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________________ ANANOOD D SD16 2306 PO900 POS 2009 SEAGU70000200.00 76963600.0000000000.00 % Hosts 1800% १९० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । इसी जीवन परिभाषा के आलोक में उपाध्यायश्री पुष्कर जाना पड़ेगा। आपकी क्षति समाज के एक वरिष्ठ प्रभावशील संत मुनिजी म. सा. के जीवन का अवलोकन करती हूँ तो मेरा अनुभव की क्षति है। मेरी कोटि-कोटि वन्दना। और अध्ययन शत प्रतिशत इस रूप में रहा है कि उपाध्यायश्री जी का जीवन महकता हुआ उपवन है। अध्यात्मिक भाषा में कहूँ तो सहज सरल जीवन के धनी उपाध्यायश्री जी के जीवन में ज्ञान की गंगा, दर्शन की यमुना और चारित्र की सरस्वती का प्रेक्षणीय संगम हुआ है। अतः वे एक -स्व. पुखराज मल जी लूंकड प्रयागतीर्थ के रूप में जन-जन के लिए श्रद्धा का केन्द्र बन गया (पू. अध्यक्ष अ. भा. श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेंस) और जो भी इस तीर्थ के पावन सान्निध्य में पहुँचा। उसने एक अवर्णनीय आनंद का अनुभव किया और वह सदा के लिए । जीवन में अनेक बड़े बड़े व्यक्तियों, आचार्यों तथा संत पुरुषों कृतकृत्य हो गया। वे मेरे लिए चाक्षुष प्रत्यक्ष नहीं हुए किन्तु उनके । से सम्पर्क हुआ है किन्तु साधुता का जो विलक्षण गुण पूज्य सद्गुणों ने ऐसी प्रकाश किरणें विकीर्ण की जिससे वे महापुरुष सूर्य उपाध्याय श्री में मैंने देखा वह अपने आप में अद्भुत है। आप सदा से प्रतीत हुए किरणों से सूर्य का बोध हो जाता है यही कथन इस ही सहज और प्रसन्न रहते हैं। क्रोध, अहंकार और कपट कभी संदर्भ में सहज ही रूपायित हो गया। आपके जीवन में मैंने नहीं देखा। उनकी इस सरलता सहजता के उपाध्यायश्री अपनी दिव्य, भव्य आकृति के रूप में विद्यमान प्रति मेरे हृदय में अपार आस्था है ... नहीं है, किन्तु यशः शरीर से अभी भी है और भविषय में भी (गुरुदेव श्री की ८०वी. जन्म जयन्ती पर व्यक्त उद्गार) रहेगें। ससीम भाषा में असीम श्रद्धा उनके प्रति समर्पित करती हूँ। एक प्रबुद्ध संत भावांजलि -शांतिलाल छाजेड़ जैन (महामंत्री अ. भा. श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेन्स) PosDG0 -आर्या शांति जैन, कोद अपने मन को संयमित, केन्द्रित करने वाले भगवान महावीर के उपदेश “एगे जिए" को आत्म-सात करने धर्मध्यान के ध्याने वाले, अध्यात्मयोगी थे उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा। जिन्होंने अपने जीवन को सार्थक बनाया, साथ ही उन्होंने जन-कल्याण के लिये मार्ग-दर्शन हेतु ग्रंथों का प्रकाशन किया, प्रवचन भी दिये, आज वे अमर हैं। पार्थिव देह के न होने पर भी जन-मानस में उनके सद्गुणों की अमिट छवि है, वह सदा-सदा के लिये उन्हें याद रहेगी। ऐसे उपाध्यायप्रवर के चरणों में मेरी तथा समस्त साध्वीमंडल की ओर से अनंत-अनंत शुभेच्छाओं के साथ। वंदन-नमन एवं भावांजलि समर्पित होवे। आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी के गुरुवर श्री पुष्करमुनिजी का स्वास्थ्य चादर समारोह के समय कुछ अधिक ही गंभीर चल रहा था। प्रख्यात डॉक्टरों के पेनल ने जब यह घोषित किया कि शरीर के अंग-प्रत्यंग अब कार्य नहीं कर पा रहे हैं तो आचार्यप्रवर द्वारा गुरुवर की मौन स्वीकृति पाकर उन्हें संथारा का पचखाण करवा दिया। लगभग ४१-४२ घण्टों के बाद आपश्री ने इस असार संसार से विदा ग्रहण कर ली। आपके रूप में हमने एक प्रबुद्ध संत खो दिया है। आपकी श्रेष्ठता का एक सबसे उत्तम प्रमाण यही है कि आपका ही एक शिष्य आचार्य पद का अधिकारी बना। गुरुदेव की स्मृति को कोटि कोटि वंदन कर उनकी आत्मा की प्रशांति की कामना करता हूँ। प्रभावी संत दया के देवता -बंकटलाल कोठारी जैन (अध्यक्ष अ. भा. श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेन्स) -अजीतराज सुराणा (भू. पू. महामंत्री अ. भा. श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेंस) मृत्यु जीवन का यथार्थ है परन्तु जो जीवन उज्ज्वलता से परिपूर्ण होता है उसके लीन हो जाने से अंधकार फैल जाता है। उस अंधकार से उबरना कठिन हो जाता है। उपाध्याय श्री एक अत्यन्त प्रभावी संत थे। गहन एकाग्र साधना के बाद उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली मांगलिक का प्रभाव अत्यन्त ही कल्याणमय होता था। अब उनके अभाव में एक श्रेष्ठ नियोजन से वंचित रह (श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेन्स के भू. पू. महामंत्री श्री अजीतराज जी सुराणा आज हमारे बीच विद्यमान नहीं हैं। पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री के प्रति उनके मन में बड़ी आस्था थी। १५ वर्ष पूर्व उन्होंने गुरुदेवश्री के अभिनन्दन में एक भावपूर्ण संस्मरण लिखा था, उसी का कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है।) परम पूज्य राजस्थान केसरी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज केवल स्थानकवासी समाज की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण जैन DOE0 %ato e con Interfational 100000000000000.0-2006095 SDO6.0000.903PaarASAB EPersonalise onleon (PACE0006608603016090EA6g awww.jhinelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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