ रहा। हम सब परिवारी जन शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि इस महान । सन् १९८७ ईस्वी को पूना में विराट् साधु सम्मेलन हुआ। आप 66 आत्मा को शान्ति प्रदान करें। भी अपनी शिष्य मण्डली के साथ पधारे। श्रमणसंघ में एक नये पद 89 “उपाचार्य" का श्रीगणेश हुआ। यह सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण 555 अमर व्यक्तित्व के धनी थे वे उपलब्धि थी। यह उपाचार्य पद आपके शिष्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म.ER को आचार्य सम्राट् श्री आनन्द ऋषि जी म. ने एक भव्य समारोह में PA -देवेन्द्रनाथ मोदी प्रदान किया। इसका सम्पूर्ण श्रेय आपको ही है। इस भव्य और परम पूजनीय उपाध्याय पंडित प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी । विशाल साधु-सम्मेलन में मैंने भी भाग लिया था। महाराज साहब के अचानक संथारेपूर्वक महाप्रयाण के दुखद आप अपनी विहार यात्रा करते हुए विश्वविख्यात ताज नगरी समाचारों से विषाद, महान क्षति और रिक्तता की गहरी अनुभूति आगरा भी पधारे। आगरा श्रमण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र तथा : हुई है जिसकी अभिव्यक्ति करने में मैं अपने आपको पूर्ण असमर्थ महायोगी परम गुरु मुनि श्री रत्नचन्द्र जी म. का प्रसिद्ध क्षेत्र है। पा रहा हूँ। यहाँ पर आपका भव्य स्वागत हुआ। जनता दर्शनों को उमड़ पड़ी। 1960 मा 99.9ARO9.992cal.co00%a6- 05.000000000000000000000000000000 PalpedianpandipgargaDOIDS . 03SDS680P Forgone gd06DDOO.DOG. www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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