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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर वे यशः शरीर में विद्यमान हैं -साध्वी चन्दना 'कीर्ति एम. ए. (महासती श्री कमलावती जी की सुशिष्या) एक दिन पूर्व अचानक ही इन कणों को अप्रिय समाचार सुनने को मिले कि उदयपुर में पूज्य उपाध्यायश्री ने संथारा व्रत ग्रहण कर लिया है और दूसरे ही दिन इन कठोर हृदय भेदक समाचारों ने तो हदय पर वज्राघात कर दिया। कितनी ही चिर-चिरंतन संस्मृतियाँ दुखावेग के प्रवाह में प्रवाहित - सी होने लगीं, ऐसा लगा मानों सब कुछ अतीत में समा रहा है, शून्य में डूबा जा रहा है और सब अनुभूतियों को छोड़कर ये ही अनुभूति पुनः पुनः उठ रही हैं कि श्रमणसंघ का एक देदीप्यमान उज्ज्वल नक्षत्र अस्त हो गया। यह हम सभी जानते हैं कि आज तक जाते हुए को कोई रोक नहीं सका है। काल के आगे सभी मजबूर हैं, निरुपाय हैं, फिर भी मन में एक विकलता-सी आ जाती है। स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि गुरुदेव हमसे इतनी जल्दी ही चिर विदाई ले लेंगे और विदाई भी ऐसी जो कभी संयोग में परिवर्तित नहीं हो सकती। हे क्रूर नियति! तेरी विडम्बना बड़ी विचित्र है। खुशियों के गहरे सागर में जहाँ पूरा समाज डुबकियाँ ले रहा था, आनन्द से सराबोर हो रहा था, उसी समय में सभी को अन्तर्वेदना से व्याकुल कर दिया। जिस गुरु ने अपने शिष्य को हृदय का असीम वात्सल्य रस देकर बढ़ाया, पल्लवित और पुष्पित किया, महकाया एवं अपने समक्ष ही एक महान् पदयोग्य बना दिया। मात्र अपना या अपने अन्य शिष्यों का ही नहीं बल्कि पूरे समाज का भारी बोझ अपने लाइले शिष्य के कन्धों पर दिया मानों वर्षों की उनकी भावना साकार हुई, श्रम सार्थक हुआ। आज स्थूल देह से पूज्य गुरुदेव हमारे बीच नहीं हैं पर सूक्ष्म विचार देह से तो अब भी वे हमारे बीच हैं। उनके यशः शरीर को हम सब सुरक्षित रखें। यही अपेक्षा है। अविस्मरणीय संस्मरण -महासती श्री शारदा कुमारी "शास्त्री" (परम् विदुषी गुरुवर्याश्री सुमनकुमारीजी म. की खुशिष्या) मेरा यह परम् सौभाग्य रहा है कि मैं अपनी जीवन यात्रा में अनेक शासन प्रभावक महापुरुषों के सान्निध्य से न केवल प्रभावित हुई हूँ अपितु लाभान्वित हुई हूँ कुछ ऐसे स्वर्णिम अवसर भी उपस्थित हुए जो आज भी मेरे मन मस्तिष्करूपी आकाश में नक्षत्र Jain Education Internationale AD ८९ की भाँति प्रकाशमान है। इसी संदर्भ में मुझे उपाध्याय अध्यात्मयोगी, वाणी सिद्ध, व्याख्यान वाचस्पति श्री १००८ श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का सहज ही ऐसा स्मरण हो रहा है जो एक संस्मरण बन गया। मुझे अध्यात्मयोगी उपाध्यायश्री जी के पावन दर्शनों का अनेक स्थलों पर लाभ प्राप्त हुआ, सर्वप्रथम दर्शन लाभ अजमेर साधु सम्मेलन में एवं जोधपुर, पीपाड़, ब्यावर, दिल्ली, मेरठ, सांडेराव प्रान्तीय सम्मेलनादि में हुए। उनकी ज्ञान साधना की गहराई देखकर मैं आनंद विभोर हो उठी, आपश्री की ज्ञान साधना का प्रकाश लेखन के रूप में परिलक्षित होता है और विचार चर्चा में भी देखते ही बनता भी। मैं आपश्री के पावन सान्निध्य में जब भी पहुँची तब मैं अपनी ओर से भी जिज्ञासा प्रस्तुत करती और आपश्री तर्क सम्मत समाधान प्रदान करते थे और कभी आप स्वयं ही अपनी ओर से प्रश्न उपस्थित कर देते थे। आपश्री के प्रश्न आगमिक और दार्शनिक से संबंधित थे आपक्षी की उत्तरशैली सारगर्भित ज्ञानप्रद और कभी-कभी आनंदप्रद रहती थी। आपश्री वर्ण से ब्राह्मण थे और ब्राह्मण ज्ञान के अधिष्ठाता होते ही हैं। आपने दीक्षाकाल से हीसमयं साधना की भाँति ज्ञान की भी आराधना की और आप अपने जीवनकाल में शिक्षा मंत्री और उपाध्यायपद से विभूषित हुए जो आपकी ज्ञान साधना की फलश्रुति है। उपाध्याय के पद पर आपश्री को देखकर और जानकर मुझे भगवान महावीर की विद्यमानता की स्मृति हो आती है। भगवान् महावीर के शासन में गणधर उपाध्याय का कार्य करते थे और गणधर ब्राह्मण थे, इस प्रकार सहज ही यह माणिकांचन संयोग बन गया। आज वे शरीर दृष्टि से हमारे मध्य में नहीं है किन्तु अपने यशस्वी कार्य कलापों से विद्यमान है और रहेंगे। उनकी शोभा के परिचायक के रूप में उन्हीं के शिष्य श्रमणसंघ के तृतीय पट्टधर महामहिम आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा । मैं उनके विषय में जितना भी वर्णन करूँ उतना ही कम है। तथापि उन महापुरुष के चरणों में हृदय की गहराई से सश्रद्धा वंदनाजंली अर्पित करती हूँ। वे एक प्रयाग तीर्थ थे Private & Personal Use -साध्वी श्री संयम प्रभाजी म. (श्री शारदा जी म. की सुशिष्या) जीवन एक सतत् प्रवाहमान सरस सरिता है, एक तट है जन्म और दूसरा तट है मृत्यु, जन्म और मृत्यु के अन्तराल का नाम ही जीवन हैं। जीवन तभी उपवन है जब उसमें सद्गुणों के सुगंधित सुमन महकते हैं, सद्गुणों के अभाव में जीवन उपवन नहीं निर्जन वन है। www.jainelibrar
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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