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________________ ८८ श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ। गुरुदेव आप जहाँ भी हो आपकी छत्रछाया बनी रहे। तेरे ही दम पर इस गुलशन में बहार थी, तेरे ही कदमों में रहमते हजार थीं। तेरे जाने से कण-कण हताश हो गया, इस चमन का कण-कण क्या पत्ता-पत्ता उदास हो गया। गुरु पुष्कर पावन जीवन सुरभि बिखेरता रहेगा। श्रमण संस्कृति के सरोवर में सदैव सहस्रों कमल खिलते रहेंगे। जो ज्ञान के लिए बढ़ा उस ज्ञानी आत्म का ज्ञान आलोकित करता रहेगा। एक विशिष्ट विभूति गमों के इन क्षणों में एक स्वर मेरा मिला दो। अर्चना के रत्नकणों में एक कण मेरा मिला दो ॥ The -साध्यी अर्चना कहते हैं इस असीम संसार में जो बड़ा है वह गुरु! किसी कवि ने भी इन्हीं भावनाओं को गीतों में ढाला था और कहा था 'गुरु से बड़ा न कोय। उसी परम एवं पवित्र आत्मा की अर्थात् गुरु की छत्रछाया उठ गयी। श्रमणसंघ का एक चमकता सितारा, बेसहारों का सहारा, अनाथों के नाथ ने इस दुनिया से विदाई ली। पीछे मुड़कर भी न देखा कि हमारे जाने से पीछे वालों पर क्या गुजरेगी। आपश्री के ऊपर गम का साया छाया पर श्रमणसंघ में कितनी बड़ी खाई हो गयी जिसको भरना अवश्य असंभव है। कभी प्रकृति से संसार को कतिपय ऐसी दिव्य विभूतियाँ मिल जाती हैं जिन्हें पाकर संसार का चप्पा-चप्पा धन्य हो उठता है। उन्हीं विरल विभूतियों में एक हुए हमारे उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. सा. उत्कट साधना, प्रखर चिन्तन आपको विरासत में मिली। तन, मन, मनन, मंथन की असाधारण प्रक्रिया से गुजरी संयमी यात्रा एक आदर्श यात्रा रही । चुनौतियों को साहस से अपनी चिन्तन की आंजुरी में झेल लिया। संकल्प की आग में निखरा आत्मविश्वास में दमकता रूप देखकर सब एक बार तो चकरा जाते । वेदना और विषमता के नुकीले काँटों की गोद में भी आपकी साधना का गुलाब सदा मुस्कराता रहा। अपनी महक बिना किसी भेदभाव के सबको सव काल बराबर बाँटते रहे कोई भी दुःखियारा आपके सान्निध्य में आता तो सुख अनुभव करता। थकाद्वारा आता तो ताजगी बहिरता, निराश और दिशाहारा आता तो आस्था का आलोक मुट्ठी में भर अपने गंतव्य की ओर बढ़ता । Jain Education International प्रभावशाली व्यक्तित्व, अनुकरणीय कृतित्व, प्रखर वक्तृत्व, संयम साधना के सुदृढ़ आत्मबली के धनी थे। ऐसा लगता था समस्त शुभ परमाणु जैसे एक देह में पिंडीभूत हुए हैं। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ आप क्या गये संसार को सूना कर गये, हर वृक्षों को सुखा कर गये, जलते आसमानों को बुझा कर गए। हम सबको उदास कर गये। श्रमणसंघ का एक अनमोल स्थान तो रिक्त हुआ ही साथ ही साथ साधकों का एवं शिष्यों का जीवन सूना कर गये। आप ऐसी विशिष्ट विभूतियों में हैं जिनका इस धरती पर अवतरित होना भी जनता भूलती नहीं और जाना भी भूलती नहीं। आपने मृत्यु को भी चुनौती देकर पण्डित-मरण को प्राप्त कर मृत्यु को महोत्सव बना दिया। जीवन को गौरव से गौरवान्वित किया। धन्य तो आप बने पर हम अनाथ हुए श्रमण संघ में अँधेरा छा गया। एक सितारा अस्त हो गया - साध्वी श्री रमेशकुमारी जी श्रमणसंघ के एक-एक सितारे अस्त हो रहे हैं। ये समाज का दुर्भाग्य ही है-नए संत विशेष होते नहीं और अनुभवी संत विदाई ले रहे हैं। उपाध्यायश्री जी के निधन से संघ में जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति होना असम्भव है किन्तु कर्म सिद्धान्त की अटल रेखाओं को और उनके प्रभाव को अपरिहार्य समझ कर आपश्री जी व सभी संत धैर्य धारण करें हमारी सभी साध्वियों की शासनदेव से प्रार्थना है कि उपाध्यायश्री जी की पवित्र आत्मा को परम शान्ति प्राप्त हो । धर्म सृष्टि के दिव्य पुष्प 76 1202 -साध्वी किरणप्रभा जी म. उपाध्याय श्री जी का होना एक सार्थक अस्तित्व का यकीन था । उन्होंने जो असाधारण जिंदगी को जीवा, उसे जो अमोल सार्थकता दी वह अमिट रेखांकित बन गयी है। आपश्री एक अखण्ड दीप के समान दीप्त रहे, आपश्री ने जो सक्रियता अपनाई थी वैसी ही सक्रियता अन्य अनेकों में जाग्रत की थी जिस तरह दीप से दीप प्रज्ज्वलित होता है वैसे ही आपसे प्रेरणा पाकर अनेक जन सेवा कार्य में संलग्न हुए हैं। हमें भी ऐसा लगता न था निरंतर गतिमान यह व्यक्तित्व विराम भी पा सकेगा लेकिन और आज आप आचार्यश्री को भी इस काल के सच को स्वीकारना विवशता प्रतीत हो रही है क्योंकि आपनी के तो कण-कण, अणु-अणु, रोम-रोम में गुरु के प्रति अद्भुत अजोड़ ऐसी भक्ति, समर्पणता, श्रद्धा, आस्था रची-बसी हुई है जिसे कोई आँक भी नहीं सकता और न ही आपश्री की बराबरी कर सकता है। For Private & Personal Use Only ..... www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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