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________________ । श्रद्धा का लहराता समन्दरगाह कीमत का आंकलन करने में होता है, तो कोई सोचता है कि यह धन्य है, जिनका जीवन, अमूल्य गुण रूपी मुक्ता-माला बनकर किस खान का रत्न होगा? आदि-आदि। भिन्न-भिन्न प्रकार की मानव जन-जन के हृदय का हार बन जाता है। हिमालय से उच्च विचार, प्रकृति के अनुसार रत्न के गुणों का भिन्न-भिन्न प्रकार से निरीक्षण गंगा सी स्वच्छ वाणी रूपी जल से जिन्होंने कइयों के जीवन को हुआ। वह रन, जिसे ज्ञानियों ने पाषाण का टुकड़ा कहा है, अपने पवित्र किया हो, वे वन्दनीय हैं! अभिवन्दनीय हैं। ऐसे दिव्य पुरुष मूल्य, चमक तथा गुण के कारण जौहरियों को सोचने के लिए के प्रति संक्षेप में श्रद्धायुक्त दो शब्दों द्वारा पुष्पाञ्जलि अर्पित करती मजबूर बना देता है। वह धनवान एवं निर्धनों का आकर्षण का हुई शत-शत बार, वन्दन, अभिनन्दन करती हूँ। केन्द्र भी बन जाता है। उस पाषाण रत्न की अपेक्षा नररल की महिमा ज्ञानियों ने । [ मंगलमूर्ति पूज्य श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. अद्वितीय बतायी है। चाणक्य ने कहा"पृथिव्यां त्रीणि रत्लानि, जलमन्नं सुभाषितम्। मी -साध्वी मंगलप्रभा जी मूढैः पाषाणखण्डेषु, रत्नसंज्ञा विधीयते॥", (बा. ब्र. पूज्य श्री शान्तिकुँवर जी म. सा. की शिष्या) अर्थात् इस विश्व की विराट् धरा पर तीन ही रत्न हैं-जल, पूज्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. ऐसे थे जिनका अन्न और महापुरुषों के सद्वचन। वे लोग अज्ञानी हैं, जो पत्थर के जीवन निश्छलता, मृदुता, सहजता एवं सौजन्यता की मंगल मूर्ति टुकड़ों को रत्न नाम से जानते हैं अर्थात् उनको रत्न कहते हैं। था, जिनका व्यक्तित्व ही अपने आप में शतानुशत विकसित, इस विराट् विश्व की धरा पर समय-समय पर तीर्थंकर, पल्लवित, पुष्पित एवं विभूषित था। उनके दर्शन का मुझे एक ही वासुदेव, चक्रवर्ती, बलदेव, धनी-मानी, दानी, योगी, त्यागी एवं कई बार सौभाग्य प्राप्त हुआ। वास्तव में मैं दर्शन करके उनके भव्य अवतारी महापुरुष हुए, जिन्होंने स्वकल्याण के साथ-साथ विश्व आभायुक्त व्यक्तित्व से अति प्रभावित एवं आनन्दित हुई। उनकी कल्याण को महत्व दिया। उन्होंने अपने प्रबल विशुद्ध ज्ञान द्वारा । साधना अपूर्व थी, उनकी मांगलिक का ऐसा चमत्कार था कि लोग संसार के समस्त प्राणियों को अज्ञान के अन्धकार में भटकते देखा सुनने के लिए दौड़े चले आते थे। इस क्रूरकाल ने उन्हें भी नहीं एवं करुणावतार बनकर, समस्त प्राणियों के लिए ज्ञान का मार्ग । छोड़ा और सबको छोड़कर वे सदा के लिये चले गये। पूज्य 29 प्रशस्त किया। उपाध्यायजी के अवसान से चतुर्विध संघ की एक महती क्षति हुई। है जिसकी पूर्ति निकट भविष्य में सम्भव नहीं है। ऐसे पूज्य ऐसे नररत्न महापुरुषों का जन्म जब इस धरती पर होता है, उपाध्यायजी को मैं भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित कर कोटि-कोटि तो यह धरती पुण्य तीर्थ स्वरूपा बन जाती है। तप, त्याग व साधना से ओत-प्रोत, अध्यात्मयोगी, विश्वसन्त, श्रमणसंघीय उपाध्याय स्व. वन्दना करती हूँ। श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का जन्म मेवाड़ की पावन धरा पर तेरे गुण गौरव की गाथा, धरती के जन-जन गायेंगे! हुआ। “होनहार बिरवान के होत चीकने पात" वाली कहावत के और सभी कुछ भूल सकेंगे, पर तुम्हें भुला न पायेंगे। अनुसार बाल्यावस्था से लेकर ही आपका जीवन अद्भुत रहा। आपमें सरलता, सहजता व निर्मलता की त्रिवेणी के दर्शन होते थे। पूज्य उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. सा. श्रमण संस्कृति की गरिमा थे। आपका जीवन स्नेह, त्याग व आदर्श गुणों से सुशोभित था। सफल शिल्पी गुरुदेव स्वच्छ विचार एवं दृढ़ संकल्प के धनी पूज्य उपाध्यायश्री जी ने -महासती जी श्री रामकंवरजी म.,62 अपनी लेखनी से हजारों पृष्ठों में साहित्य लिखा। उनकी मौलिक -महासती श्री इन्दुप्रभाजी म. सा. “प्रभाकर" रचनाओं के अध्ययन से हम उस दिव्य आत्मा के गुणों के दर्शन कर सकते हैं। सूझ-बूझ के धनी, दूरदर्शिता एवं लेखनी के जादू का परम श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव श्री श्रद्धा के केन्द्र तो थे ही साथ ही परिचय आपकी रचनाओं से जान पड़ता है। गुरु की गौरव-गाथा के एक महत्वपूर्ण अंग थे। आपश्री का व्यक्तित्व निखरे हुए कुन्दन की तरह प्रभायुक्त था। वे एक सफल शिल्पी थे। जो अनगढ़ पत्थर को प्रतिमा का रूप आपश्री ने भारत के विशाल भू-भाग को अपनी पादविहारी यात्रा से देने में पूर्ण सक्षम थे। वैसे शिल्पकार मेरी आस्था के आयाम,000 स्पर्शा। धर्म की ज्योति जगा कर प्रभु वर्द्धमान की अमृत-वाणी का अन्तर् हृदय में विराजमान द्विय ज्योति एवं मेरे श्रद्धास्पद पूज्य दिव्य संदेश जन-जन तक पहुँचाया। आपके ज्योतिर्मय जीवन के भगवान हमारे बीच नहीं रहे। प्रकाश में आने वाले प्राणी आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। किन्तु उन्हीं द्वारा निर्मित कुछ प्रतिमायें हमारे सम्मुख आपश्री का जीवन आदर्शयुक्त है तथा प्रेरणा का स्रोत भी। विराजमान हैं। मैं उनसे यही इच्छा करती हूँ कि इस छोटे से कंकर 2005 in Education International 10.90.0000000000000.05 2060030०००००००००००० For: Private & Personal use only 000000000000000002009 D o wy janebay.org eac0.0.005000 S
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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